Friday, July 27, 2012

सावधान सोशल नेटवर्किंग आपकी नौकरी खा सकती है


फेसबुक ट्विटर   ने हम सभी की जिंदगी बदल दी है चलते-फिरते खाते - पीते हर बात हम लोग अपने स्टेटस  पर लिख देते है ऐसा करना सही या गलत इस पर सबकी अपनी राय हो सकती है पर ये आजकल हमारी जिंदगी का हिस्सा है .
 कही घूमने गए फोटो  फेसबुक पर,घर में उत्सव हुआ फोटो फेसबुक पर ,बारिश हुई ट्विट कर दिया नहीं हुई ट्विट कर दिया, किसी पर गुस्सा आया ट्विट कर दिया किसी पर नाराज़ हैं स्टेटस अपडेट किया यहाँ तक की घर में जलेबी बनी, नए कपडे लिए ,शोपिंग गए ,तबियत ख़राब हुई , ठीक हुई हर बात हम फेसबुक पर अपडेट कर देते हैं....और नहीं तो ट्विट का चटका लगा देते है.

बात तब तक ठीक है जब ये सिर्फ  सोशल नेटवर्क पर अपडेट तक सीमित है , मेरी नज़र में इस बात में बुराई भी नहीं क्यूंकि में स्वयं उसी जनरेशन  का हिस्सा हू और लोगो से जुड़े रहने में अच्छा महसूस करती हू.खेर बात मेरी आपकी नहीं. जुड़े रहना ,ट्विट करना ,अपडेट करना इसकी भी नहीं बात ये भी नहीं की हम क्या और कितना और किसके साथ शेयर कर रहे हैं ये हमारा अपना  विवेक है , पर हमारे विवेक को और हमारी सोच को प्रभावित करने करने के लिए घटनाएँ हो रही हैं जो हमें प्रभावित कर सकती हैं.

हाल ही में किए गए एक शोध के अनुसार आजकल कंपनिया चुने जाने वाले केंडीडेट्स के बेकग्राऊंड चेक के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उनके अकाउंट की पड़ताल करने लगी है और विदेशों में इसे आधिकारिक रूप से स्वीकृति भी मिल चुकी है.भारत में इसे अभी कानूनी मान्यता नहीं मिली है पर कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के बेकग्राऊंड चेक के लिए  ये तिकड़म  भिड़ानी शुरू कर दी है .

आम भारतीयों को (वेसे आम जो कुछ फोटो डाल देते है ,खाया पिया हसे गाए के स्टेटस डालते हैं या एसे ही आम काम करते हैं ) इससे ज्यादा समस्या नहीं होने वाली ,समस्या उन लोगो को होगी जो आम से कुछ अलग है यानि अपने स्टेटस पर गाली गलोच का प्रयोग करते है ,या जातिगत कमेन्ट  ज्यादा करते हैं ,या घटिया भाषा ,रंगभेद ,लिंगभेद को बढ़ावा देते स्टेटस डालते हैं. इसी  के साथ उन लोगो पर भी इन कंपनियों की नज़र है जो रात की पार्टी में टुन्न होकर फोटो खिचवा लेते हैं और वेसी ही मदहोशी की हालत वाली फोटो फेसबुक या ट्विटर या पर फेला देते हैं . तो सावधान रहिये  हो सकता कल को जब आप अच्छा दमदार रिज्यूमे तैयार करके साक्षात्कार दे और जवाब में आए की आप हमारी कम्पनी में काम नहीं कर सकते क्यूंकि आपके फेसबुक के फोटो आपत्तिजनक हैं .

इतना ही नहीं ये कम्पनियां आपके साथ साथ आपकी फ्रेंड लिस्ट में जुड़े लोगो पर भी नज़र रखेंगी  और अगर आपकी फ्रेंड लिस्ट में आपराधिक प्रवत्ति या रिकॉर्ड वाले लोग पाए गए तो आप पर खतरा मंडरा  सकता है ,सावधान हो जाइये क्यूंकि आप ऑफिस के बाहर क्या कर रहे है ,किन लोगो में आपका उठना बैठना है हर बात पर आपके नियोक्ता की नज़र है .

यहाँ एक मुद्दा व्यक्तिगत अधिकारों के हनन का भी है और अमेरिका में इसे लेकर बाहर जारी है की क्या इस तरह का बेकग्राऊंड चेक निजी जीवन में घुसपेठ  नहीं है ? क्योंकि वहा पारित कानून के अनुसार एक बार इस तरह का बेकग्राऊंड चेक होने के बाद अगर व्यक्ति उचित नहीं पाया गया तो ७ वर्षों के लिए इसी बेकग्राऊंड चेक को आधार मानकर  कम्पनी  आपकी नियुक्ति पर रोक लगा सकती है .

