Monday, December 26, 2011

आस का दीपक जलाना चाहती हूँ

 आस का दीपक जलाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ 

कोई पलकें ना बिछाए
फूल चाहे ना खिले
बहार का मौसम चाहे
ना मिले आकर गले
मैं सुप्त खुशियों को जगाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ..


ना सुने व्यथा कोई
ना कोई पथ-कंटक चुने
आग सी तपती धरा पर
साथ कोई ना चले
ख़ुद ही स्वयं का संग निभाना चाहती  हूँ 
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ...

कोई चाहे सुनकर मुझे
अनसुना सा कर चले
मेरे शब्दों में अब चाहे
प्रेम सागर ना ढले
फिर भी कोई गीत गाना चाहती हूँ 
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ ....

पंथ का भटका मुसाफिर
लौट मुझ तक  आए ना
पर मुसाफिर बिन साथी के
उम्र भर रह जाए ना
मैं हर मुसाफिर का ठिकाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ .....

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

22 comments:

Prakash Jain said...

Behtareen Prastuti....Bahut sundar bhav..."Supt khushiyon ko jagana chahti hoon, muskurana chahti hoon..."

Sadaiv Muskurate rahein...


www.poeticprakash.com

Harshal Patel said...

Nice poem...Touch to deep heart....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुप्त खुशियों को जगाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ.

बहुत सुन्दर रचना....
सादर बधाई...

vandana gupta said...

आस का दीपक यूँ ही जलता रहे।

Yashwant R. B. Mathur said...

सच कहूँ तो बहुत दिन बाद एक बहुत अच्छी कविता पढ़ने को वाली। एक ऐसी कविता जिसे बार बार पढ़ने को दिल चाहे।


सादर

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर!

Monika Jain said...

beautiful...:)
welcome to my blog

Kailash Sharma said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति...

Anonymous said...

बहोत अच्छी रचना

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www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

भले ही आप की ये कविता अतुकांत है, शिल्पगत नहीं है - परंतु आप के अंदर की लयात्मकता [रिदम] साफ रूप से इस में दिख रही है। ऋता जी की तरह आप भी शिल्पगत रचनाओं के काफी करीब मालूम होती हैं।

Nirantar said...

में नया गीत गाना चाहती हूँ निरंतर गुनगुना चाहती हूँ ,सार्थक सोच

***Punam*** said...

"न सुने व्यथा कोई
ना कोई पथ-कंटक चुने
आग सी तपती धरा पर
साथ कोई न चले
खुद ही स्वयं का संग निभाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ.."

नए साल का संकल्प.....

वाणी गीत said...

आज फिर मुस्कुराना चाहती हूँ , बेहतर यही है ...
उम्मीदों के दिए यूँ ही जगमगाते रहें ..
शुभकामनायें !

Anonymous said...

very nice keep it up.

अजय कुमार झा said...

शब्द जब सीधे दिल से निकलते हैं तो इतनी सरलता लिए होते हैं कि उनका प्रभाव सीधे दिल तक ही पहुंचता है । बहुत सुंदर , नियमित रखिए । आने वाले वर्ष के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको

कविता रावत said...

आज फिर मुस्कुराना चाहती हूँ
..
बहुत बढ़िया सकारात्मक सोच से भरी रचना...
सुन्दर गीत..

Anant Alok said...

कनु जी आप बहुत ही भावुक हैं और यही भावुकता आपके काम आ सकती है साहित्य सृजन में ,आज की आपकी पोस्ट लड़कियों के बारें में बहुत ही अच्छी लगी ......आपका ब्लॉग तो सुंदर है ही ..बधाई |

RITU BANSAL said...

आस ... से ही जीवन है ...निरंतर अग्रसर है ..
सुन्दर कविता
कलमदान.ब्लागस्पाट.com

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

सरल सहज अभिव्यक्ति.

shvetilak said...

meaningful words...written beautifully :) awesome Kanu!

Pallavi saxena said...

बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....

Anonymous said...

Could you write another post about this subject simply because this post was a bit difficult to comprehend?