"मैंने कहा था" उसकी जिंदगी का हिस्सा है
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भीज़िन्दगी में मौजूद हर शख्स
बस ये तीन लफ्ज़ बोलकर
अपनी हर चिंता से मुक्त हो जाता है
या स्वयं को शासक और उसे सेवक
की जगह खड़ा कर देता है हर रोज़
सुबह से लेकर रात तक वो
"मैंने कहा था" में उलझी रहती है
अब तक नहीं हुआ ये काम
मेरे जूते धुप में रखना
स्त्री के कपडे दे आना
खाने में ये बनाना
इस रिश्तेदार से एसे मिलना
उससे एसे बात करना
इस त्यौहार पर ये रीत निभाना
घर आँगन एसे सजाना
बच्चो को ये सब सिखाना
और भी ना जाने कितने
"मैंने कहा था" के साथ जुड़े वाक्य
और कहा अधुरा रह जाने पर जुडी कडवी बात
हर रोज वो अपने आस पास मंडराती देखती है .
अलग अलग लोग पर बस तीन शब्द
जिन्हें बोलकर वो आज्ञा देते हैं
और वो करती है कोशिश हर
मैंने कहा था को पूरा करने की
मैंने कहा था को पूरा करने की
सारे "मैंने " सारे "मैं" उसके आगे
विकराल रूप धारण करते हैं
और वो हर रोज़ सोचती हैं
वो भी तो कुछ कहती है
कभी सुना है किसी ने ?
9 comments:
'' मैंने कहा था ''....में छिपा औरत के दिल का दर्द बखूबी समझ आ रहा हैं .....सादर
एक दम सटीक बात...........
अपेक्षाओं को पूरा करते करते कमर ही टेढ़ी हो जाते है औरतों की...
बढ़िया..
अनु
लोगों की आशाओं की प्यास बुझती ही नहीं है..
dard ko ujagar karti kavita achchha shabd chayan
सही कहा आपने.......
स्त्री घर की मुख्य धुरी मगर उसकी बातों पर ही ध्यान नहीं दिया जाना कचोटता ही है .
मर्मस्पर्शी कविता !
उस मूक की कोई नहीं सुनता ... पति बच्चे ... सभी इस्तेमाल करना जानते हैं ...
मार्मिक भाव ...
वाह !
बहुत सुंदर !
मैने कहा था
रोज ही कहता हूँ
उसने कहा था
कहाँ सुनता हूँ
मैं इसलिये कुछ
कहाँ लिख पाता हूँ
वो सब कुछ
लिख भी दे
तब भी नहीं
समझ पाता हूँ !
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