Friday, December 30, 2011

कोई बात यू बाहर नहीं जाती

वो आजकल गज़ब के उदास दिखते हैं
मुस्कराहट भी चेहरे पर खुलकर नहीं आती
खिडकियों की चुगलियों का खेल  है सारा
वरना कोई बात यू बाहर नहीं जाती

ताउम्र कोई किसी के गम में नहीं रहता
याद आती है मगर उतनी मयस्सर नहीं आती
किसी की सिसकियों का असर ही रहा होगा
यूं तो बरकत भी छोड़कर किसी का घर नहीं जाती


खामोशियों को सुनने की आदत डाल लो
किस्मत हर बार  कुण्डी  बजाकर नहीं आती
तुम  यूँ ग़मज़दा ना रहो ,कल फिर आएगी
"दौलत" साथ लेकर  किसी का मुकद्दर नहीं जाती

इन सरगर्मियों से यूं ना बेज़ार हो जाओ
इन्कलाब की मंजिल थाल में सजकर नहीं आती
वक़्त  और सब्र की कीमत देनी ही पड़ती है
मुसीबतें कभी  आराम से चलकर नहीं जाती

Monday, December 26, 2011

आस का दीपक जलाना चाहती हूँ

 आस का दीपक जलाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ 

कोई पलकें ना बिछाए
फूल चाहे ना खिले
बहार का मौसम चाहे
ना मिले आकर गले
मैं सुप्त खुशियों को जगाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ..


ना सुने व्यथा कोई
ना कोई पथ-कंटक चुने
आग सी तपती धरा पर
साथ कोई ना चले
ख़ुद ही स्वयं का संग निभाना चाहती  हूँ 
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ...

कोई चाहे सुनकर मुझे
अनसुना सा कर चले
मेरे शब्दों में अब चाहे
प्रेम सागर ना ढले
फिर भी कोई गीत गाना चाहती हूँ 
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ ....

पंथ का भटका मुसाफिर
लौट मुझ तक  आए ना
पर मुसाफिर बिन साथी के
उम्र भर रह जाए ना
मैं हर मुसाफिर का ठिकाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ .....

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Monday, December 19, 2011

parwaz परवाज़.....: बोलो चलोगे मेरे साथ ?will you come with me?

parwaz परवाज़.....: बोलो चलोगे मेरे साथ ?will you come with me?: मोहब्बत में गिरफ्तार ना होना तुम्हारे बस में ही नहीं था ना मेरे बस में था....तुम्हे क्या जंच गया या मुझे क्या भला लगा अब इस सब की बातें बेमा...

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बोलो चलोगे मेरे साथ ?will you come with me?

मोहब्बत में गिरफ्तार ना होना तुम्हारे बस में ही नहीं था ना मेरे बस में था....तुम्हे क्या जंच गया या मुझे क्या भला लगा अब इस सब की बातें बेमानी सी लगती है....अच्छा तो बस ये लगता है की इक गहरी सुरंग हो अँधेरे से भरी और हम दोनों हाथ थामे घने अँधेरे मैं इक दुसरे के साथ चलते जाए....बस अहसास हो इक दुसरे का, पर इक दुसरे को देख ना सके बस हाथ में हाथ महसूस हो और हम दोनों बस इक दुसरे के साथ में मगन चले जा रहे हो बस चले जा रहे हो...तभी अचानक से कही से इक बारीक सी रौशनी की किरण दिखाई दे जो हम दोनों के चेहरे पर देखे जा सकने जितनी रौशनी डाले ....और ! और एसा महसूस हो जेसे हम दुसरे को पहचानते ही ना बरसो से देखा ही ना...बुढ़ापे की लकीरें सी दिखाई दे चेहरे  पर जैसे बरसो से चल रहे हो और कितना समय निकल गया इस अहसास ने छुआ तक ना हमें....बस उम्र का कुछ असर दिखे. तुम मुझे देखकर थोडा सा मुस्कुराओ और  मै अपनी चिर परिचित शैली में  तुम्हारे सर में हाथ फेरकर मुस्कुराते हुए  कहू - आपके तो बाल सफ़ेद हो गए....और तुम ? तुम बस अपने अंदाज़ में गुस्सा करते हुआ बोलो बाल मत बिगाड़ मेरे.....और में हमेशा की तरह रुआंसी हो जाऊ.....बस वही उसी जगह इक हंसी खेल जाए दोनों के चेहरों पर और वो रौशनी चली जाए...बस वही उसी जगह मैं तुम्हारा हाथ पकडे हुए उसी रौशनी के साथ इस दुनिया से चली जाऊं ......वही तुम्हारी मुस्कुराती सूरत अपनी आँखों में लिए  हुए....और तुम भी बची हुई सारी उम्र मेरी वही मुस्कुराती हुई सूरत याद रखो.....बोलो क्या कहते हो?चलोगे मेरे साथ उस सुरंग में.........?