निजता का हनन तो ये है ही क्यूंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रोफेशनल लाइफ और पर्सनल लाइफ में अलग हो सकता है वो अपने काम में माहिर हो सकता है पर सामाजिक रूप से आक्रामक या कुछ असामाजिक हो सकता है ,देखा जाए तो कंपनियों को ये अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए पर दूसरा पहलु ये भी है की हर कम्पनी अपने यहाँ काम करने वाले लोगो के बारे जानकारी रखने की अधिकारी है क्योंकि कल को वो किसी असामाजिक काम को करते हुए पकड़ा गया तो सवाल कम्पनी से भी होंगे .

निजता और निजी जीवन में घुसपेंठ की बहस काफी लम्बी है और अलग अलग परिस्थितियों में इसके प्रभाव अलग हो सकते हैं ,पर हम कोशिश कर सकते हैं की हमारी जिंदगी इससे ज्यादा प्रभावित  ना हो. तो एक बार अपने प्रोफाइल को चेक अवश्य कर लें :-
  • लोग आपको घटियाँ गंदे या अश्लील चित्रों  में टेग  तो नहीं कर रहे
  • आपकी फ्रेंड लिस्ट में अनजाने या बुरे लोग तो शामिल नहीं हो गए 
  • कोई आपके प्रोफाइल का गलत इस्तेमाल तो नहीं कर रहा  (हेकिंग  से बचिए )
  • ट्विटर पर आप गलत लोगो को फोल्लो तो नहीं कर रहे
  • आपकी भाषा अश्लील या भावनाएं भड़काने वाली ना हो  ( ये सामाजिक रूप से भी जरुरी है)

सावधान रहे हो सकता है गलती आपकी ना हो या अनजाने में किसी फोटो को शेयर या लाईक किया हो और वो आपकी नौकरी खा जाए . और अगर सच में इसी तरह के इंसान है जो भड़काऊ बयान देना,शराब पीकर किए गए धमाल को लोगो से शेयर करना या आपतिजनक सामग्री को शेयर करना पसंद करते है  तो ज़रा ज्यादा सावधानी की जरुरत होगी क्यूंकि आप जेसे लोगो के कारण बिचारे दुसरे लोगो की नौकरी खतरे में आ सकती है ...
इस आलेख को मीडिया दरबार पर भी देखा जा सकता है 

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Wednesday, July 25, 2012

अंतर्मन में उतरे पात्र

वो लोग जो हमने कुछ देखे कुछ पुस्तकों में ही पढ़े 
वो पात्र जो शायद कभी रहे या सिर्फ गए थे गढ़े

वो लड़के जिनकी प्रेमचंद की किताबों से यारी होती थी
प्रेम सूक्तियां जिनको अपने जीवन से प्यारी होती थी

वो लड़के जिनका जीवन देश की सेवा में जाता था 
वो लड़के जिनका नाम बड़े देशभक्तों में आता था 

वो लड़के जो रस्ते चलतों के अपने से हो जाते थे 
वो लड़के जो यारों की यारी में प्राणों को खो जाते थे 

वो लड़के जो बहनों की राखी का रास्ता तकते थे 
सारे गाँव की बेटिओं को अपनी इज्जत सा रखते थे 

वो लड़की जो " मेरी कुडमाई हुई" कहने में शर्माती थी
वो लड़की जो चुन्नी का पल्लू हाथों में ले मुस्काती थी 

वो लड़की  जो जरुरत पड़ने पर वीरांगना हो जाती थी
बम तलवार चलाती थी क्रांति गीतों को गाती थी 

वो लड़की जिसके संस्कार में भक्ति भी थी शक्ति भी
वो लड़की जिसके व्यवहार में तर्क भी थे युक्ति भी 

सब बिखरा बिखरा सा अब है बस वाक् बाण ही चलते हैं 
वो सारे पात्र दिन रात इन आँखों में उतरते ढलते हैं....

वो ढलता सूरज ना फिर लौटा ,वो शाम कभी ना फिर आई 
कुछ चले गए ,कुछ आ गए बनकर जाने वालो की परछाई... 

वो जो कल थे वो आज नहीं बस उनकी धुंधली यादें है 
कुछ पन्ने रंग बिरंगे है ,कुछ कहानियां सीधी सादी है 

कुछ पात्र हमारे जीवन का आधार बनाकर चले गए 
कुछ अंतर्मन में गहरे उतरे स्वप्न संसार बनाकर चले गए ......

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Monday, July 23, 2012

प्यार की खेती...आसमान का बटवारा

आज चलो इस धरती और अम्बर का बटवारा कर लें
मेरे लिए तुम चाँद हो 
मुझे आसमान का वो हिस्सा दे दो
जिसमे तुम बसते हो  
अपने पंखों को थोडा फेलाकर 
कुछ उड़ाने भर लूंगी में वहां
तुम्हारी रौशनी में....
तुम्ही कहते हो ना मै तुम्हारा आधार हूँ
तो सारी जमीन तुम रख लो 
यहाँ तुम अपने प्यार के बीज बोकर 
प्यार की फसल उगा लेना

मेरे आंसूं बड़े उपजाऊ है 
उन्ही से सींचकर 
इन पोधों को बड़ा कर लेंगे
तुम्हारी मुस्कान जीवनदाई  है
तुम मुस्कुराकर इन सारे पोधो को 
लहलहा देना ....

इसी प्यार की खेती से 
हमारा गुजर बसर हो जाएगा 
इन्ही प्रेम बीजों में 
मैं कुछ बीज तुम्हारे शब्दों के बो दूंगी 
और तुम इक काकभगोड़ा  मेरे अर्थों का खड़ा कर देना 
बस एसे ही सारे शोर से दूर हम 
अपनी खामोशियों को आवाज़ देंगे ....


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Friday, July 20, 2012

बूंदों के साथ उतरता बोतलबंद जिन

प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया शायद उसका देना बनता था हमारा लेना बनता था उसने दिल खोल कर दिया और हमने खुले दिल से ले लिया ,पानी को भी हमने प्रकृति की वेसी ही देन समझा है और पानी है भी वैसी ही देन  जिसका प्रकृति ने पलटकर कभी पैसा नहीं माँगा हमसे और प्रकृति आज भी नहीं मांग रही पर हम ख़ुद उसका पैसा देना चाहते है या ना चाहते हुए भी दे रहे हैं ....
न चाहते हुए इसलिए कहा क्यूंकि संविधान के मूलभूत सुविधाओं में ये उल्लेख किया गया है की देश के नागरिकों को स्वच्छ जल मिलना चाहिए.  पर हम इक एसे देश  के वासी है जहा के नेता महंगाई बढ़ने को जायज ठहराते हुए कहते हैं की जब लोग आइसक्रीम और पानी की बोतलों पर पैसा खर्च कर सकते हैं तो थोड़ी सी महंगाई बढ़ने पर इतनी आपति क्यों ?

इक बार सुनने पर शायद ये बात अजीब ना लगे पर जब गहराई से सोचेंगे तो पाएँगे की ये पानी की बोतलों का अम्बार हमारे आस पास लगा ही क्यों ? इसलिए की हमें प्लास्टिक की बोतलों में कई दिनों से पैक किया हुआ पानी स्वाद में बेहतर लगता है ? या इसलिए की हम बोतल का पानी पीकर बोतल के जिन्न जेसे कुछ हो जाना चाहते है ? दोनों ही तर्क हास्यास्पद है पर ये सत्य है की हम सब मजबूर है हम वो पानी पीते है क्यूंकि हमें लगता है मुंसीपाल्टी के नलों से आने वाले पानी से बोतलों का पानी साफ़ है. 

ये बात बहुत हद तक सच भी है घरों में आने वाला पानी सच में गन्दा होता है बहुत गन्दा, इतना गन्दा की उसे पीना तो बहुत दूर की बात है दो बार छान लेने के बाद भी नहाने के बाद एसा लगता है जेसे नहाकर नहीं निकले जेसे बालों में कहीं मिटटी सी है ये मुंबई जैसे महानगर का सच है गाँव और छोटे शहरों का सच कही ,कही बेहतर और कहीं बहुत भयानक हो सकता है .पीने के पानी का फिल्टर हर रोज पानी में आ रही गन्दगी की कहानी कहकर मुह चिढाता  है  जेसे अभी बोलेगा में भी अब इस गंदे पानी का साथी हो गया हू तुम लोग जल्दी बीमार पड़ोगे .....

कई लोग है जो आजकल घर में यूज़ के लिए भी  बोतलबंद पानी लाते हैं  पर रिसर्च  कहते हैं की  बोतलों में बंद ये जीवन हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर रहा है कई बार ये इतना पुराना होता है की स्वास्थ पर हानिकारक प्रभाव डालता है  साथ ही साथ ये हमारे नल के पानी से इतना महंगा है की कमी का इक बड़ा हिस्सा ये बोतलें गटक जाती है .मतलब अप्रत्क्ष रूप से हम पानी को पैसा पिला रहे हैं वो भी अपने स्वास्थ के रिस्क पर.
 ४ से ५ रु प्रति बोत्तल की लागत में तैयार होने वाला सो काल्ड मिनिरल वाटर हम १५ से २० रु देकर पी रहे हैं और ये बहुत बड़े प्रोफिट वाला धंधा भारत में तेजी से फेल रहा है क्यूंकि  लागत कम है और मुनाफा ज्यादा,सरकार चुप  है क्यूंकि उन्हें रेवेनयु  मिलता है लोग चुप है क्योंकि किसी को स्वास्थ की चिंता है किसी को पैसे की ज्यादा चिंता नहीं.

