वो स्याही जिसने मेरी कलम को अर्थ बख्शा है
लोग कहते हैं उसका रंग तेरे आंसुओं सा है
काली रात,काली आँखें गहरे दर्द में डूबी
शक होता है सब पर रंग तेरे गेसुओं का है
मुस्कुराहटों ने मायूसी का कफ़न पहना है ,
खिलखिलाहटें लौट आने की दुआ करती है
सारा शहर ही जैसे उदास ,तनहा है ,
लगता है सबका हाल तेरे मजनुओं सा है
वो बादल जो तेरे लिए घुमड़कर बरसता था
खामोश मंडराता है अब तेरे इंतज़ार में
ताने देती है दुनिया पर सूना सा फिरता है
आजकल वो भी बड़ा बेआबरू सा है
दिल जिसमे तस्वीर तेरी धुंधली नहीं होती
होता है सजदा आज भी उतनी ही शिद्दत से
बस फर्क है इतना की अब उत्सव नहीं होता
जो मंदिर था कल तलक वो अब मकबरा सा है
लोग कहते हैं उसका रंग तेरे आंसुओं सा है
काली रात,काली आँखें गहरे दर्द में डूबी
शक होता है सब पर रंग तेरे गेसुओं का है
मुस्कुराहटों ने मायूसी का कफ़न पहना है ,
खिलखिलाहटें लौट आने की दुआ करती है
सारा शहर ही जैसे उदास ,तनहा है ,
लगता है सबका हाल तेरे मजनुओं सा है
वो बादल जो तेरे लिए घुमड़कर बरसता था
खामोश मंडराता है अब तेरे इंतज़ार में
ताने देती है दुनिया पर सूना सा फिरता है
आजकल वो भी बड़ा बेआबरू सा है
दिल जिसमे तस्वीर तेरी धुंधली नहीं होती
होता है सजदा आज भी उतनी ही शिद्दत से
बस फर्क है इतना की अब उत्सव नहीं होता
जो मंदिर था कल तलक वो अब मकबरा सा है
6 comments:
बहुत ही बढ़िया
सादर
बहुत ही अच्छी रचना..
acchi rachna
khubsurat ehsas.
बहुत सुन्दर |
मेरी कलम को मायने बख्शा..,
उसका रंग तेरे अश्कों सा है..,
स्याह रात , सुरमई नजर.....
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