अखबारों के वो क्लासिफाइड विज्ञापन तो आपको याद ही होंगे " जिंदगी में मौज मस्ती के लिए हमसे जुड़े २० हजार से ३० हजार रूपए महिना कमाए संपर्क करें .....".गुजरात से आई रेव पार्टी की खबर देखकर मुझे भी ऐसा ही विज्ञापन याद आ गया अभी ये खबर खुलकर बाहर भी नहीं आई थी की पोलिसे ने मुंबई में रविवार की रात कर्जत में चल रही एसी ही एक पार्टी में ३०० -३५० नोजवानो को एसी ही रेव पार्टी में पकड़ा.दोनों जगह एक बात मुख्य है शराब,कॉल गर्ल्स और बेसुध होकर नाचते और ड्रग्स लेते लेते लोग .और ये आलम होता है हर रेव पार्टी का.इन दोनों पार्टी में अंतर था तो बस एक गुजरात की पार्टी में गिरफ्तार अभियुक्तों का संबंध राज्य के प्रतिष्ठित लोगों से है इसलिये उनके नाम को उजागर नहीं किया जा रहा है और मुंबई की पार्टी में पकडे गए अधिकतर लोग युवा है और उम्र की एसी देहलीज पर है जहाँ पैर फिसलने की पूरी संभावनाएं रहती है.कुलमिलाकर हर उम्र ,हर दर्जे हर तबके के लोग इसके शिकार हो रहे है,मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर जल्दी ही ये सुनना पड़े की पिता एक रेव पार्टी से बरामद हुआ और बेटा दूसरी तरफ चल रही रेव पार्टी में पकड़ा गया .
हम बेवजह ही कहते है की देश में नौकरियों की कमी है देखिये कितनी नोकरियां बिखरी पड़ी है ,हम बेकार ही कहते है पैसे की कमी है देखिये कितना पैसा बिखरा हुआ है ,देश में भुखमरी है पर एसी पार्टियों को देखकर लगता है खाने की जरुरत किसे है युवा तो पीकर ही काम चला रहे है.शर्म की बात है पर वो भी आने से शर्माने लगी है शायद.
रेव पार्टी ऐसे अय्याश लोगो का जमवाडा जो शराब पीने,खुले बदन नाचने और ड्रगस को ही जिंदगी मानने लगे है.,उन्हें खुदी का होश नहीं तो खुदा का ख्याल होने की बात करना बेकार है....खास बात यह है कि इन पार्टियों में अब सिर्फ बड़े बाप की बिगड़ैल औलादें ही नहीं बल्कि मध्यमवर्गीय परिवारों के वो लड़के-लड़कियां भी जाने लगी हैं, जिन्हें घर से या तो खर्चा नहीं मिलता और या फिर उनके खर्च स्टेटस से कहीं ज्यादा हैं। यही नहीं अपने घरों से दूर रहकर पढ़ रहे छात्र-छात्राएं भी इन क्लाबों का शिकार बन रहे हैं। आप अगर एक बार इस माया जाल में फंस गए तो निकलना काफी मुश्किल होता है क्यूंकि इस तरह की पार्टियों में वीडियो बनाए जाते है और कई बार या तो लोगो को ब्लैकमेल करने के काम आते है या बाजार में एमएमएस या सीडी के माध्यम से परोसे जाते है जो एक बार उलझ गया वो धसता ही चला जाता है .बेरोजगारी के कारण जहां युवा वर्ग सिर्फ उसी दिशा में देखता है जहां पैसा मिले। और यदि 20 से 30 हजार रुपए महीने का लालच हो तो आकर्षण और भी बढ़ जाता है।
आजकल पैसे की भूख और ऐयाशी के नशे ने युवाओं को किस हाल में पहुचा दिया है वो दिन में बेसुध होकर कमाते है है रातों को बेसुध होकर नाचते है .मतलब होश हर हाल में नहीं है ..अख़बारों के ऐसे विज्ञापन सबसे ज्यादा आकर्षित करते है पैसे के लिए किसी भी हद तक, गिरने के लिए तैयार मध्यमवर्गीय लड़कियों को ,जिनके लिए अपना स्टेटस मेनटेन करना अपनी इज्जत मेनटेन करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है और ऐसी पार्टियों में अपनी हदें तोडना उतना ही आसान जितनी आसानी से वो अपने माँ बाप का विश्वास तोड़ देती है.