 चिंता ये नहीं है की हम बोतलबंद पानी पी रहे हैं ये चिंता होनी भी नहीं चाहिए क्यूंकि हम अपने शौक से ये बोतलबंद पानी नहीं पी रहे हम मजबूर हैं. सोचिये अगर हमें घरों में ,बाज़ार में,पर्यटन स्थलों पर , सभी जगह साफ़ और स्वच्छ जल उपलब्ध होता तो क्या सच में इतने लोग बोतलबंद पानी पीते जो आज पी रहे हैं ? तब भी लोग होते जो ये पानी पीते पर तब संख्या इतनी बड़ी नहीं होती और जो संख्या होती वो भी सिर्फ दिखावे वाली होती या बड़ी मजबूरी वाली. पर आम जनता आज दिखावे के लिए ये पानी नहीं पी रही  मजबूरी में पी रही है.

देश में इक बहुत बड़ा वर्ग है जो मिनरल वाटर के बारे में सोच भी नहीं सकता सोचने का सवाल ही नहीं उठता क्यूंकि दो जून की रोटी जुगाड़ने में उनका पूरा दिन निकल जाता है और पानी के लिए लगी लम्बी लाइनों में खड़े खड़े उनके घर के सदस्यों की आधी जिंदगी कट जाती है और सच मानिये पानी के लिए तरसने वाला ये वर्ग बहुत बड़ा है....कई लोग कह सकते है हर इंसान एसी लाइनों में नहीं खड़ा होता सच है नहीं होता पर किसी ना किसी तरह हम सभी पानी की समस्या से ग्रस्त तो है जाने अनजाने ही सही हम सभी या तो गन्दा पानी पी रहे हैं या बोतलों में बंद इस जल जिन्न को अपने गले से नीचे उतार रहे हैं....

बात ये नहीं की हम किस किस चीज़ के लिए लड़ सकते हैं पर क्या हमें, इस देश के सभी नागरिकों को साफ़ जल पीने का अधिकार भी नहीं है ? देश में हर साल बहुत बड़ा बजट पानी के लिए निर्धारित किया जाता है पर ये सारा पैसा बह बहकर  आज़ादी के इतने सालों बाद भी हमें पीने का साफ़ पानी नहीं दे पाया  ऊपर से बोतलबंद पानी के इस चस्के या मजबूरी ने धरती के इक बड़े हिस्से को कचरे से पाट दिया है यानि की दोहरी मार झेल रहे हैं हम सब गन्दा पानी पीते हैं और प्रदूषित भूमि के कारण भूमि प्रदुषण के दुष्प्रभावों को भी झेल रहे हैं ......

हम लोग कब तक सब चलता है का राग गाकर या हम क्या कर सकते हैं की ढपली बजाकर मूलभूत सुविधाओं और अपने मौलिक अधिकारों के लिए भी आवाज़ नहीं उठाएँगे ? क्यूंकि अगर हम इस देश के नागरिक होकर हर इक बात को यूँही नज़रंदाज़ करते रहेंगे तो फिर सरकार को ,दुसरे लोगो को दोष देने का क्या फायदा ... ये बोतलबंद जिन्न हम सबका पैसा, स्वास्थ्य और मौलिक अधिकार सब लील रहा है .....

( ये पोस्ट लिखते समय लेखिका  अपने ऑफिस में बोतलबंद  पानी पी रही थी और ये सोच रही है की बदलाव होना चाहिए क्यूंकि लेखिका भी उन मजबूर  लोगो में से एक है जिन्हें ऑफिस में बोतलबंद पानी पीना पड़ता है पर लेखिका अपने घर में बोतलबंद पानी नहीं पीती नल का पानी फिल्टर करके पीती है ...) ये लेख मीडिया दरबार पर भी देखा जा सकता है 

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Tuesday, July 17, 2012

कैसे होगा ये प्यार प्रिये ?

नया बसाएं अपना संसार प्रिये 
करे प्रेम प्रीत और प्यार प्रिये 

तुम चिड़िया सी चहक जाना 
मै भवरे सा गुनगुनाऊंगा
तुम चांदनी को आँचल देना 
मै सूरज की किरने लाऊंगा 
महक जाएगा घर बार प्रिये 
करे प्रेम प्रीत और प्यार प्रिये  

मेरे सपनो को आँगन देकर
ये प्रेम का सावन देकर 
उम्मीदों की डोर ना यु बांधो
ये प्रेम का बंधन देकर 
मै चिड़िया बन ना उड़  पाऊँगी 
शिकारी बेठे तैयार प्रिये
कैसे होगा ये प्यार प्रिये ? 

