Tuesday, September 25, 2012

शेक्सपीयर का जुलियस सीज़र बनाम अन्ना और उनका पी आर

शेक्सपीयर का लिखा जुलियस सीज़र पढ़ रही थी कल रात ...पूरा नाटक नहीं कहानी रूपांतरण पढ़ा मैंने और पढने के बाद अलग अलग कई विचार मन में आए  सबसे पहले तो जिन लोगो ने इस नाटक को नहीं पढ़ा (मेरे जेसे कई लोग होंगे क्यूंकि मेने कल पहली बार ही पढ़ा ) वो जान ले की पूरी कहानी सीज़र की रोम विजय और उसके विरुद्ध षड़यंत्र रचने वाले विद्रोहियों के आस पास घूमता है ,उसके अपने खास लोग उसे खून से नहला देने  में कसर नहीं छोड़ते और उसका खास विश्वासपात्र ब्रूटस ही उसके खून से अपने हाथ रंगकर उसके मृत शरीर को सभा में ले जाता है और जनता के सामने ये सिद्ध करने की कोशिश करता है की  सीज़र अतिमहत्वाकांशी था इसलिए उसे मौत के घात उतारा गया ....

जब आप इस नाटक को पढ़ते हैं तो सीज़र की मौत का इक बहुत बड़ा कारण कैसियस  नाम का उसका वो बचपन का मित्र है जिसकी महत्वाकांशाएं काफी बढ़ जाती है और सीज़र के प्रति अपनी जलन के चलते वो उसके कई वफादारों को उसके खिलाफ भड़काता है  और विद्रोह की नीव रखता है और अंत में उसके ही वफादार मित्र ब्रूटस को लोगो के आगे खड़ा कर देता है ये समझा देने के लिए की सीज़र के साथ  जो हुआ वो सही है और उसी की गलतियों का नतीजा है ...अब चूँकि ब्रूटस की जनता के बीच अच्छी साख है और लोग उसे मानते हैं वो उसके शब्दों से प्रभावित हो जाते हैं  और सीज़र की मौत को सही मानने लगते हैं ...

ठीक उसी समय उसका इक सच्चा वफादार "ऐल्बिनस" 
सीज़र की लाश को हाथ में उठाए वहा आता है और लोगो को बताता था की सीज़र ने उनके लिए क्या क्या अच्छा किया है किस तरह उसने अपनी वसीयत में अपने निजी धन का बड़ा हिस्सा अपनी प्रजा के नाम कर दिया है और अपने निजी मनोरंजन  स्थल  जनता के आनंद  के लिए सार्वजनिक कर दिए हैं..किस तरह वो राजमुकुट धारण करने से मना करता है ...और ये सब बताकर वो मरे हुए सीज़र को विलेन से हीरो बना देता है ...
"ऐल्बिनस"  यहाँ कुछ अलग नहीं करता पर वो वही लोगो को सब बताता है जिसमे से कई बातें वो पहले से जानते है और जो नई बातें वो बताता है वो सीज़र के लिए लोगो के मन में सहानुभूति पैदा कर देती है और जनचेतना उमड़ पड़ती है ...
और अंत वही सारे विद्रोही जनता के हाथो  मारे जाते है और ब्रूटस अपनी करनी पर पछताता हुआ स्वयं आत्महत्या कर लेता है ....

पूरे नाटक के अपने अलग  अलग सार निकाले जा सकते है, भले आदमी या बुरे आदमी से जोड़ा जा सकता है ,विद्रोह के पीछे की सोच से जोड़ा जा सकता है पर में पब्लिक रिलेशन की विद्यार्थी रही हू और इस नाटक को पढ़कर मैंने इसे पी आर से जोड़कर देखा...इक मरा हुआ (विद्रोहियों द्वारा मार दिया गया ) व्यक्ति जो नाटक की पृष्ठभूमि से भला व्यक्ति दिखता  है (वो है या नहीं ये कहना अभी मेरे लिए मुश्किल है ) अपने मरने के बाद विद्रोहियों द्वारा अति महत्वकांशी सिद्ध कर दिया जाता है जनता उसका विरोध करती है उसे बुरा समझती है पर तभी उसका वफादार उसकी अच्छाइयाँ गिनकर उसे हीरो साबित कर देता है ...सारा खेल पी आर का है अंतर बस इतना है की ये पी आर  (इमेज बिल्डिंग ) सीज़र की मौत के बाद किया गया...अच्छी और सोची समझी रणनीति ने सीज़र को लोगो के मन में अमर बना दिया ...

