मस्ताने से मौसम मैं सहर की तरह हूँ।
जितना दर्द दोगे उतना जयादा मह्कुंगी
फूलों के बिखरे हुए परिमल की तरह हूँ।
जिंदगी मैं नए नए दौर से गुजरकर,
हर मोड़ पर जेसे किसी पत्थर की तरह हू।
अपनी खूबियों और खामियों के हिसाब से ही पाओगे मुझसे
सागर मंथन मैं निकले हुए अमृत और गरल की तरह हूँ ।
ख़ुद का चेहरा मुझमे देखना चाहो तो देख लो
हर अक्स को ख़ुद मैं समां लू उस दर्पण की तरह हूँ।
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