Saturday, November 18, 2017

ननिहाली किस्से-यादों का सफ़र भाग 1

प्यारे नानाजी,हम सच में आपको बहुत याद करते हैं।ये यादों का सफ़र आपके लिए आपके गांव और अपने ननिहाल को फिर से जी लेने की तमन्ना के साथ।
ननिहाली किस्से हाँ यही नाम दे रही हूँ इस किस्सों की लहर को क्या कितना याद है कितनी यादें धुंधली हुई ये तो लिखते लिखते याद आएगा शायद पर अपना बचपन फिर से जी लेने का और उसे पन्नो पर उतार देने का इससे बेहतर मौका मुझे शायद फिर न मिले....
कयामपुर यही नाम है मेरे नानाजी के पुश्तेनी गाँव का अब ये नाम क्यों रखा गया होगा इसके बारे में ना तो वहाँ कोई लोकचर्चा या कथा प्रचलित है और न कभी कोई बात सुनने में आई पर अंदाज़ा लगाया जा सकता है उर्दू शब्द "कयाम" का अर्थ क्योंकि 'रुके रहना','ठौर' आदी होता है तो हो सकता है पुराने किसी ज़माने में ये लोगों के ठहरने का स्थान रहा हो,क्योंकि गाँव के किनारे से होकर एक नदी बहती है या यूँ कहें कि गाँव नदी किनारे बसाया गया होगा तो इस बात की संभावनाएं बढ़ जाती है कि ये कभी राहगीरों या सेनाओं का ठौर रहा होगा।