इन दोनों ही पार्टी में एक और चीज कॉमन है वो है फेसबुक ,दोनों ही पार्टी के इनवीटेशन फेसबुक में बनी कम्युनिटी के माध्यम से पहुचाए गए.इन्ही कम्युनिटी के माध्यम से फ़ोन नंबर एक्सचेंज हुए, वेन्यु डीसाइड हुआ और लोग मिल लिए .हम बेकार ही कहते है लोगो के पास समय नहीं एक दुसरे के लिए या लोग अब सोशल नहीं रहे पर इन रेव पार्टियों को देखकर लगता है युवा तो ज्यादा सोशल हो गए है अब वो सामाजिकता के पार नए रास्ते तलाशने लगे है सोशल होने के लिए .फिर चाहे उन्हें अपनी माँ का जन्मदिन याद रहे ना रहे ,पापा की उम्मीदें याद रहे ना रहे,एसी पार्टियों की सारी डीटेल्स याद रहती है.कितना अजीब है ना अब युवा सोशल होकर अनसोशल हो रहे है ...
अब हम में से कई लोग सोचेंगे की सरकार इन क्लबो पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगा देती जो इस तरह की रेव पार्टियाँ संचालित करते है पर यही समस्या है की क्योंकि हमारे संविधान में हर व्यक्ति को संस्था या संगठन बनाने का अधिकार है। और इसीलिए इन पार्टियों के माध्यम से देह व्यापार को बढ़ावा देने वाले लोग कानून की पहुँच से दूर है .अब यदि कोई संस्था अखबारों के माध्यम से फ्रेंडशिप के नाम पर आमंत्रण दे रही है तो वो सीधे तौर पर कामर्शियल प्रॉस्टीट्यूट को बढ़ावा देने जैसा है पर, ये सारी संस्थाएं क्लब के रजीस्ट्रेशन के साथ प्रारंभ होती है और कानूनन क्लब का रजीस्ट्रेशन करवाना या उसे संचालित करना अपराध नहीं है. इसलिए सब कुछ जानकार भी कोई कुछ नहीं कर पाता . तो जब तक एसी किसी रेव पार्टी की खबर पोलिसे को नहीं मिलती तब तक वो भी कुछ कर नहीं पाती. अब में यहाँ वो बात तो बिलकुल नहीं करुँगी की पोलिसे वाले क्या नहीं जानते या कई बार तो पोलिसे वालों की निगरानी में ये सब संचालित होता है क्यूंकि वो बातें सभी जानते है उन्हें बार बार बोलकर पोलिसे का टेनशन क्यों बढ़ाना...
वैसे देखा जाए तो ऐसे विज्ञापन छापने से पहले अखबारों को भी सोचना चाहिए, क्योंकि अखबार समाज को दिशा दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।पर शायद अखबार वाले भी सोच लेते है की जब करने वालो को करने में शर्म नहीं तो हमे छापने में क्या शर्म . अब क्या कहे सब कमाने में लगे है शायद किसी को युवा पीढ़ी के भविष्य की चिंता नहीं.उतनी ही गलती माता पिता की भी है वो भी शायद भूल जाते है की बच्चे को हर सुख - सुविधा देना, उनकी हर सही गलत बात को मान लेना ही कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं है. उन पर नजर रखना सही संस्कार देना भी उनकी जिम्मेदारी है क्यूंकि जिनके संस्कार गिर जाए उनके बच्चो को शराब पीकर गिरते देर नहीं लगती पर समस्या तो यही है सब समझदार है पर समझता कोई नहीं...
सामजिक दृष्टी से देखा जाए तो अब सोचने का वक़्त आ गया है क्यूंकि अगर अब सरकार और लोग नहीं चेते तो वो दिन दूर नहीं जब समाज का विघटन चरम पर होगा.शादी,रिश्ते,सामाजिकता जेसी बातें सिर्फ किस्से कहानियों की रह जाएगी . वेश्यावृत्ति, नशाखोरी और अपराध बढ़ता जाएगा।और हमारी आने वाली पीढियां तब शायद अपने बच्चो को कहानियों में बताएं की पहले शादी जेसा कुछ होता था और बच्चे कहे -रीअली ? आई डोंट बीलीव.या शायद उन बिचारों को कहानियां भी नसीब ना हो ....