
ये पोस्ट लिखने का शायद ये सही समय नहीं पर समय का क्या है ये कभी सही कभी गलत नहीं होता शायद, ये तो बस समय होता है हम चाहे तो भी रोक नहीं पाते और चाहे तो भी आगे नहीं बढ़ा सकते .और इस गुजरे हुए समय की कुछ यादें आपको हमेशा हँसाती रुलाती रहती है ,वेसे आंसुओं का भी क्या है आते जाते रहते है कभी ख़ुशी के कभी गम के . पर हर जब भी आते है कोई ना कोई भावना उमड़कर बरस जाती है वेसे भावनाओं का चाल चलन समय जेसा ही है ना जबरजस्ती लाइ जा सकती है ना ही जोर जबरजस्ती से भुलाई जा सकती है ,उमड़ गई तो बरस जाएगी और नहीं तो हम रीते के रीते (ख़ाली ).
आज घर बहुत याद आ रहा है खेर इसमें कोई नई बात नहीं घर तो रोज ही याद आता है पर बात ये है की आज थोडा ज्यादा ही याद आ रहा है.शायद दिवाली गई है ना अभी अभी इसलिए.याद आ रहा है पर लिख क्यों रही हू इसका बस एक ही कारन है लिखना ही एक एसा हथियार है मेरे पास जो मेरी भावनाओं को संयत करने मदद कर सकता है .
हाँ तो बात हो रही थी घर की. आम जिंदगी रही है मेरी पढ़ाकू, कम मस्ती करने वाली गंभीर लड़कियों सरीखी,पर एक ही बात रही है जो शायद अलग रही अन्य लोगो से वो है भावनाओं का अतिरेक.बात बात में रो देना,हसतेहँसते भी आंसू पोछना मेरी हमेशा की आदत रही है .
खेर बात हो रही थी दिवाली की,मेरे घर की दिवाली मुझे जिंदगी भर याद रहेगी इसलिए नहीं की कुछ बहुत ही ख़ास होता था उस दिन, बल्कि इसलिए की मेरी दिवाली सिर्फ दिवाली के दिनों में शुरू नहीं होती थी.अपने कॉलेज केदिनों
से ही मुझे याद है घर में चाहे कोई भी पेंटर आया हो मैंने अपना कमरा किसी को पैंट नहीं करने दिया .हर साल अपना कमरा मैं खुद पैंट करती थी ,रंगों का चुनाव ,कौन सी दिवार पर कौन सा रंग होगा खिड़की पर कौन सा रंग होगा ,कमरे की सेट्टिंग में क्या बदलाव होंगे हर निर्णय मेरा योगदान होता था .
वेसे वो कमरा सिर्फ मेरा नहीं था मेरी छोटी बहन भी उसमे बराबर की हक़दार थी पर रंगों के चुनाव तक सीमित रहना पसंद था उसे दुसरे कामों में मदद जरुर करती थी पर मेरी तरह पुताई करने का काम पसंद नहीं था उसे. मेरे इस शौक पर ज्यादातर मम्मी पापा नाराज होते थे की ये सब लड़कियों का काम नहीं बेटा एसे बड़े स्टूल पर चढ़ना ,पुताई करना क्या जरुरत है ? पर इस सब से मेरी भावना जुडी हुई थी मुझे लगता था मेरा कमरा है अगर इसे मैं खुद सजाऊँगी तो मेरी महक रहेगी साल भर यहाँ .धीरे धीरे मेरी इन भावनाओं को देखकर मम्मी पापा ने भी मना करना बंद कर दिया था.
कोई विश्वास करे या ना करे अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा होने बैंक में जॉब शुरू करने यहाँ तक की शादी के लिए जॉब छोड़ने तक मैं अपने घर में हमेशा से दरवाजों के पीछे दीवारों के कोनो पर बारीक अक्षरों में अपना नाम लिखिती थी और जब डांट पड़ती थी तो कहती थी मम्मा अभी डांट रही हो पर जब चली जाउंगी तब ये सब ही मेरी याद दिलाएँगे .एसा मन करता था की हर कोने में मेरी निशानी हो हर हिस्सा मुझे याद करे .कोई कोना एसा ना रह जाए जहा मेरी निशानी ना हो .
मेरी सगाई के बाद भी एक दिवाली आई थी उस घर में शादी को थोडा ही समय बचा था मम्मी पापा ने बहुत कहा बेटा अब तो मत कर ये सब क्यूंकि पूरा घर पैंट करने के लिए पुताई वाले आए थे पर मैंने अपनी जिद नहीं छोड़ी बस यही कहती रही मुझे अपनी यादें छोड़ जाने दो पापा जब चली जाउंगी तो ये कमरा आपको मेरी याद दिलाएगा .....और सच मेंउस कमरे मेरे आने के बाद बहुत याद दिलाई होगी उन्हें मेरी ......