अब इस पूरी घटना को वर्तमान परिद्रश्य में अन्ना के आन्दोलन के साथ जोड़कर देखा जाए तो हम पाएँगे की अन्ना भले और देशभक्त व्यक्ति  है उनका आन्दोलन भी सही दिशा में जा रहा था लोग टीम अन्ना के साथ थे , देशभक्ति की बयार चल रही थी  भ्रष्टाचार के खिलाफ लाम बंदी हो रही थी सब ठीक था अचानक आन्दोलन की हवा निकल गई , टीम में फूट जेसे आसार दिखने लगे अलग अलग रस्ते दिखने लगे लोगो का विश्वास डगमगाता दिखने लगा...
यहाँ में टीम अन्ना की कमियों खामियों की बात नहीं करुँगी पर इक बड़ी गलती जो रही वो थी सही ढंग से किए गए पी आर की कमी ....
ना ढंग से इमेज  बनाई  गई जो बना ली गई उसे ठीक से संभाला नहीं गया ...अलग अलग लोग अलग अलग बयान और अलग अलग निकले गए अर्थो ने कई अर्थों का अनर्थ कर दिया ...इक महान बनता जा रहा कार्य ,आम सा रह गया इक आन्दोलन अंधड़ जेसा आया और  चला गया वो भी लोगो को कई गुटों में बांटकर .....

जबकि होना ये था की आन्दोलन के दौरान और उसके बाद भी सही ढंग से इसका पी आर किया जाता ..अलग अलग लोगो को बयान देने से रोका जाता , प्रचार प्रसार के लिए सही रणनीति बनाई  जाती , विरोधियों के बयानों का सही सही योजना के तहत जवाब दिया जाता तो इक बेहतरीन आन्दोलन एसे बुलबुले की  तरह फूटता नहीं  बल्कि लम्बे समय तक चलता और अपना उद्देश्य भी पूरा करता ....
अन्ना का आन्दोलन जब दम तोड़ता दिख रहा था उस समय भी अगर सही ढंग से इमेज बिल्डिंग की जाती ,मीडिया का सही प्रयोग किया जाता ( ना की उसके विरोध में बयानबाजी की जाती ) अपनी ढपली अपने राग की तरह आन्दोलन को बार बार ना मोड़ा जाता तो सफलता के चांस कई गुना बढ़ जाते ...

खैर  ! आगे की कहानी तो वक़्त ही बताएगा पर जिस तरह सीज़र को  "ऐल्बिनस" ने महान साबित कर दिया ठीक वैसे ही अन्ना को भी एसे आदमी की जरुरत है जो आन्दोलन को फिर से सही रुख में मोड़ दे क्यूंकि ये सच है आन्दोलन करना अलग बात है और छवि निर्माण करना अलग और उस छवि को सकारात्मक बनाए रखना अलग ....आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा आलेख है!

Madan Mohan Saxena said...

अच्छा लेख.

प्रवीण पाण्डेय said...

एक व्यक्ति के न जाने कितने सत्य दिखाता है यह समाज..

Rajesh Kumari said...

बहुत बेहतरीन आलेख बधाई आपको

Yashwant R. B. Mathur said...

आलेख अच्छा है लेकिन 1965 के भारत -पाक संघर्ष के दौरान कई सैनिकों को ट्रक मे मरने के लिये छोड़ कर या कहें कि मैदान छोड़ कर भाग जाने वाला ट्रक ड्राइवर (अन्ना)देश भक्त कैसे हो सकता है यह बात समझ नहीं आई।

सादर

Unknown said...

भाई यशवंत माथुर जी, टिप्पणी इस शर्त पर स्वीकारें कि मुझे अन्ना समर्थक का लेबल ना दिया जाए। लेकिन ये समझ नहीं आया कि आपके इस ज्ञान का सोर्स क्या है हजारे सेना छोड़कर भागे थे। ये एक विवादास्पद टिप्पणी है और ऐसी बात लिखने के साथ आपको स्रोत का जिक्र करना चाहिए। और कनुप्रिया जी, ये आपकी जिम्मेदारी है कि ब्लॉग पर ऐसी टिप्पणियां आने के साथ आप भी सफाई मांगें। दरअसल होता ये है कि जो व्यक्ति आमतौर पर इंटरोगेटिव प्रवृत्ति का नहीं होता वो इन जानकारियों को सत्य मानकर सबकांशस माइंड में बैठा लेता है और बाद में कहीं भी इसका क्लेम करता है कि मैंने पढ़ा है कि हजारे भगोड़ा है। अपनी तमाम स्टोरीज के दौरान मेरा मिलना अन्ना से हुआ है और स्पेसिफिकली इस विषय पर चर्चा हुई है। मैं बता दूं कि भगोड़ा होने की बात सत्य नहीं है।