पर जैसा कि हर गाँव इतिहास में दर्ज़ तो किया नहीं गया इसलिए सिर्फ़ कयास लगा सकती हूँ।अब तक तो आप लोग समझ ही गए होंगे कि मेरे नानाजी का गाँव कोई ऐतिहासिक धरोहर नहीं है पर इलाके में लोग गाँव को जानते हैं।मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में पड़ने वाला ये गाँव जिले के लोगो मे जाना पहचाना है...एक मिनट एक मिनट हाँ!मंदसौर वही पशुपति नाथ मंदिर वाला.हाँ हमारे मंदसौर में भी एक पशुपतिनाथ का मंदिर है और यकीन मानिए ये  मूर्ति नेपाल वाली मूर्ति से 19,20 ही होगी लेकिन मध्यप्रदेश में महांकाल,ओम्कारेश्वर  जैसे ज्योतिलिंग हैं और खजुराहो कान्हा किसली ,महेश्वर ,मांडू जैसे कई दूसरे पर्यटन स्थल है इसलिए मन्दसौर के पशुपतिनाथ को शायद उतनी प्रसिद्धि न मिल सकी जितनी अब तक मिल जानी चाहिए थी।
हाँ तो मंदसौर जिला एक और चीज़ के लिए प्रसिद्द रहा है'अफ़ीम की खेती'. सरकारी नियमों के चलते जो अब थोड़ी कम हो गई पर यकीन मानिए अफ़ीम इलाके के कई किसान उगाते रहे और ईमानदारी से सरकार को बेचते आए हैं।आगे कभी मौका मिला तो अफीम की खेती और उससे जुड़े व्यापार की पूरी डीटेल बताउंगी पढ़ने वालों को, फिलहाल कयामपुर पर वापस आते हैं।
कुल मिलाकर स्टैण्डर्ड गाँवो की छवि वाला गांव है रुकिए रुकिए जनाब हवा में किले मत बनाइये यश जी की फिल्मों वाले गाँव फिल्मों में ही होते हैं हाँ उनकी फिल्मों जैसे राज सिमरन टाइप के किरदार इस गांव में भी रहे होंगे पर ये पंजाब का गाँव तो है नहीं जो सरसों के खेत लहलहाए और बैकग्राउंड में हमेशा' घर आजा परदेसी 'की धुन बजती रहे या हवा में मोहब्बत तैरती फिरे, हाँ गाँव मे नदी है पर कोई सोनी महिपाल वाला किस्सा नहीं है क्योंकि नदी बिचारी छोटी सी बची है और पुराने ज़माने में भी सोन नदी जैसी तो नही ही थी कि उफनती नदी को मटके लेकर पर करना पड़े ...खैर!आम स्टैण्डर्ड गाव से मेरा मतलब था पुराने कच्चे घर ,एक नदी आस पास  के इलाकों में खेत जिनमे पहले मोटा अनाज और सब्जियां लगती थी जो बाद हरित क्रांति के समय गेहूँ और फिर सोयाबीन की खेती में बदला और अब तो इन सारी फसलो के साथ संतरों के बाग भी काफी प्रचलित है।और कई छोटे मोटे गांव भी लगे हैं तो व्यापार का छोटा मोटा केंद्र जैसा है मेरा ननिहाल।
एक बात तो है मेरे किस्सों में आपको ट्रेजिक पार्ट कम मिलेगा पहली बात तो ये की कयामपुर इलाके का संरराध गाँव है तो भूख से बिलबिलाते बच्चे या सिर्फ आलू भूनकर खाने जैसी तकलीफों वाले किस्से ज़रा कम या शायद नहीं ही सुनने में आते हैं दूसरी बात मेरा ननिहाल का परिवार जाना पहचाना काफी समृद्ध है तो किस्सो में गाँव मे छोटी सी झोपड़ी और टिमटिमाता तेल के अभाव में बुझने को हो आया दीपक जैसा एंगल भी न ही मिलेगा।(इन वाक्यों को गरीबी का मज़ाक उड़ाता हुआ कतई मत समझियेगा ये बस  इसलिए कि मेरी कहानी या आने वाले किस्से गाँव की दुखभरी कहानी नही है। हाँ गाँव है तो कई भौतिक असुविधाएं रहीं है माहौल भी रहा है वो ज़रूर पढ़ने मिलेगा।
हाँ तो मंदसौर जिले के मंदसौर शहर से मेरा ननिहाल कयामपुर तकरीबन 35 किलोमीटर दूर है और लगभग दस हज़ार की आबादी वाला ये गांव आजकल लगभग सर्वसुविधायुक्त है।गांव के रास्ते में दूर दूर तक लगे सोलर पैनल और पानी की कमी पूरी करने के लिए बड़े बड़े पाइप की पाइपलाइन डालकर बनाया जा रहा वाटर प्रोजेक्ट इस बात की गवाही देता है।ये गांव भी हमेशा से ऐसा नहीं था समृद्धि आते आते आई है और इसके लिए गाँव के लोगो ने भी मेहनत की है।
सबसे पहले बात करते हैं कि यहां तक पहुंचा कैसे जाता है देखिए मेरी बात मत करिए मेरे लिए कयामपुर पहुंचने के लिए सोना जरूरी है एक दम सिंपल चादर तानो सो जाओ सपनो में नाना घर। पर सब मेरी तरह महान तो नहीं हो सकते ना तो आम लोगो को वहां तक पहुंचने के लिए दुनियावी तरीको का इस्तेमाल करना होता है।
कयामपुर तक पहुंचने के कई तरीके होते है पहला तो इंदौर शहर से काफी दूर होने के बावजूद रोज एक बस इंदौर से कयामपुर के लिए चलती है जिससे आप डायरेक्ट वहाँ पहुंच सकते हैं।
दूसरा इंदौर से  मंदसौर ( ट्रेन या बस किसी भी साधन से )जाइये वहाँ मंदसौर बस स्टैंड से हर आधे घंटे में कयामपुर के लिए बस मिल जाती है जो आपको तकरीबन सवा से डेढ़ घंटे में कयामपुर छोड़ देगी वैसे इन बसों का हाल आज भी लगभग वैसा ही है जैसा मेरे बचपन मे था।भारी भीड़, धक्कामुक्की ,धूल और टिपिकल बस वाली गंध जिसमे बीड़ी ,गुटखे पसीने और धूल की मिली जुली गंध शामिल होती है।
तीसरा रास्ता है आप मंदसौर से अपनी गाड़ी लेकर जा सकते हैं पर आप क्यों जाएंगे ये सोचने वाली बात है क्योंकि ये कोई पर्यटन स्थल तो है नहीं गाड़ी लेकर चले भी गए तो वह कोई होटल तो है नहीं रुकेंगे कहाँ?अब मैं लिख रही हूँ तो कह सकती हूँ मेरे ननिहाल में रुक जाइयेगा पर जाकर करेंगे क्या ये टेढ़ा प्रश्न है।वैसे पूरा गाँव मेहमाननवाज़ी के लिए फेमस है और गाँव की मेहमाननवाज़ी के भुक्तभोगी कई लोग हैं आगे वो किस्से भी सुनाऊँगी कभी,लेकिन एक बात पक्की है लोग दिलदार है चाय पिलाने के मामले में तो पक्के दिलदार।
अभी फिलहाल इतना समझ लीजिए कि किस्सों की दुनिया मे स्वागत है आपका ....
इनमे कुछ किस्से मेरे अपने होंगे कुछ मेरे ममेरे भाई बहनों के,कुछ गांव के लोगो से भी लिए जा सकते हैं और चाहे तो आप पढ़ने वाले भी अपने ननिहाल के किस्से शेयर कर सकते हैं।मालवा अंचल पर ज्यादा लिखा नही गया है वैसे और जो लिखा गया है वो इंदौर के आसपास ज्यादा भटका है मंदसौर तक काम ही आ पाया है तो कोशिश करूँगी कि मंदसौर जिले की संस्कृति और बोली भाषा से भी परिचय करवा सकूँ।।आगे इस बात पर निर्भर करेगा कि लिखने वाले को लिखने में और पढ़ने वालों को पढ़ने में कितना मज़ा आता है और ये यात्रा कितनी लंबी और कब तक चलेगी..देखते हैं ये ननिहाली किस्से सिर्फ मेरे रहते हैं या और भी लोग इनसे जुड़ने का मन बनाएंगे...