....गुस्सा आ रहा है ना ? जानती हू तुम्हे ये मरने की बातें पसंद नहीं....पर में क्या करूँ मै हमेशा से तुम्हारी बाँहों मै मुस्कुराते हुए दम तोडना चाहती हू ,चाहती हू साँस की डोरी ऐसे  अचानक से टूट जाए  जैसे बचपन में बनाया हुआ हमारा चुविंगगम  का बबल अचानक से फूट जाता था ....और उसके बाद भी हम मुस्कुराते से रहते थे....ठीक वेसा ही कुछ तुम्हारे साथ हो......तुम जानते हो नशा मैं  नहीं करती पर शायद अब महसूस कर सकती हू की मालबोरो का क्या असर होता होगा लोगो पर और २ पेग व्हिस्की क्या असर करती होगी.... लोग कहते है शराब का नशा होता है पर मोहब्बत और नफरत का नशा भी उतना ही गहरा होता है या देखा जाए तो ज्यादा गहरा होता है  रम तो चढ़कर उतर सकती है पर मोहब्बत बस चढ़ती ही जाती है....चढ़ती ही जाती है...

.सच कहती हू ये मुंबई का मौसम मेरी जान ले लेगा कोई बदलाव ही नहीं...बस बरसात और गर्मी . सर्दी जैसा तो कुछ है नहीं और बरसात को  भी क्या सावन जैसी कहू... बस बरसात सी होती है कुछ सावन जैसा नहीं....जानते हो कभी सपना देखती थी इक आम का बगीचा हो जिसमे झूला हो और हम दोनों उस पर बैठकर झूलें...जानती हू अगर तुमने सुना तो तुम हसोगे और कहोगे  बेंडी(पागल) है तू तो एसे फ़िल्मी सपने ना देखा कर थोड़े प्रक्टिकल ख्वाब देख. ठीक वैसे ही जैसे जब मैंने इक बार तुम्हे कहा था मैंने सपने मैं २५ रूपए के सिक्के देखे तो तुमने  कहा था सिक्के मैं भी देखता हू कभी कभी पर १,२ रूपए के.... तेरे सपने हमेशा हवाई ही होते है.....सच ही कहते हो तुम हवाई सपने देखती हू....जैसे हम तुम दोनों सारी दुनिया से दूर इक उड़न खटोले में जा रहे हो....और अचानक से तेज़  हवा आए और उड़न खटोला पलट जाए  दोनों जैसे बहुत पास से मौत को देखे .....तुम कसकर मेरा हाथ थाम लो.... ठीक उसी पल तुम इश्वर  से मेरी लम्बी उम्र की दुआ मांगो औरमैं हमेशा की तरह की अपनी बची हुई उम्र तुम्हारे नाम कर दू....तुम नीचे गिरते हुए किसी पेड़ पर अटक जाओ और मैं? मेरा शरीर तुम्हे कभी ना मिले क्यूंकि मैं जानती हू तुम मुझे एसे नहीं देख सकते ..शांत, कुछ ना बोलती हुई ,तुम्हे तो मेरे बक बक करने की आदत हो गई है ना......?

बस में वही से सीधे ऊपर चली जाऊ....पर अपनी आत्मा की मुक्ति डोर तुम्हारी सासों के साथ बांध जाऊ.....और उसी शय में परी  बनकर  मेरी बची हुई उम्र जो मैंने तुम्हारे नाम की थी उसके ख़तम होने का  इंतज़ार करू....सच कहती हूँ मैं बिना दुःख दर्द के बस तुम्हारे साथ का इंतज़ार करुँगी....तुम कोई जल्दी मत करना....तुम्हारा इंतज़ार भी मेरे लिए प्यार से कम ना होगा.....सोचो अगर ये सपना सच हो तो चलोगे मेरे साथ उस उड़न खटोले में ? बोलो क्या कहते हो?
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Tuesday, December 13, 2011

माँ की दुआओं के भरोसे ना रहो

आज भी कुछ बातें कुछ कविताएँ....वेसे इन्हें बातें कहने की जगह डायेरी  के पन्ने कहेंगे तो अच्छा होगा...अलग अलग जगह लिखकर छोड़ दिए गए टुकड़े है .....

६/१२ /२०११
कभी किसी को इंतज़ार  करते देखा है ? मैंने और तुमने दोनों ने बहुत इंतज़ार किया है या शायद आज भी कर रहे है....किसी के लौट आने का इंतज़ार शायद  उतनी तकलीफ नहीं देता जितना ये पास पास साथ साथ रहकर एक दुसरे का इंतज़ार करना तकलीफ देता है ,ये इंतज़ार छेद देता है मन को ,ऐसा लगता है जेसे कोई बेहाल पंछी बहार का इंतज़ार कर रहा हो जो आती दिखेगी नहीं पर आएगी तो सब कुछ सुन्दर हो जाएगा...और सच कहू इस इंतज़ार को लिखना और भी गहरी पीड़ा देता है ठीक वेसी पीड़ा जैसे कोई बड़ी मुश्किल से दबे हुए अपने ज़ख्मों को ख़ुद अपने ही हाथों से कुरेद रहा हो.......फिर भी में लिखती हू हर रोज़ और तुम अपने यंत्रों में खोए शायद बिचारे गूगल पर  इस इंतज़ार को खोजते हो....बड़ा  अँधा भटकाव है पर एक उम्मीद की किरण है......

१०/१२/२०११
की तुम भूल जाना मुझे ,जब मैं चली जाऊ इस इक भीड़ भरी दुनिया को छोड़कर इक दूसरी भीड़ भरी दुनिया में....पर वैसे नहीं जैसे लोग अपनों को भूलने की कोशश कर कर के भूल जाते है, तुम मुझे बस अचानक से भूल जाना...ठीक वैसे ही जैसे कोई लड़का भरी दोपहर में गुलाब के बाग़ में से चुनचुनकर इक इक कली सहेजे किसी को देने के लिए, और सारी शाम ढल जाए पर वो उसकी आँखों  में इतना खो जाए की सारी कलियाँ इंतज़ार  करें पर वो देना भूल जाए...की जैसे मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करने सेंकडो सीढियां चढ़कर मंदिर में जाऊं  पर वहा जाकर  घंटानाद की ध्वनि में तुम्हारी ही भक्ति में खो जाऊ और तुम्हारे नाम की पूजा करना भूल जाऊ....की जैसे दो प्रेमी इक दुसरे के साथ घंटों  पैदल चलकर  कही दूर आइसक्रीम  खाने जाए और धीरे धीरे इक दुसरे का हाथ पकड़कर चलना उन्हें इतना भला लगे की सारी आइस क्रीम पिघल जाए....की जैसे रात भर चोकलेट की जिद करता बच्चा सुबह सुबह खेलने के चक्कर में अपनी जेब में पड़ी  चोकलेट भूल जाए....तुम बस एसे ही अचानक से मुझे भूल जाना की तुम मुझे याद करोगे तो मैं तुम्हे रोते नहीं देख पाऊँगी....तुम बस अचानक से भूल जाना मुझे की तुम्हारी यादों में जीकर तुम्हारे  तिल तिल होकर रीतने को ना सह सकुंगी....की मैं चाहती हू की जेसे मैं जाऊ इस दुनिया से तुम्हारा ढेर सारा प्यार लेकर ठीक वेसे ही तुम खुश से होकर इस दुनिया से जाओ....की हम फिर मिलेंगे उस दूसरी भीड़ भरी दुनिया में क्यूंकि वहा में तुम्हारा इंतज़ार करती मिलूंगी....की इस बार तुम्हे कुछ याद ना होगा तो, तो उस दुनिया में तो ,मैं तुम्हे "आई लव यु"  कहूँगी.........