हाँ तो दिवाली के दिन पूरे घर के हर कोने में ,हर कमरे में ,मदिर के सामने ,किचेन में ,सीढ़ियों पर,हर दरवाजे के सामने ,आँगन में,मैं गाते पर हर जगह रंगोली में बनाते थे हम .बेल ,बूटे,छोटीबड़ी आकृति जो बनता जरूर बनाते यहाँ तक की घर के सामने का रोड भी साफ़ करवाकर उसके दोनों तरफ बेल बूटे बना देते थे ,शायद हमारा बस चलता तो पूरा शहर रंग देते पर पूरा घर रंगने में ही लगभग पूरा दिन निकल जाता था .कपड़ों के नएपन से ज्यादा घर के अपनेपन का ख्याल था मुझे और मेरी इन भावनाओं की कदर मेरे घरवालों ने हमेशा की .चेहरे को लीपने पोतने से ज्यादा मैंने दिल की ख़ुशी में विश्वास किया और वो ख़ुशी मुझे मेरे घर से हमेशा मिली भी.
सच है शायद आज घर इसलिए इतना याद आ रहा है क्यूंकि वो सब हुआ उस समय .मेरी शादी भोपाल के उस घर से नहीं हुई बड़ा मन था मेरा की एसा हो पर नहीं हुआ मेरे घर बारात आई नहीं हम लड़कीवाले अपना बोरिया बिस्तर बंधकर मेरे पतिदेव के शहर गए वही से हमारी शादी हुई ,मुझे आज भी याद है रात के ८.३० के लगभग समय हो रहा था जब हम लोग बस में बेठने के लिए उस घर को बंद करके निकल रहे थे किसी ने मेरे हाथ में नारियल दिया और कहा बेटा घर को प्रणाम कर ले फिर पलटकर मत देखना अपशगुन होता है तब कितना रोई थी मैं मन ही मन बस एक ही बात सोची जाती थी की मेरे घर को पलटकर देखना भी अपशकुन हो सकता है क्या ?,एक ही ख्याल आता था मेरा घर मुझसे छूट जाएगा ,और सच मैं एसे ही वो घर मुझसे छूटगया.
इसे नियति का खेल ही कहिये या संयोग की मेरी शादी के बाद ३,४ महीनो में ही मेरे मेरे मम्मी पापा ने भी वो घर छोड़ दिया और सबकुछ बेचकर इंदौर शिफ्ट हो गए .मेरे पापा आज भी कहते हैं तेरा मन था उस घर में इसलिए वहा थे अब यहाँ आ गए .वेसे उस शहर को छोड़ने का प्लान पहले से था पर वो कई सालों से सिर्फ प्लान था मैं वो घर वो शहर छोड़ना नहीं चाहती थी शायद इसलिए वो घर मुझे ना छोड़ता था , जब तक मैं थी वो घर मुझसे छूटता ना था जेसे ही मैंने घर छोड़ा सबसे छूट गया .कभी कभी लगता है वो घर मुझे ना छोड़ना चाहता था जब मैं उसे छोड़ दिया तो उसने सबको छोड़ दिया.खेर वो घर छूटने के साथ ही वो शहर भी छूट गया.वो शहर जहा मैंने अपना बचपन ,लड़कपन सब बिताया अच्छा बुरा नया पुराना,ख़ुशी दुःख हर बात वहा से जुडी है.बहुत याद आता है भोपाल,आज भी मेरे सपनो में वही घर आता है क्यूंकि मेरे लिए तो वही घर है.
वेसे इंदौर वाला घर भोपाल छोड़ने के ३,४ साल पहले ही खरीद लिया गया था इसलिए उस घर से मेरा परिचय काफी अच्छा था आना जाना लगा रहता था पर फिर भी भोपाल वाला घर मेरी यादों में हमेशा रहेगा.शादी के बाद सिर्फ १ बार ही भोपाल वाले घर जाना हुआ ,उसके बाद २ बार इंदौर गई पर इंदौर वाला वो घर सर्वसुविध्युक्त और भोपाल वाले घर से आधुनिक होते हुए भी मेरी स्मृति में वो जगह नहीं ले पाया और शायद कभी ले भी ना पाए.
इस बार दिवाली के पहले जब पापा से बात हुई उनकी आवाज़ में कुछ भारीपन था जिसे वो दबाने की कोशिश कर रहे थे उनने कई बातें की इतना कहा बेटा तू गई रोनक चली गई इस बार पुताई करवाने का मन नहीं कर रहा ,अब किन किन आँखों में आंसू थे ये मैं कह नहीं सकती पर फ़ोन पर बस इतना महसूस हुआ की फ़ोन पर बात कर रहे हम दो लोगो के सिवा इंदौर वाले घर में कुछ और आँखें भी नम थी....
हाँ तो शादी के बाद दोनों दिवाली पर मुझे मेरा घर बहुत याद आया ,दिवाली आने के पहले से ही यादों ने अपनी माया फेला ली वो रंगोली,वो दीवारों के रंग,वो अपनापन,वो रात दिन एक करके भी घर सजाना सब बहुत याद आया और शायद जिंदगी भर याद आता रहे ,इस बार भी दिवाली पर जब जब रंगोली के रंग हाथों में लिए घर बहुत याद आया .सच कहते है मोह बड़ी ख़राब चीज है एक बार पड़ गया तो जान चली जाए मोह नहीं जाता.हाँ बस इतना हो सकता है की मोह दूसरी जगह भी बढ़ा लिया जाए जेसे मैंने अपने पतिदेव से बढ़ा लिया ठीक वेसा ही मोह जेसा मुझे मेरे घर से था ,मेरे मम्मी पापा से था पर पुराना मोह नहीं भुलाया गया...सच है मेरा नैहर छूट गया ,पीहर छूट गया , पर यादें नहीं छूटी मेरा घर नहीं छूटा ..........
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