तुम्हारे नाम के अक्षर
जो "क" से कृष्ण कह दू तो
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
मेरे सपनो को गढ़ते हैं
तुम्हारी मुस्कुराहटों से
मेरे दिन रात चलते हैं
की "ल " से लक्ष्य है मेरा
जनम भर साथ निभाना
तुम्हारे साथ ही जीना
तेरे ही संग मर जाना
जो "क" से कृष्ण कह दू तो
कही ज्यादा ना इतराना
सुनेगा नाम जब तेरा तो
ताने देगा ये ज़माना
तुम "श " से शास्त्र जीवन का
मुझे अपने से बांधे हो
परिंदे हो हवा के तुम
पर मेरे बिन तुम भी आधे हो
मेरे इश्वर नहीं हो तुम
पर उससे कुछ कम भी नहीं
ना पूजुंगी कभी तुमको
साथी रहना बंधन नहीं
तुम्हारा प्रेम जीवन है
ये रास्ता तुमने दिखाया है
तुम्हे सबसे ज्यादा अपना समझू
तुम्ही ने तो सिखाया है
कहो कहते हो क्या बोलो
चलोगे साथ क्या मेरे ?
अग्नि के आस पास से गहरे हैं
अपने मन के पड़े फेरे.......
14 comments:
इतने प्यारे "द" से "दिल" लटका कर बुलाओगी तो कौन न करेगा :-)
सुन्दर रचना....
अनु
मन के फेरों का अटूट बंधन... निश्छल, पवित्र, समर्पण भाव...
अग्नि के फेरों से ज्यादा मन के फेरों की अहिमीयत ही ज्यादा और सही मायने रखती है। सबसे खूबसूरत और सार्थक पंक्तियाँ यही हैं इस काव्य की ... :)
शब्दों की कारीगरी..बहुत सुन्दर..
bahut sundar prastuti..
वाह!!!! क्या बात है,निश्छल समर्पण भाव की बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,
RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
RECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,
WAAH....BAHUT SUNDAR.
Agree to Anuji...:-)
Bahut sundar panktiyan
anu ji bda pyara comment . Ab ek bat aur btati hu mere husband ka naam lokesh he,aur ye unhi k lie likhi he.ab to apko a se sare akshar mil jaenge kavita me.
बेहद खूबसूरत रचना
कनुप्रिया जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'परवाज' कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 25 अगस्त को 'तुम्हारे लिए...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
बहुत ही बेहतरीन रचना......
अग्नि के आस पास से गहरे हैं
अपने मन के पड़े फेरे.......bahot achche....
वाह ...बेहतरीन
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