Monday, September 24, 2012

है बड़ा प्यारा हमारा प्रेम

गाहे बगाहे याद आ जाता है यूँ 
दर्द का ढाला बिचारा प्रेम...
है यहाँ सारे  सिपहसालार और 
विरह का मारा हमारा  प्रेम

वो कभी जो इश्क के उस्ताद थे 
लगता उन्हें अपना आवारा प्रेम 
छोड़ दे कैसे बीच मझधार में 
नाज़ से पाला संवारा प्रेम 

हो भले  सबकी आँखों की किरकिरी 
अपनी आँख का तारा ,हमारा प्रेम 
उथला नहीं बहता भरे बाज़ार में
गहराई में हमने उतारा प्रेम 

चाँद की ख्वाहिश ना खुशियों की तलब 
दरवेश बंजारा हमारा प्रेम 
हम मिले या ना मिले बना रहे 
ये यादों का हरकारा दीवाना प्रेम ....

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अत्यन्त सुन्दर कविता..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सराहनीय सुंदर कविता,,,,कनु जी,,,,

RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता

रश्मि प्रभा... said...

चाँद की ख्वाहिश ना खुशियों की तलब
दरवेश बंजारा हमारा प्रेम
हम मिले या ना मिले बना रहे
ये यादों का हरकारा दीवाना प्रेम .... प्रेम जिंदा रहे हमारे नाम में

Anju (Anu) Chaudhary said...

कुछ कुछ प्रेम की दीवानी सी कविता ...बहुत खूब