Tuesday, December 13, 2011

माँ की दुआओं के भरोसे ना रहो

आज भी कुछ बातें कुछ कविताएँ....वेसे इन्हें बातें कहने की जगह डायेरी  के पन्ने कहेंगे तो अच्छा होगा...अलग अलग जगह लिखकर छोड़ दिए गए टुकड़े है .....

६/१२ /२०११
कभी किसी को इंतज़ार  करते देखा है ? मैंने और तुमने दोनों ने बहुत इंतज़ार किया है या शायद आज भी कर रहे है....किसी के लौट आने का इंतज़ार शायद  उतनी तकलीफ नहीं देता जितना ये पास पास साथ साथ रहकर एक दुसरे का इंतज़ार करना तकलीफ देता है ,ये इंतज़ार छेद देता है मन को ,ऐसा लगता है जेसे कोई बेहाल पंछी बहार का इंतज़ार कर रहा हो जो आती दिखेगी नहीं पर आएगी तो सब कुछ सुन्दर हो जाएगा...और सच कहू इस इंतज़ार को लिखना और भी गहरी पीड़ा देता है ठीक वेसी पीड़ा जैसे कोई बड़ी मुश्किल से दबे हुए अपने ज़ख्मों को ख़ुद अपने ही हाथों से कुरेद रहा हो.......फिर भी में लिखती हू हर रोज़ और तुम अपने यंत्रों में खोए शायद बिचारे गूगल पर  इस इंतज़ार को खोजते हो....बड़ा  अँधा भटकाव है पर एक उम्मीद की किरण है......

१०/१२/२०११
की तुम भूल जाना मुझे ,जब मैं चली जाऊ इस इक भीड़ भरी दुनिया को छोड़कर इक दूसरी भीड़ भरी दुनिया में....पर वैसे नहीं जैसे लोग अपनों को भूलने की कोशश कर कर के भूल जाते है, तुम मुझे बस अचानक से भूल जाना...ठीक वैसे ही जैसे कोई लड़का भरी दोपहर में गुलाब के बाग़ में से चुनचुनकर इक इक कली सहेजे किसी को देने के लिए, और सारी शाम ढल जाए पर वो उसकी आँखों  में इतना खो जाए की सारी कलियाँ इंतज़ार  करें पर वो देना भूल जाए...की जैसे मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करने सेंकडो सीढियां चढ़कर मंदिर में जाऊं  पर वहा जाकर  घंटानाद की ध्वनि में तुम्हारी ही भक्ति में खो जाऊ और तुम्हारे नाम की पूजा करना भूल जाऊ....की जैसे दो प्रेमी इक दुसरे के साथ घंटों  पैदल चलकर  कही दूर आइसक्रीम  खाने जाए और धीरे धीरे इक दुसरे का हाथ पकड़कर चलना उन्हें इतना भला लगे की सारी आइस क्रीम पिघल जाए....की जैसे रात भर चोकलेट की जिद करता बच्चा सुबह सुबह खेलने के चक्कर में अपनी जेब में पड़ी  चोकलेट भूल जाए....तुम बस एसे ही अचानक से मुझे भूल जाना की तुम मुझे याद करोगे तो मैं तुम्हे रोते नहीं देख पाऊँगी....तुम बस अचानक से भूल जाना मुझे की तुम्हारी यादों में जीकर तुम्हारे  तिल तिल होकर रीतने को ना सह सकुंगी....की मैं चाहती हू की जेसे मैं जाऊ इस दुनिया से तुम्हारा ढेर सारा प्यार लेकर ठीक वेसे ही तुम खुश से होकर इस दुनिया से जाओ....की हम फिर मिलेंगे उस दूसरी भीड़ भरी दुनिया में क्यूंकि वहा में तुम्हारा इंतज़ार करती मिलूंगी....की इस बार तुम्हे कुछ याद ना होगा तो, तो उस दुनिया में तो ,मैं तुम्हे "आई लव यु"  कहूँगी.........