तुम्हे मोती सा छुपाकर रख लूँगा
सबकी नज़र बचाकर रख लूँगा 
तुम कोमल चंचल निर्मल हो 
नगीने सा सजाकर रख लूँगा 
रखो मुझपर विश्वास प्रिये 
सुन्दर होगा  संसार प्रिये 
करे प्रेम प्रीत और प्यार प्रिये  

तुम दुनिया से छुपाकर रख लोगे
मुझे घर में सजाकर रख लोगे 
अभी तो प्रेयसी हू मै तेरी 
दुनिया वालो के डर से मुझे
जागीर बनाकर रख लोगे 
मुझे प्रेम में साथी चाहिए
ना चाहू मैं  चौकीदार प्रिये 
कैसे होगा ये प्यार प्रिये ? 


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Monday, July 16, 2012

औरत की गोलाइयों से बाहर भी दुनिया गोल है..

गुवाहाटी की घटना ने मुझे आहत किया है वेसा आहत नहीं जैसा आम तौर पर लोग हो जाते हैं किसी अपने के साथ दुर्घटना हो जाने पर ..अब हम लोग उतने आहत होते ही नहीं लगता है मीडिया के नकली आंसुओं ने हमें भी कुछ उसी तरह के घडियाली आंसू बहाने ,ना बरसने वाले बादलों की तरह सिर्फ गद्गड़ाने वाला बना दिया है .मैं आहत हू क्यूंकि  हम सब एसे हो गए है , मैं आहत हू की आम जनता सिर्फ मूक दर्शक हो गई है ...
ज्यादातर लोग आहत है क्यूंकि कल को जब उनकी बहु बेटियों के साथ भरी सड़क पर एसा होगा तो लोग क्या एसे ही खड़े रहेंगे ज्यादातर लोग अपनी ढपली अपना राग गा रहे हैं . २,४ दिन में शायद लोग भूल भी जाए या कुछ और दिन याद रख ले फिर भूले ... 
पर क्या सच बात सिर्फ इतनी है की हम कितने दिन याद रखेंगे या कितनी जल्दी भूल जाएँगे ? अगर बात सिर्फ इतनी ही है बात को करना ही क्यों? क्यों हर जगह गुस्सा दिखाना  बोलना या बुरे शब्दों में कहे तो थोड़ी देर भोकना और फिर अपनी रोटी की जुगाड़ में लग जाना ? लगता है ना दिल पर एसी बुरी तुलना क्यों? पर सच मानिये दिल पर लग रहा है ये अच्छी बात है क्यूंकि जिनके दिल पर लग रहा वहा अभी रौशनी की किरण बाकि है ....

मुझे पिछले  उन सभी दिनों से लग रहा है जबसे ये घटना हुई है.  हर मिनिट हर क्षण लग रहा है  पढ़ रही हू देख रही हू सोच रही हू पर ये लगना बंद नहीं हो रहा घबराहट हो रही है अन्दर से....लोग अपनी अपनी अपनी शिकायतें कर रहे हैं किसी को पोलिस  से शिकायत  है ,किसी को उस भीड़ से शिकायत है जिसने विरोध नहीं किया, कुछ लोग अपनी ढपली लेकर महिलाओं को आत्म रक्षा सिखाने के गीत गा रहे हैं पर मुझे किसी से शिकायत नहीं बस शर्म है जो ख़तम नहीं हो रही शर्म है उस सोच पर जिसने कुंठित होकर घिनोना रूप धारण कर लिया है .

अजीब है ये बात की कुछ लोग लड़की के कपड़ों पर घर आने जाने के समय पर आपत्ति  उठा रहे हैं (इसमें महिलाएं  भी शामिल हैं) ..अजीब इसलिए नहीं की उन्हें आपत्ति  है अजीब इसलिए की एसी सोच लेकर वो जिन्दा है अभी भी ....एसे लोग बार बार सिक्के का दूसरा पहलु देखने की बात कर रहे हैं पर हम लोग कब तक सिक्के का दूसरा पहलु देखने की बात कर करके सिर्फ दूसरा पहलु  ही देखते रहेंगे ,कब तक समस्या की जड़ को छोड़कर इधर उधर भटकते रहेंगे? 