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Tuesday, November 14, 2017

तुम इश्क़ में भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं

चलो हम दोनों भी इश्क़ में मशहूर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ, हम इंदौर हो जाएं

 तुम धीरे से मुस्का देना हम ताली देकर हँस देंगे
तुम शायरी एक उछालना, हम बाहों में तुमको कस लेंगे
 तू भीमबैठका की सुबह सा शांत, मैं चौक बाज़ार की रात सी हूँ
तू भोपाली नफ़ासत वाला, मैं बिन बातों की बात सी हूँ
तुम बन जाओ साँची के संयम, हम भेड़ाघाट की जलधारा का शोर हो जाएं...
तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

चलो हम दोनों भी इश्क़ में मशहूर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

 खजुराहो की कला जैसे ,हम प्रेम को वश में कर लेंगे
 बाजबहादुर रूपमती के किस्से फिर जीवित कर देंगे
 तुम विशाल बड़े तालाब बनो, मैं पातालपानी की लहर बनु
 तुम महेश्वर के घाट जैसे, मैं राजवाड़ा सी शान बनु
तुम भटके हुए मुसाफ़िर, हम तेरा ठौर हो जाएं
 तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

रीगल में फिल्में देखकर हम इश्क़ के ढेरों ख्वाब बुनें
वीआईपी रोड की शाम तले हम ख्वाबों के गहरे रंग चुने
तुम तालाब के गहरे नीले रंग, मैं रंग में तेरे रंग जाऊ
तुम बन जाओ मेरे जोगी, मैं तेरी जोगन कहलाऊँ
तुम चौक का मीठा शर्बत, हम सर्राफे की चाट- चटोर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

जहाँ प्यार बढ़े वो सुबह हो तुम जहाँ सुकूँ मिले वो सहर हूँ मैं
धीरज धरते महाकाल से तुम,शिप्रा सी चंचलचपल हूँ मैं
 मैं रेवा सा आँचल फैला दूँ तुम छाव में आकर सो जाओ
 मेरी गहरी काली आंखों में भोपाली सुरमे से रम जाओ
प्रेमरंग में डूबें कान्हा-किसली के मोर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

चलो हम दोनों भी इश्क़ में मशहूर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ, हम इंदौर हो जाएं


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Monday, November 13, 2017

वो भी खुश नहीं रहते

देकर के ज़ख्म ख़ुद भी तो मरहम नहीं लेते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते

इश्क़ की दीवारों में सेंध मारकर
सोने के महलों में भी बैचेन होते हैं
खून के आंसू रुलाकर वो
दर्द की बात कहते हैं
उनके सज़दे भी अनसुने
उनकी दुआएं भी बेअसर
उनकी पूजा भी अधूरी
उनके दीपक भी चमक भर
किसी की दुनिया जलाकर ख़ुदा का कहर वो सहते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते

वो ज़माने से लड़ जाने की कसम खाकर
प्यार के झूठ का रंग चढ़ाकर
ले जाते है हर रंग ज़िन्दगी से खींचकर
बेरंग कर गए जो सब्ज़बाग दिखाकर
वो रंगमहल में भी चले जाएं तो जाए
दुनिया की हर शय अपने कदमों में बिछाए
ख्वाबों का कारोबार करें ख्वाब सजा ले
अंधेरों की दुनिया का बद्दुआ का असर है
ख्वाब की दुनिया मे भी बेधड़क नहीं रहते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते।