Tuesday, March 20, 2012

खाक कर दे कोई Let me die

parwaz:let me die
वो लड़की आम लड़की है ही नहीं...आम मतलब इकदम आम जेसी लोग अपनी बहन बेटी के रूप में चाहते हैं ....पर वो खास भी नहीं है ...मतलब जेसी लड़की को लोग अपनी प्रेमिका बनाना चाहते है वेसी भी नहीं...बस अलग सी कही बीच में अटकी सी हुई ..जैसे भगवान ने ये कहकर स्वर्गनिकाला दे दिया हो की तू उतनी अच्छी नहीं की तुझे यहाँ रखा जाए और अब धरती के लोग उसे किसी भी श्रेणी में रख पाने मैं ख़ुद को सहज महसूस नहीं करते....वो लड़की ख़ुद से नफरत करती है शायद उतनी नफरत जितनी कभी कभी शम्पैन की बोत्तल ख़ुद से करती है ...की लोग पीते भी ही गाली भी देते हैं कोई सीने से नहीं लगाता बस होंठो से लगाते है और फिर उन्ही होठो से गाली देते हैं....कुल मिलाकर वो मिसफिट की केटेगिरी में रखी जा सकती है परम्परागत लोगो में भी मिसफिट और आधुनिक लोगो में भी मिसफिट.....
ऐसी  लड़कियों को सुकून का जीवन काटने दौड़ता है ये बस बेचैनियाँ चाहती है  ,चाहती है की इनकी मौत ऐसे गहरे प्यार में हो की इन्हें सुध न हो प्राणों के चले जाने की इनकी आखरी इच्छा कुछ खास नहीं होती बस सारी उम्र की पूँजी लगाकर ये चाहती है इन्हें चन्दन की लकड़ी में जलाकर इनकी रूह की ,इनके प्यार की सारी महक को दुनिया भर में फैला दिया जाए ....

अब कुछ पंक्तियाँ....


 ये रात दिन का चैन  सुकून अच्छा नहीं लगता
सब सुकून ले ले मुझको बैचेनी दे  दे  कोई
वो सारे खवाब जो आते है पूरे नहीं होते
सारे ख्वाब लेले जमीन पथरीली दे दे कोई

ये सारे शोर , खामोशियाँ ,बेबाकियाँ,बेताबियाँ
महज जलते है दिल में सब, बाहर आ नही पाते
ये जल जल कर बुझ जाते है सारे शब्द होंठों पर
सारे शब्द ले ले बस आंसू की दो बूँद दे दे कोई

 अन्दर की राख कहीं हवा को तरसती है
न तो आग जलती है न बदली बरसती है
आग को फिर से जला दे मन के अन्दर ही
या फिर राख को इतना बढ़ा दे की खाक कर दे कोई


इतर की खुशबु अच्छी ही नहीं लगती
बस तमन्ना है कही इतर बन महक जाने की
या तो इतर करके फेला दे मुझको  सारे आलम में
या चन्दन सी लकड़ी  सा करके आग दे दे कोई ...

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

15 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

तमन्ना है कहीं इतर बन महक जाने की....

ऐसी कितनी तमन्नाएं पलती हैं "मिसफिट " लड़कियों के दिल में...और मर भी जाती हैं...

kanu..... said...

sach kaha aapne

सदा said...

अनुपम भाव संयोजन ।

रविकर said...

सांस फूलने का लगा, बाबू जी को रोग |
किन्तु दवा खाएं नहीं, रहे नियम से भोग |

रहे नियम से भोग, हाल है मिसफिट जैसा |
बिन हँफनी की देह, लगे है जीवन कैसा |

मिसफिट है बेजार, खाक जीवन को कर दे |
कहीं जाय ना हार, रंग अलबेले भर दे ||

kanupriya said...

bahut bahut dhanyawad aap sabhi ka

vandana gupta said...

मिसफ़िट की श्रेणी मे रखी जाती हैं……………सारी कहानी यहीं सिमट गयी।

Nirantar said...

itnaa niraash naa ho
koi naa koi aag bujhaane waalaa bhee
aa jaayegaa ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत खूब


my resent post

काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

रश्मि प्रभा... said...

behtareen

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा आपने, खास होने में चैन नहीं है।

abhi said...

Beautiful!! :)

mridula pradhan said...

bahot sunder likhi hain aap.

दिगम्बर नासवा said...

कभी कभी बैचेनियाँ और बेसकूनी अच्छी लगती हैं ... येअही तो आग भी लगा सकती हैं ...

Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता said...

bahut accha likha hai - alag sa kuchh

aabhaar

Smart Indian said...

बहुत बढिया!