अब कुछ कविताएँ....या मुक्र्तक या और कुछ जो भी आप कहना चाहे...

1) ज़रा सा बाँधकर रख ले मैं इक उड़ता परिंदा हूँ
हवाओं का करूँ मैं क्या तेरी सांसो पे जिंदा हूँ...

2)
दो प्रेमियों का साथ कुछ दीपक बाती सा होता है
तेरे मेरे सा कुछ नहीं बस "हम" जेसा कुछ होता है
चकोर बिन चंदा ,लहर बिन सागर जेसे कहीं  अधूरा है
वेसे ही विरह में जलता कोई "प्रेमी-जोड़ा" है
मधुबन प्यासा,नदी अतृप्त ,मौसम सूना होता है
प्रलय  के बहाने  इश्वर भी आंसू भर भर रोता है

3)
उसकी आँखों के आंसू तुम्हे ना जीने देंगे
वो कहती नहीं कुछ शायद कहने से डरती है
इस कदर माँ की  दुआओं के भरोसे ना रहो
दिल से निकली बददुआएं ज्यादा असर करती है

यूँ जिंदगी को मैखानो की नज़र ना करो
मय के प्यालों में ही ख़ुशी की उम्मीद गलती है
ज़रा नज़र भर के कभी अपने घर की जीनत  देखो
कोई लड़की सारी रात इंतज़ार-ए -तुम में बसर करती है


आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

12 comments:

अनुपमा पाठक said...

डायरी के पन्ने स्नेह समाये हुए बहुत कुछ कह रहे हैं... इन्हें यूँ समेटना जारी रहे!
शुभकामनाएं!

Yashwant R. B. Mathur said...

अच्छा लगा जानकर कि आप भी डायरी के पन्नों से बातें करती हैं।

बहुत ही अच्छा लिखा है ।

सादर

प्रवीण पाण्डेय said...

मन में घट रहा लिख देना चाहिये, किसी न किसी से आवृत्तियाँ मिल ही जाती हैं।

रविकर said...

अति सुन्दर |
शुभकामनाएं ||

dcgpthravikar.blogspot.com

Arvind Mishra said...

कोई लडकी सारी रात इन्तजारे तुम में बसर करती है -
इस बेकसिये हिज्र में मजबूरिये नुक्स
हम तुम्हे बुलाएं तो बुलाएं न बने ....

Atul Shrivastava said...

गजब की भावनाएं..... संवेदनाएं......

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर भावनाओं खुबशुरत लाजबाब प्रस्तुति.बधाई
बेहतरीन पोस्ट ......


मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

जहर इन्हीं का बोया है, प्रेम-भाव परिपाटी में
घोल दिया बारूद इन्होने, हँसते गाते माटी में,
मस्ती में बौराये नेता, चमचे लगे दलाली में
रख छूरी जनता के,अफसर मस्ती के लाली में,

पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

Meera Ganesh said...

I nominated you for an award. Please go check it out at the following link
http://meeraganesh.wordpress.com/2011/12/14/im-doing-the-happy-dance

Pallavi saxena said...

बहुत ही सुंदरता से गहरे भावों को लिख देती हो तुम, शायद यही तुम्हारी खासियत है। :-) किसी एक को चुनना बहुत मुश्किल है इस रचना मे कि क्या बहुत अच्छा और क्या ठीक पूरी के पूरी रचना बहुत ही सुंदर और सार्थक है। खासकर वो प्रलय वाली बात कि प्रलय कि रूप मे ईश्वर भी भरभर आँसू रोता है। लाजवाब रचना कनू ...शुभकामनायें॥ :-)

सागर said...

behtreen prstuti....

Sunil Deepak said...

तुम मुझे भूल जाना, अचानक, पूरी तरह से, यादों में धीमे धीमे रीतने में भी कष्ट है .. पढ़ कर बहुत देर तक सोचता रहा ..

Anonymous said...

Hehe, the post took quite a while to read but it sure worth it