अब कुछ कविताएँ....या मुक्र्तक या और कुछ जो भी आप कहना चाहे...

1) ज़रा सा बाँधकर रख ले मैं इक उड़ता परिंदा हूँ
हवाओं का करूँ मैं क्या तेरी सांसो पे जिंदा हूँ...

2)
दो प्रेमियों का साथ कुछ दीपक बाती सा होता है
तेरे मेरे सा कुछ नहीं बस "हम" जेसा कुछ होता है
चकोर बिन चंदा ,लहर बिन सागर जेसे कहीं  अधूरा है
वेसे ही विरह में जलता कोई "प्रेमी-जोड़ा" है
मधुबन प्यासा,नदी अतृप्त ,मौसम सूना होता है
प्रलय  के बहाने  इश्वर भी आंसू भर भर रोता है

3)
उसकी आँखों के आंसू तुम्हे ना जीने देंगे
वो कहती नहीं कुछ शायद कहने से डरती है
इस कदर माँ की  दुआओं के भरोसे ना रहो
दिल से निकली बददुआएं ज्यादा असर करती है

यूँ जिंदगी को मैखानो की नज़र ना करो
मय के प्यालों में ही ख़ुशी की उम्मीद गलती है
ज़रा नज़र भर के कभी अपने घर की जीनत  देखो
कोई लड़की सारी रात इंतज़ार-ए -तुम में बसर करती है


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Tuesday, December 6, 2011

और तुम मुझसे मोहब्बत कर बेठे .....Why You love me?

parwaz:love or friendship
तुम कैसे मुझसे मोहब्बत कर बैठे ? .....बस लिखती ही तो  हू और तो कुछ नहीं करती बरसो पहले मिली थी तुमसे पर उस मिलने को हाई हेल्लो से ज्यादा का मिलना नहीं कहूँगी शायद तुम भी ना कहो .बाकि तो फिर कभी मिले नहीं हम बस चिट्ठियां लिखी मैंने तुम्हे और तुमने sms भेजे जवाब में ...  कोई सुनेगा तो कहेगा आजके ज़माने में ये चिट्ठियां क्यों ? पर दुनिया क्या जाने जो बात स्याही से पन्नो पर उतरे शब्दों में होती है वो फोन और sms में कहाँ .....तुम भी तो कितना हँसते थे जब मेरी कोई चिट्ठी मिलती थी तुम्हे .....पर उन्ही चिट्ठियों को तुमने अकेलेपन में सीने से लगाकर दिल की बातें की .....अपना दर्द, ख़ुशी सब उनसे बाँट लिया और तुम्हे मेरे इन खैरियत पूछने वाले खतों से प्यार हो गया....शायद वैसे ही जैसे लोग कहते हैं दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज़ है....और एसे ही तुम मेरे खतों से प्यार कर बठे और शायद मुझसे भी....और मैं? मैं तो बस तुम्हारे sms पढ़ती तुम्हारी खेरियत जानकार खुश हो लेती .....

मुझे तुमसे प्यार कैसे होता मेरे पास आंसुओं से गीले करने के लिए तुम्हारा कोई ख़त ना था कोई याद ना थी.....कोई शब्द ना थे....जिन्हें में भूले बिसरे गीतों की ही तरह ही गुनगुना लू.....अब तुम मुझे दोष देते हो की क्यों मैंने भी तुमसे प्यार ना किया...मुझे  बेवफा  कहकर  बदनाम  करते  हो  सारे  जहां  में ...मेरी दोस्ती को भी ठुकराए जाते हो.......पर....तुम्ही बताओ कैसे होता मुझे प्यार?....अब मेरा क्या कुसूर  जो तुम मुझसे मोहब्बत कर बैठे .........

