Monday, December 19, 2011

बोलो चलोगे मेरे साथ ?will you come with me?

मोहब्बत में गिरफ्तार ना होना तुम्हारे बस में ही नहीं था ना मेरे बस में था....तुम्हे क्या जंच गया या मुझे क्या भला लगा अब इस सब की बातें बेमानी सी लगती है....अच्छा तो बस ये लगता है की इक गहरी सुरंग हो अँधेरे से भरी और हम दोनों हाथ थामे घने अँधेरे मैं इक दुसरे के साथ चलते जाए....बस अहसास हो इक दुसरे का, पर इक दुसरे को देख ना सके बस हाथ में हाथ महसूस हो और हम दोनों बस इक दुसरे के साथ में मगन चले जा रहे हो बस चले जा रहे हो...तभी अचानक से कही से इक बारीक सी रौशनी की किरण दिखाई दे जो हम दोनों के चेहरे पर देखे जा सकने जितनी रौशनी डाले ....और ! और एसा महसूस हो जेसे हम दुसरे को पहचानते ही ना बरसो से देखा ही ना...बुढ़ापे की लकीरें सी दिखाई दे चेहरे  पर जैसे बरसो से चल रहे हो और कितना समय निकल गया इस अहसास ने छुआ तक ना हमें....बस उम्र का कुछ असर दिखे. तुम मुझे देखकर थोडा सा मुस्कुराओ और  मै अपनी चिर परिचित शैली में  तुम्हारे सर में हाथ फेरकर मुस्कुराते हुए  कहू - आपके तो बाल सफ़ेद हो गए....और तुम ? तुम बस अपने अंदाज़ में गुस्सा करते हुआ बोलो बाल मत बिगाड़ मेरे.....और में हमेशा की तरह रुआंसी हो जाऊ.....बस वही उसी जगह इक हंसी खेल जाए दोनों के चेहरों पर और वो रौशनी चली जाए...बस वही उसी जगह मैं तुम्हारा हाथ पकडे हुए उसी रौशनी के साथ इस दुनिया से चली जाऊं ......वही तुम्हारी मुस्कुराती सूरत अपनी आँखों में लिए  हुए....और तुम भी बची हुई सारी उम्र मेरी वही मुस्कुराती हुई सूरत याद रखो.....बोलो क्या कहते हो?चलोगे मेरे साथ उस सुरंग में.........?

....गुस्सा आ रहा है ना ? जानती हू तुम्हे ये मरने की बातें पसंद नहीं....पर में क्या करूँ मै हमेशा से तुम्हारी बाँहों मै मुस्कुराते हुए दम तोडना चाहती हू ,चाहती हू साँस की डोरी ऐसे  अचानक से टूट जाए  जैसे बचपन में बनाया हुआ हमारा चुविंगगम  का बबल अचानक से फूट जाता था ....और उसके बाद भी हम मुस्कुराते से रहते थे....ठीक वेसा ही कुछ तुम्हारे साथ हो......तुम जानते हो नशा मैं  नहीं करती पर शायद अब महसूस कर सकती हू की मालबोरो का क्या असर होता होगा लोगो पर और २ पेग व्हिस्की क्या असर करती होगी.... लोग कहते है शराब का नशा होता है पर मोहब्बत और नफरत का नशा भी उतना ही गहरा होता है या देखा जाए तो ज्यादा गहरा होता है  रम तो चढ़कर उतर सकती है पर मोहब्बत बस चढ़ती ही जाती है....चढ़ती ही जाती है...

.सच कहती हू ये मुंबई का मौसम मेरी जान ले लेगा कोई बदलाव ही नहीं...बस बरसात और गर्मी . सर्दी जैसा तो कुछ है नहीं और बरसात को  भी क्या सावन जैसी कहू... बस बरसात सी होती है कुछ सावन जैसा नहीं....जानते हो कभी सपना देखती थी इक आम का बगीचा हो जिसमे झूला हो और हम दोनों उस पर बैठकर झूलें...जानती हू अगर तुमने सुना तो तुम हसोगे और कहोगे  बेंडी(पागल) है तू तो एसे फ़िल्मी सपने ना देखा कर थोड़े प्रक्टिकल ख्वाब देख. ठीक वैसे ही जैसे जब मैंने इक बार तुम्हे कहा था मैंने सपने मैं २५ रूपए के सिक्के देखे तो तुमने  कहा था सिक्के मैं भी देखता हू कभी कभी पर १,२ रूपए के.... तेरे सपने हमेशा हवाई ही होते है.....सच ही कहते हो तुम हवाई सपने देखती हू....जैसे हम तुम दोनों सारी दुनिया से दूर इक उड़न खटोले में जा रहे हो....और अचानक से तेज़  हवा आए और उड़न खटोला पलट जाए  दोनों जैसे बहुत पास से मौत को देखे .....तुम कसकर मेरा हाथ थाम लो.... ठीक उसी पल तुम इश्वर  से मेरी लम्बी उम्र की दुआ मांगो औरमैं हमेशा की तरह की अपनी बची हुई उम्र तुम्हारे नाम कर दू....तुम नीचे गिरते हुए किसी पेड़ पर अटक जाओ और मैं? मेरा शरीर तुम्हे कभी ना मिले क्यूंकि मैं जानती हू तुम मुझे एसे नहीं देख सकते ..शांत, कुछ ना बोलती हुई ,तुम्हे तो मेरे बक बक करने की आदत हो गई है ना......?

बस में वही से सीधे ऊपर चली जाऊ....पर अपनी आत्मा की मुक्ति डोर तुम्हारी सासों के साथ बांध जाऊ.....और उसी शय में परी  बनकर  मेरी बची हुई उम्र जो मैंने तुम्हारे नाम की थी उसके ख़तम होने का  इंतज़ार करू....सच कहती हूँ मैं बिना दुःख दर्द के बस तुम्हारे साथ का इंतज़ार करुँगी....तुम कोई जल्दी मत करना....तुम्हारा इंतज़ार भी मेरे लिए प्यार से कम ना होगा.....सोचो अगर ये सपना सच हो तो चलोगे मेरे साथ उस उड़न खटोले में ? बोलो क्या कहते हो?
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

काश कोई जीना सिखाये, मारने वाली की कमी कब रही है यहाँ।

vandana gupta said...

चाहतो के पंख अजब होते हैं।

Smart Indian said...

25 रुपये के सिक्के! :)

देवेंद्र said...

कुछ भी कह लें , पर जीने की एक उम्मीद व बहाना तो आजीवन बना ही रहता है।

Unknown said...

मोहब्बत की चाशनी में लिपटी यह ख़ूबसूरत पोस्ट पढ़कर मज़ा आ गया कनुप्रिया जी साथ ही मोहब्बत के मारों के लिये मुनव्वर राणा साहब का लिखा एक शेर भी याद आ गया...कि
"हम छायादार पेड़...ज़माने के काम आये
और जब सूखने लगे..तो जलाने के काम आये"

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ...

संजय भास्‍कर said...

क्या बात है!!!!! कितनी सकारात्मक बात

Pallavi saxena said...

गहन अभिव्यक्ति ....मगर इन भवनों को महसूस करने के लिए क्या मारना वाकई ज़रूरी है ? मुझे नहीं लगता :)