आहत  करती है  ये बात की लड़की के छोटे कपडे लडको को एसे कृत्य करने के लिए भड़का सकते है ...ये बात तो मैं मानती हू "दुनिया गोल है  पर गोलाइयों से बाहर भी इक दुनिया है", एक खुली साफ़ सुथरी  सोच है, ये बात पिछड़ी और संकुचित सोच रखने वाले लोग जाने कब मानेंगे ?
 एक लड़का जब बरमूडा पहनकर घर से निकलता है तो शरीर का दिखने वाला हिस्सा होता है २ टांगे, हाड मॉस से बनी हुई और जब एक लड़की वही बरमूडा पहनकर घर से निकलती है तो उन टांगों के साथ एसा क्या दिखता है लोगो को जिसका इतना विरोध है अब इसमें दोष किसका है किसी लड़की का  या गन्दी नज़रों का ये सब जानते है पर मानने में उन्हें संस्कृति का हास दिखाई देता है !

क्यों एसे विचार रखने वाले लोग जीभ लपलपाने वाले घटिया और कुंठित लोगो को पागल कुत्तों की तरह बंद कर देने का विचार नहीं रखते? जब पागल कुत्ता राह चलते को काट लेता है तो दोष पागल कुत्ते को दिया जाता है और एक कुंठित मानसिकता वाला इंसान राह चलती लड़की की इज्जत उतारने की कोशिश करे तो दोष लड़की का क्यों?
एसे लोगो को द्रोपदी के चीरहरण का दोष भी द्रोपदी को देना चाहिए... कह दीजिए उसी की कोई गलती रही होगी जो भरी सभा  में उसे चीर हरण के लिए लाया गया फिर कृष्ण को उसकी अस्मिता बचाने आने की जरुरत ही क्या थी ?

सिर्फ कुछ अंगों के अलग होने से महिला पुरुषों की भोग की वास्तु मानी जा सकती है  क्या हड्डियों  के ढांचे पर मांस की मात्रा का अंतर उसे इतना अलग बना देता है की भरी सड़क पर उन अंगों को निर्वस्त्र  करने की कोशिश की जाए ? 

हम माने या ना माने अंतर सोच का है ना की रहन सहन का ....और उससे भी बड़ा अंतर है सामाजिक पतन का जो बढ़ता जा रहा है ,किसने हक दिया पुरुष नाम के प्राणी को की वो एक खाप पंचायत बनाए और वहा स्त्रियों से सम्बन्धित निर्णय इस तरह ले जेसे वो अपने पालतू जानवरों के लिए निर्णय ले रहे हो ? और अगर वो सच में स्वयं को संरक्षक माने बेठे हैं तो रक्षा कीजिए एसे नज़रबंद मत कीजिए या फिर वो सुरक्षा नहीं कर सकते तो कृपा करके अपना खिताब वापस दे दे या कह दे की महिलाओं को क्या संरक्षित प्राणी घोषित करना चाहिए बाघों की तरह ? अगर यही चाहते हो तो ये भी करके देख लो क्यूंकि बाघ भी बचे नहीं रह सके क्युकी शिकारी की सोच नहीं बदली  .....

क्या कुछ अंगो को छुपा देने भर से औरत की इज्जत सच में बच जाएगी ? किसने कहा ये बात की इज्जत सिर्फ औरत की होती है जेसी इज्जत औरत की होती है ठीक वही इज्जत आदमी की भी होती है अंतर बस इतना है की औरत की इज्जत का एसा हव्वा  बनाया जाता है की वो अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा उस इज्जत को बचाने के बारे में सोचने में लगा देती है और आदमी उसे लूट लेने के बारे में सोचने में ...

मीडिया को दोष देना थोडा बनता है क्यूंकि उनके लिए जब तक कोई खबर टी आर पी बढ़ने वाली होती है वो महिला का अंग अंग जूम करके केमेरा में दिखाएंगे और जेसे ही वो टी आर पी कम हुई वो दूसरा कोई किस्सा ढूंढ लेंगे जूम करने के लिए पर हम लोग कब तक इस पेन ,जूम ,लॉन्ग शोट  में उलझे रहेंगे हमारी अपनी आत्मा नहीं कहती विरोध करो ख़ुद विरोध करो,क्या महिलाओं की ख़ुद की आँखों की शर्म इतनी मर गई है की एसी घटनाओं पर विरोध तक नहीं जाताना चाहती ?

माता पिता के दिए संस्कारों को क्या कहना कोई माता पिता अपने बच्चे को रेप  करना नहीं सिखाते पर क्या वो महिलाओं की इज्जत करना भी नहीं सिखा सकते? अगर वो इतना भी नहीं सिखा सकते तो उनकी बात करना ही बेकार है क्यूंकि एसे माता पिता को नवजात बेटियों को नहीं अपने नवजात बेटों को कूड़े के ढेर में फेकने वालों की श्रेणी में मान लेना चाहिए क्यूंकि जब वो मूलभूत बात नहीं सिखा सकते तो जनम देकर वो सिर्फ  समाज  बिगाड़ रहे है और उनका भविष्य भी अँधेरे की गर्त में ही समझिए...

इतनी बातों के बाद भी अगर ज्ञान चक्षु नाम की चीज  या दिल नाम की चीज पर कोई असर नहीं पड़ता तो जाइये वापस अंधेरों में और खोज लाइए कुछ और कुतर्क में इंतज़ार करुँगी ...क्यूंकि महिलाओं के पास ज्यादा रास्ते नहीं है या तो अब विरोध के लिए उठ खडी हो या दबती जाए कुचलती जाए और शरीर की गोलाइयों वाली सोच में ख़ुद को और अपनी सोच को भी  कैद कर लें ...
(शीर्षक निखिल आनंद गिरि की जल्दी ही पोस्ट होने वाली कविता से प्रेरित )
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Wednesday, July 11, 2012

क्या तुम मेरा तुम्हारे जेसा हो जाना स्वीकार कर सकोगे...?

तुम अट्टालिकाओं के चन्द्रमा हो सकते हो जिसकी चांदनी छन  छन कर रूपगर्विकाओं के आँचल पर सोंदर्य की वर्षा करे! पर मेरे लिए तुम चाँद की खुरचन की तरह हो जिसका कण कण आत्मा को शीतल कर  दे ,सारी दुनिया के लिए प्रेम भरे गीत हो सकते हो जो होंठों पर आते ही मन को श्रृंगार रस से भर दे पर मेरा मन तो तुम्हे विरह गीत की तरह अंतर्मन में उतार लेना चाहता है नहीं चाहता तुम्हे गुनगुनाना ,अगर गुनगुना लिया तो शब्द हवा में फेलकर जाने कहा तक पहुँच जाएँगे और दूर तक की हवा आद्र हो जाएगी.
 इसमें मेरा ही स्वार्थ निहित है कैसे तुम्हे सारी दुनिया में गाकर  अन्य होंठों को तुम्हारा स्पर्श करने दू ? .

तुमसे सबकी आशा हो सकती है की तुम कीचड में कमल की तरह खिलो पर मेरा प्रेमी मन तुम्हे कष्ट  भरी दुनिया में नहीं देख सकता चाहे दुनिया के भले के लिए ही पर में तुम्हारे कीचड में उतर जाने की कामना कैसे करू ?  तुम आत्मा  का दर्पण बन जाना चाहते हो ,पर जानते हो ना इतना पवित्र और स्वच्छ हो जाना तुम्हे मुझ से दूर कर देगा क्यूंकि मेरे आत्मा तुम्हारे प्रेम के मोह में पड़ी हुई है और और इक निर्मोही आत्मा ही इतनी पवित्र हो सकती है बताओ तो भला  मै तुम्हारे  पवित्र हो जाने के लिए अपना प्रेम कैसे न्योछावर कर दू....?

सच कहती हू तुम्हे शिखर कलश सा देखना मेरे ख्वाबों की दुनिया है . मेरा अपना क्या ? कुछ नहीं .कुछ नीव के पत्थर भी तो चाहिए जो ईमारत को मजबूती दे आधार दें बस मुझे वही बन जाना है तुम्हारे लिए  .... पर तुम्हे शिखर कलश बना लेने और तुम्हारी ईमारत की नीव का पत्थर बनकर भी मै तुमसे अपना प्रेम नहीं त्याग सकती ना ही ये मोह त्याग सकुंगी. तुम मुझे स्वार्थी  कह सकते हो ये सारा संसार भी मुझे स्वार्थ मै नेत्रहीन  हुई जान सकता है  परन्तु मै तो बस प्रेम की अंधी हू ,प्रेम की मारी हू .

तुम शांत हो सागर  की तरह पर तुम्हारी लहरें  मुझे विध्वंस  का आभास देती है मै उन्मुक्त हू  नदी की तरह पर मेरी धारा शांत है जानती हू ये हमारे व्यक्तित्वों का विरोधाभास  है पर तुम सागर हो जाओ ये मैं कैसे स्वीकार करूँ  ? मेरी तरह हर नदी की तुम शरणस्थली  बन जाओ ये मेरा मोहि मन स्वीकार नहीं करता .काश मै भी तुम्हारी तरह सारे संसार को अपना कर लेना और संसार का अपना हो जाना स्वीकार कर पाती. बताओ तो भला अगर मैं एसी हो जाऊ तो क्या तुम मेरा तुम्हारे जेसा हो जाना स्वीकार कर सकोगे...?