तुम बार बार कहते हो मैं तुम्हे छल गई पर मुझसे ज्यादा कौन छला गया इस दुनिया में ये बताओ तो ज़रा...? मेरे किस ख़त मैं मैंने तुम्हे प्रेम किया ? तुम्हे ये  अहसास दिलाया की तुम मेरे जीवन आधार बने जाते हो? कब कहा मुझे प्रेम है तुमसे ?कौन सा ख़त कहता है की मैं तुम्हे विरहनी की तरह याद करती हू......? मैं तो हर बार अपने शब्दों को तुम्हारी खेरियत की दुआ से जोडती रही....तुम्हारी तरक्की के लिए किए हुए सजदे को शब्दों  में पिरोती रही.....मेरे कौन से शब्दों में तुम्हारे मन मैं प्रेम के अंकुर को जनम दिया.....मैं क्या जानु ? अब तुम ही बताओ तुम तो जिंदगी भर मुझे दोष देकर जी लोगे और शायद जल्दी ही मुझे भूल भी जाओगे पर मैं ?मेरा क्या होगा  मैं तो सारी उम्र इस आग में जलती रहूंगी की मैंने तुम्हारा दिल दुखा दिया ....तुम जो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो.....तुम ही बताओ ए मेरे दोस्त मैं क्या करू?

मेरा बस चलता तो उन खतों में जाकर सारे शब्द नोच लाती ,तुम्हारी यादों के समुन्दर में उतरकर  मेरी हर याद को खींच लाती ...काश एसा कोई यन्त्र होता जिससे खतों की सारी स्याही सोख ली जाती और ये ख़त कोरे कागज़ बन जाते..... इसके साथ मै तुम्हारे मन में उतरे हर शब्द को भी खीच लाती वापस अपने पास.....और जला देती कही ले जाकर...... पर मैं क्या करू ? मैं तो कुछ नहीं कर सकती अब.....तुम्हे जितना दुःख अपने एक तरफा प्रेम के ना मिल पाने का है उससे कहीं ज्यादा दुःख मुझे अपने सबसे ज्यादा अच्छे दोस्त के खो जाने का है......पर तुम कैसे समझोगे मेरा दर्द तुम तो प्रेम किए बेठे हो मेरे उन निर्जीव खतों से ....पर ये दुःख से हलकान हुई जाती जीवधारी दोस्त तुम्हे दिखाई नहीं देती ? दिखेगी भी कैसे ?तुम तो अपने ही दुःख के अंधे कुए में डूबे  जाते हो.....

सोचती हू मै भी तुम्हारी तरह  sms  वाली हो जाऊ अब...आज का ये ख़त तुम्हे आखरी ख़त है अब ना लिखूंगी कोई ख़त.... बस इधर उधर से आए sms भेज दिया करुँगी सबको हाय हल्लो लिखकर....अब तो मन करता है अपने सारे ख़त लोगो से वापस मंगवाकर  उनमे आग लगा दू.....ना जाने कब कहाँ उनसे प्रेम का अंकुर फूट जाए और एक एक करके मेरे सारे अपने छूट जाए ....पर में जानती हूँ मै आदत से मजबूर हूँ....लत लग गई है मुझे लिखने की शायद लिखना और जीना एक सा हुआ जाता है मेरे लिए अब......

