एक ऐसी कविता जिसे कोई पुरूष लिखता तो बेहतर लिखता ज्यादा शिद्दत से लिखता...पर मैंने लिखी...लोग कहते हैं नारी का मन पढ़ा नहीं जा सकता..पर सच ये है कि पुरूष का मन ज्यादा गहरा है...उसमें भी प्रेम हैं संवेदनाए है...पुरूषो की ओर से ये एक कविता हर नारी के लिए....
क्या कहूँ ओ प्रियतमा
तुम क्या मेरे जीवन में हो
शब्द ही नहीं मिलते उसे
जो प्रेम के बंधन में हो.
तुम अहसास हो हर साँस का
जीने का तुम आधार हो
आस की डोरी हो तुम
मेरे लिए संसार हो.
कह नहीं पाता मैं तुमसे
प्रेम के वो शब्द भी
उलझा हुआ भवसागर में
रहता हूँ में स्तब्ध भी.
जानता हूँ मेरी अनदेखी से
तुमको
रात दिन होती घृणा
पर सच कहूँ सबके लिए ही
ये कर्म का रस्ता चुना.
.
हाँ पुरूषो ने जन्मों जनम तक
नारियों के मन छले
पर कुछ दियों की उद्धन्डता का
दंड़ सबको क्यू मिले.
.
तुमने आँखों के सामने
देखाबच्चों को बढ़ते हुए
रोटियों के फेर में मैंने
वो सारे पल खो दिए
तुम माँ हो बहन होपत्नी हो
प्रेम की छावं हो
मेरे लिए तुम दुपहरी में
शांति का गाँव हो
तुम घर में रही तो
तुमनेघर को प्रेम का बल दिया
बाहर गई तो हर हाल में
मुझको अपना संबल दिया
तुम्हारे आँसुओं की हर धार
मेरे हृदय पर वार है
बस कह ही नहीं पाता हूँ
मुझको तुमसे कितना प्यार है
मैं वक़्त ना दे पाऊं
इस बात का ग़म है हमें
पर प्रेम है इस बात का
वचन देता हूँ तुम्हें
तुमने मेरे जीवन को सींचा
प्यार की फुहार से
मैं ज़रा पगला हूँ
कह पाता नहीं हूँ प्यार से
जब कभी लड़ता हूँ
सारी रात न सोता हूँ मैं
तुम मुँह ढांककर रोती हो
और मन ही मन रोता हूँ मैं
तुम्हारी तरह मेरा दर्द
चेहरे पर दिखता नहीं
पर ना समझना ये कि
मेरा दिल कभी दुखता नहीं
मनाना आता नहीं पर
दिल से मानता हूँ मैं तुम्हें
गर कभी तकलीफ में हो
साथ पाओगी मुझे....
कनुप्रिया गुप्ता....आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
क्या कहूँ ओ प्रियतमा
तुम क्या मेरे जीवन में हो
शब्द ही नहीं मिलते उसे
जो प्रेम के बंधन में हो.
तुम अहसास हो हर साँस का
जीने का तुम आधार हो
आस की डोरी हो तुम
मेरे लिए संसार हो.
कह नहीं पाता मैं तुमसे
प्रेम के वो शब्द भी
उलझा हुआ भवसागर में
रहता हूँ में स्तब्ध भी.
जानता हूँ मेरी अनदेखी से
तुमको
रात दिन होती घृणा
पर सच कहूँ सबके लिए ही
ये कर्म का रस्ता चुना.
.
हाँ पुरूषो ने जन्मों जनम तक
नारियों के मन छले
पर कुछ दियों की उद्धन्डता का
दंड़ सबको क्यू मिले.
.
तुमने आँखों के सामने
देखाबच्चों को बढ़ते हुए
रोटियों के फेर में मैंने
वो सारे पल खो दिए
तुम माँ हो बहन होपत्नी हो
प्रेम की छावं हो
मेरे लिए तुम दुपहरी में
शांति का गाँव हो
तुम घर में रही तो
तुमनेघर को प्रेम का बल दिया
बाहर गई तो हर हाल में
मुझको अपना संबल दिया
तुम्हारे आँसुओं की हर धार
मेरे हृदय पर वार है
बस कह ही नहीं पाता हूँ
मुझको तुमसे कितना प्यार है
मैं वक़्त ना दे पाऊं
इस बात का ग़म है हमें
पर प्रेम है इस बात का
वचन देता हूँ तुम्हें
तुमने मेरे जीवन को सींचा
प्यार की फुहार से
मैं ज़रा पगला हूँ
कह पाता नहीं हूँ प्यार से
जब कभी लड़ता हूँ
सारी रात न सोता हूँ मैं
तुम मुँह ढांककर रोती हो
और मन ही मन रोता हूँ मैं
तुम्हारी तरह मेरा दर्द
चेहरे पर दिखता नहीं
पर ना समझना ये कि
मेरा दिल कभी दुखता नहीं
मनाना आता नहीं पर
दिल से मानता हूँ मैं तुम्हें
गर कभी तकलीफ में हो
साथ पाओगी मुझे....
कनुप्रिया गुप्ता....आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
6 comments:
बहुत खूब ... गहरे प्रेम के एहसास शब्दों में उतारत दिए ...
खूबसूरत प्रस्तुति
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
Sundar prastuti ..
बहुत बढ़िया!
कृपया आप अपने इस महत्वपूर्ण हिन्दी ब्लॉग को ब्लॉग सेतु ब्लॉग एग्रीगेटर से जोड़ें ताकि आपकी रचनात्मकता से अधिक से अधिक लोग महत्वपूर्ण सकें .... !!! यह रहा लिंक .... !!!
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