तुम हर बार की तरह मौन हो  शायद कुछ कहना नहीं चाहते या शायद तुम्हारा मौन कही शब्द जंगल में अस्तित्व खोज रहा है और मेरी मुखरता ? मेरी मुखरता तो  अल्पविरामों और पूर्णविरामों के बीच अपने मायने बदल रही है  ना तुम्हारा मौन "शब्द अस्तित्व" पाता है ना मेरी मुखरता अर्थों में बदल पाई है . और हम दोनों की यही स्तिथी वाचालता  और घोर शांति दोनों ही स्तिथियों से ज्यादा भयानक है ...


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Friday, July 6, 2012

ये मेरे गाँव वाली बरसात नही ...

ये कविता मैंने नहीं लिखी मेरे हसबेंड ने लिखी है मुझे बहुत अच्छी लगी इसलिए यहाँ मेरे ब्लॉग पर साझा कर रही हु 

कुछ  कमी  सी  है  इस  सावन  में ,
इसमें  अब  वो  बात  नहीं ,
एसी  वैसी  जेसी  भी  हो ,
ये  मेरे  गाँव  वाली  बरसात  नही ...

धरती   भीगे  अम्बर  भीगे ,
ये  मन  क्यों  सुखा  रहता  है ,
नदिया , नाले  सब  कोई  झूमे ,
मन  का  झरना  क्यों  नही  बहता है ,
अंतर्मन के  छालो  को  भर  दे ,
इसमें  अब  वो  करामात  नही ,
एसी  वैसी  जेसी  भी  हो ,
ये  मेरे  गाँव  वाली  बरसात  नही ...

ए सी  के  बंद  कमरों  में ,
सारे  एहसास  मर  जाते  है ,
येस सर  येस  सर  करते  करते ,
हम  कितने  समझौते  कर  जाते  है ,
हंसी , ख़ुशी  जैसा  कुछ  है  लेकिन ,
अब  दिल  में  वो  जज़्बात  नहीं ,
एसी  वैसी  जेसी  भी  हो ,
ये  मेरे  गाँव  वाली  बरसात  नही ...

तन  भी  भीगे  मन  भी  भीगे ,
एसे  अब  हालात  कहाँ ,
पैसो  की  इस  भाग  दौड़  में ,
जीवन  जीने  का  वक़्त  कहाँ ,
बच्चो  की  जिद  में  भी  अब  तो ,
बारिश  में  भीगने  की  बात  नही ,
एसी  वैसी  जेसी  भी  हो ,
ये  मेरे  गाँव  वाली  बरसात  नही ...

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Tuesday, July 3, 2012

उसकी आँखों मै ख़ुद को लगी नई मैं

 आज फिर कुछ बिखरे मोती संजो लाइ हू कुछ पक्के होंगे कुछ नकली से लगे शायद ....पर कहीं न कहीं तो  सजाने के काम आए हैं ....

१.आइना अब तलक अजब सा अक्स दिखाता था ,
उसकी आँखों मै ख़ुद को लगी नई मैं
उसके आने से मेरे वजूद को भी शब्द मिल गए ,
उसके ना आने तक सदा रही अनकही मै
२.
वो एसे फूल की खुशबु की बात करता है ,
जो मेरे दिल में है उसके दिल में कभी खिले ही नहीं
नाराज़ रहकर फिर भी भला लगता है
पर यु अजनबी हुआ जेसे हम कभी मिले ही नहीं
३.
हमने चेहरों के बदलने की खबर तो सुन ली थी
 क्या पता था ज़मीर भी बदलते हैं लिबासों की तरह
हर पन्ना , हर नज़्म ,हर शब्द बदल लेते है लोग ,
सिर्फ कलेवर  नहीं बदलता किताबों की तरह
तुम रहो दिल में इसमें तुमने किया ही क्या है
बात तब है तुम दिल से रूह तक जाओ....
नहीं देना है दिल ना दो  तुम्हारी अपनी मिलकियत है
मगर है शर्त इक मेरा दिल सलामत छोड़ कर जाओ

तेरी मुस्कानों की ख़ातिर हम दुनिया से बगावत कर देंगे
मेरी हर ख्वाहिश ना यूं मानो ,हम चाँद की ख्वाहिश कर लेंगे
ये दिल बड़ा बेदर्दी है नहीं बात मानता गैरों की
तुम इक नज़र प्यार से देखो हम दिल से  सिफारिश कर देंगे

मेरे रस्तों पर पर तेरे पैरों  के निशाँ से दिखते हैं
यूँ हमरस्ता ना हो जाओ हमसफ़र तुम्ही को कर  लेंगे
हमें  हर चेहरे में अब तेरा ही अक्स दिखाई देता है
ज़रा अपना सा करके रखो ना जाने किसके संग चल देंगे

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