अब बस एक ही काम हो सकता है सबके लिए ख़त लिखती रहू पर उन्हें पोस्ट ना करू.... एक बक्से में जमा कर लूँगी....और उस बक्से की चाबी मेरी वसीयत के साथ रख दूँगी जिस दिन में मरूंगी तब मेरी वसीयत में ये सारे ख़त उन सारे लोगो के नाम लिख जाउंगी जिनके लिए ये लिखे गए हैं......तुम भी उसी दिन आना तुम चाहे मुझे बेवफा कहकर भूल जाओगे पर में जिंदगी भर अपने सबसे अच्छे दोस्त के नाम के ख़त जमा करती रहूंगी....मेरे मरने के बाद तुम अपनी अमानत ले जाना........पर कसम है तुम्हे इस अधूरी दोस्ती की... मेरे शब्दों से...मेरे खतों से फिर मोहब्बत ना कर बेठना.....

तुम्हारी दोस्त....

Sunday, December 4, 2011

Dirty Picture :Dignity and dirtiness Together...With Entertainment Entertainment and Entertainment....

Dirty Picture
उन सभी लोगो से शुरुआत में ही माफ़ी मांगती हू जो मुझसे बहुत ही सीरियेस  और बहुत ही गहराई भरी लेखनी की उम्मीद करते है हो सकता है वो लोग ये रीव्यू  पसंद ना करें....
तो कल मैंने यानि की हमने Dirty picture देख ही ली सच कहू तो इस फिल्म को देखने का मेरा ख़ास मन नहीं था अब कारण ठीक से बता नहीं सकती पर मुझे लगता है कारण इसके तन उघाडू टाइप के प्रोमो थे और सच कहू तो एकता कपूर की क्या कूल है हम जेसी फिल्में टी वी पर आधी अधूरी देखने के बाद मन में ये बात थी की इसमें भी द्विअर्थी संवाद और फूहड़पन होगा...तो फिर देखी क्यों ?ये भी ठीक से बता नहीं सकती पर शनिवार का दिन बहुत टेनशन  भरा था .आफिस  में भयंकर तरीके से समस्याएं  थी दोपहर में लोकेश का फ़ोन आया मूवी देखने चलना है क्या? चलना हो तो बोल dirty picture के टिकिट  बुक करवा लेता हू पर तेरा मन ना हो तो हाँ मत करना ( उन्हें भी शायद ये बात पता थी की में इस मूवी को देखने के लिए थोड़ी भी उत्साहित नहीं थी) मैंने बोला हाँ ठीक है चलते हैं (रजत अरोरा के diolouges की तारीफ सुन ली थी किसी के मुह से) ,पर लोकेश भी जानते थे की ये आधे मन से की हुई हाँ है शायद उनने थोड़ी देर बाद फिर एक बार फ़ोन किया और पुछा तू पक्का चलना चाहती है ना?करवा लू ना टिकिट ? मैंने  फिर कहा हाँ करवा लो देख लेते हैं (बोलते बोलते मुझे भी लगा जेसे में अहसान कर रही हू किसी पर ये फिल्म देखकर शायद ये लोकेश को भी लगा हो मैंने पूछा नहीं ये )

अब बात करेंगे फिल्म की सच कहू तो ये फिल्म देखना मेरे लिए अलग अनुभव इसलिए रहा क्यूंकि ऐसा मेरी लाइफ में पहली बार हुआ जब पूरी फिल्म में थिएटर मैं बेठे लोग हर संवाद के बाद हँस रहे हो या ताली बजा रहे हो या फिल्म देखते देखते कुछ सीन एसे हो जिन्हें देखने की बजाए मैं थिएटर की छत  या अगल बगल के लोगो के चहरे देखना ज्यादा पसंद कर रही थी.....
बोल्ड कहानी,द्विअर्थी संवाद ,एक्सपोज़ देखा जाए तो यही सब है फिल्म में पर फिर भी कांसेप्ट दिल को छु लेता है और उससे ज्यादा गहरे तक उतरती है विद्या बालन ....गज़ब का काम किया है.... इस हद तक तन उघाडू रोल में भी इस हद तक की डिग्निटी !!! शायद विद्या बालन ही कर सकती थी....पूरी फिल्म में आपको द्विअर्थी और फूहड़ कहे जा सकने वाले संवाद मिलेंगे पर कसम से कहती हू इस हद तक द्विअर्थी लिखना और फिल्माना भी हर किसी के बस की बात नहीं कुछ तो बात है रजत अरोरा (लेखक) में.....

