हसरतों की उड़ान अभी बाकि है ,
शहर नापे हैं सारा जहाँ अभी बाकि है।
ऐसे न छुओ मेरे चेहरे को,
इस पर गुजरे वक्त के निशाँ अभी बाकि हैं।
हमने आयतों की तरह दुहराया धडकनों मैं जिन्हें
उन सपनो का इम्तिहान अभी बाकि है
तुम से कह भी देंगे तो क्या कह देंगे हम
तुम को सुन भी लेंगे तो क्या सुन लेंगे हम
जब तक हो न जाए गुफ्तगू आमने सामने
ऐसा लगता है की पहचान अभी बाकि है
हर बार बनाते है रेत के घरोंदे हाथों से,
बचा लेते है उन्हें वक्त की बरसातों से
जब आशियाना सजाने का सोचते है हम,
तब ये लगता है ख्वाबो का मकान अभी बाकि है......
बड़ी चाहत से रखते है कदम लोगो के बीच,
फ़िर लगता है डर की ख़ुद से ही रूबरू न हुए हम,
इतने हाथों और सहारों के बीच
खुद से पहचान अभी बाकी है .
कनुप्रिया
2 comments:
nice....
realy its very nice
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