पूरी फिल्म एक हेन्गोवर  की तरह है फिल्म देखते देखते कभी कभी लगता है विद्या के हाथ से जाम लेकर दो घूंट ख़ुद भी लगा लिए जाए शायद फिल्म ज्यादा अच्छी लगे तब....ठीक वेसे ही जेसे इमरान हाश्मी एक सीन में विद्या से कहते हैं कुछ लड़कियां पीने के बाद अच्छी लगती है...शायद तुम भी अच्छी लगो पर जब ये हेन्गोवर उतरता है तो भी कहते है शराब उतर गई फिर भी तुम अच्छी लग रही हो तुमने मार दिया मुझे....कुछ संवाद तो सच में नक्काशी के जेसे बारीकी से तराशे से लगते हैं...जैसे एक संवाद में इमरान विद्या से पूछते हैं -आज तक कितनो ने touch  किया है तुम्हे ?और जवाब आता है touch तो बहुतों ने किया है पर छुआ किसी ने नहीं एक बरगी लगेगा संवाद कही सुना सा है पर फिर भी कहानी केसाथ बढ़ते हुए ये दिल को छु जाएगा.... .मन करता है लेखक का सजदा कर लिया जाए की एसा गज़ब कैसे  लिखा .....फिल्म कोई ख़ास सन्देश नहीं देती पर एक हल्का नशा छोड़  देती है दिलो दिमाग पर ......

देखा जाए तो तो पूरी फिल्म बाज़ारों और बिस्तरों के आस पास घूमती सी लगती है एक आम लड़की कभी कभी सुपर स्टार बनने के लिए क्या क्या कर सकती है, किस हद तक जा सकती है ये दिखाई देता है पर इस स्टारडम  को बनाए रखना कितना मुश्किल है ये झलक भी दिखाई देती है....सिल्क  यही तो नाम है विद्या बालन का और सच में जेसे सिल्क बनाने के लिए कई कीड़ों को मरना पड़ता है वेसी ही अनुभूति इस फिल्म को देखकर आती है पर यहाँ बारीक सा अंतर है यहाँ सिल्क बनने के लिए विद्या अपने अन्दर की रेशमा को मारती है ......और जब उसे ये अहसास होता है उसके अन्दर का खालीपन,मजबूरी,  दर्द सब मिलकर उसे मार देते है....

अस्सी के दशक की डांसर पर आधारित ये फिल्म आपको उस दशक में ले जाती है सिगरेट शराब ,इतने कम कपडे की उससे कम क्या होगा फिर भी आपको फिल्म देखकर शर्म महसूस नहीं होगी बस एक टीस सी महसूस होगी दिल में और शायद निर्देशक चाहता भी यही है ....फिल्म देखते हुए हर इंसान के मन में एक बार ये बात जरूर आई होगी की !@#$$ दुनिया जाए भाड़ में जीना तो बस ऐसे चाहिए और थोड़ी ही देर में वो हर इंसान अपनी इस सोच को भूल भी जाएगा...मतलब याद रखने को कुछ ऐसा नहीं जो गज़ब का हो पर फिर भी विद्या आप पर छाई  रहेगी लम्बे समय तक....और संवाद भी...फिल्म में कही भी गालियाँ नहीं है ना ऐसा कुछ कहा -बोला गया है जिसे हद दर्जे का घटिया कहाजाए  पर हाँ उसके घटिया मतलब निकले जा सकते है क्यूंकि द्विअर्थी संवादों से भरी है पूरी फिल्म...

गानों के मामले में मुझे सिर्फ दो ही गाने याद है ऊ- लाला  जो सबने हजारों बार सुना है और दूसरा "तेरे वास्ते मेरा इश्क सूफियाना" और सच कहू काफी टाइम के बाद इतना बेहतरीन गाना लिखा गया है (कल सेअभी तक गुनगुना रही हू....) और फिल्माया भी वेसा ही सुन्दर है और कोई निर्देशक होता तो एक गाने के लिए शायद विद्या को भी प्रेम की देवी टाइप या सूफियाना अंदाज़ में दिखाता पर मुझे यही बात अच्छी लगी फिल्म में जेसी बोल्ड वो है वेसा ही उन्हें दिखाया गया है और जेसे इमरान है अवार्ड विनिंग टाइप वेसा ही सूफी अंदाज़ में उनका प्यार दिखाया गया है....गहरा ,ठहरा हुआ, गंभीर .....

कुल मिलाकर फिल्म अच्छी है पर परिवार के साथ बैठकर देखने जेसी नहीं है .फिल्म में कई बुराइयां निकाली जा सकती है पर ये भी सच है जो लोग दिन में शराब की बुराई करते है उनमे से कई लोग रात के अँधेरे में जाम छलकाते मिल जाते  हैं....फिल्म आपको फिल्म इंडस्ट्री की बाहरी चमक से भरी दुनिया की  आंतरिक सडांध  की  dirty picture  दिखाती है ...फिल्म चल निकाली है और चलेगी क्यूंकि सच है कई बार  फिल्में सिर्फ तीन चीज़ों से चलती है entertainment,entertainment aur entertainment ...और वो इस फिल्म में है .....ऐसा entertainment जो फूहड़ होकर भी दिल को छु जाता है ,कोई ख़ास सन्देश नहीं देता पर फिर भी एक कहानी कह जाता है .... और सबसे बड़ी बात जितनी देर आप फिल्म देखते है कही और के बारे में आप सोचते नहीं और जब बाहर निकलते हैं तो चेहरे पर ३ घंटे अच्छे गुजरने की ख़ुशी होती है दूसरी बार देखने जाने जेसा कुछ नहीं पर एक बार देखना अच्छा है बाकि तोसबकी अपनी पसंद..... मुझे फिल्म देखकर मीना कुमारी याद आई वेसा ही कुछ शराब और सिगरेट के नशे में ,अकेलेपन से जूझता , डूबा हुआ ,अवसादग्रस्त अंत सिल्क का दिखता है एक क्ष्रण के लिए मर्लिन मुनरो याद आती है और याद आती है बशीर बद्र की वो शायरी "रात होने का इंतज़ार कौन करे आजकल दिन में क्या नहीं होता "..................



Thursday, December 1, 2011

बेवफाई ,विरह और दर्द

आज फिर इधर उधर से चुनकर कुछ पंक्तियाँ डाल रही हू....
            बेवफाई
बेवफा से हो मोहब्बत  इसमें गिला नहीं
पर हर शर्त  मुकम्मल हो फिर  ,रस्मे जुदाई की
दिल के ताब* जोड़ जोड़कर आज़माइश करो ख़ुद की (टुकड़े)
अब  सजा ख़ुद को ना दो ,उसकी  बेवफाई की

अपने पाँव के नीचे ख़ुद देखकर चलना
अँधेरी गलियों से क्या उम्मीदें रौशनाई  की
अपना ख़ुदा इन्तिखाब* करना अपने दिल पर है  (चुनना)
पर नाखुदा को ख़ुदा कहना भी नाकद्री है ख़ुदाई की

             विरह
ग़र  छोड़कर जा रही हो मुझे तुम
तो इतना सा मुझपर अहसान करना
अगर ज़िन्दगी में कभी फिर मिले तो
ना उम्रदराजी की दुआ देना,ना सलाम करना

खुदा से बस इतनी ख्वाहिश कर लेना
नज़र से नज़र ना मिले फिर हमारी
मेरी नज़रों से तुम दिल तक उतरती थी
मुश्किल होगा अब ये ग़मज़दा नज़र पार करना

              दर्द 
गुलाबजल की शीशियाँ समुन्दर में गर्क कर दी
आजकल आंसुओं से ही  आँखें साफ़ होती है
ख़ुद को आइना बनाकर गम की ताबीरें लिख दी
दर्द बढ़ने से  जिंदगी पढने काबिल किताब होती है


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