भावनाएं हर समय एक सी नहीं होती,कभी पेम भरी होती हैं कभी नफरत भरी कभी क्रांति विचार आते हैं कभी विद्रोह विचार और कभी समर्पण...अगर हम इन सब भावनाओं से अछूते रहकर सिर्फ अच्छा और बस अच्छा दिखने वाला जीकर चले गए तोशायद जीवन बेकार हो भावनाओं का उतार चढ़ाव ना आए तो जीवन और कविताएँ सब नीरस हो जाए.... अलग अलग मूड में,
अलग अलग समय पर लिखी हुई अलग अलग रसों से भरी कुछ पंक्तियाँ आज यहाँ एक साथ
पोस्ट कर रही हु ....
१.
१.
रिश्तों का ढंग कुछ इस ढंग का होता जाए
एसा आंसू है रुकता भी नहीं चलता भी नहीं
बस यही गम है जो जिन्दा रखे है हमें
इश्क का अब जिंदगी पे जोर चलता भी नहीं
वो कहने भर को तो इक शख्स ही है
यूं चुभा है जान लेता नहीं निकलता भी नहीं
वो हर बार इस तरह ही तोड़ता है हमें
सांस आती भी नहीं दम निकलता भी नहीं
अज़ान उससे शुरू की सजदा उसी का किया
वो खुदा होकर ,खुदा से काम करता भी नहीं
कुछ ख्वाहिशें कभी जवाँ नहीं होती
कुछ मज़िलों को रास्ता मिलता ही नहीं
२.
उनसे खताएं जो हुई वो गर में नज़र में आ जाती
उन्हें दिल तोड़ देने की सज़ा हो जाती
हमसे उम्मीद थी एसी बोझ के जैसी
मैं ज़रा आह भी करती बेवफा हो जाती....
३.
जलाकर राख कर दे सब उकता गया है अब
ये सूरज रंग बदलना चाहता है
तेरे पहलु में आया तो कई नज़रों से गिर गया
ये मैखाना संभालना चाहता है
४.
बचोगे कब तलक हर ओर ही शिकारी है
मौत की एक घडी सारी ज़िन्दगी पर भारी है
तमाम उम्र का साथ किसने देखा है
इस दर्द का खुमार हमपर तारी है
५. ऐ प्रेम मैं तुम्हे तब तलक पढूंगी
जब तक तलक तुम लिखे जाते रहोगे
अगर अपना पढ़ा जाना चाहते हो
तो लिखने वालों को सलामत रखो....
ऐ प्रेम मैं तुम्हे तब तलक लिखूंगी
जब तलक तुम पढ़े जाते रहोगे
अगर अपना लिखा जाना चाहते हो
तो अपने करने वालों को सलामत रखो
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
एसा आंसू है रुकता भी नहीं चलता भी नहीं
बस यही गम है जो जिन्दा रखे है हमें
इश्क का अब जिंदगी पे जोर चलता भी नहीं
वो कहने भर को तो इक शख्स ही है
यूं चुभा है जान लेता नहीं निकलता भी नहीं
वो हर बार इस तरह ही तोड़ता है हमें
सांस आती भी नहीं दम निकलता भी नहीं
अज़ान उससे शुरू की सजदा उसी का किया
वो खुदा होकर ,खुदा से काम करता भी नहीं
कुछ ख्वाहिशें कभी जवाँ नहीं होती
कुछ मज़िलों को रास्ता मिलता ही नहीं
२.
उनसे खताएं जो हुई वो गर में नज़र में आ जाती
उन्हें दिल तोड़ देने की सज़ा हो जाती
हमसे उम्मीद थी एसी बोझ के जैसी
मैं ज़रा आह भी करती बेवफा हो जाती....
३.
जलाकर राख कर दे सब उकता गया है अब
ये सूरज रंग बदलना चाहता है
तेरे पहलु में आया तो कई नज़रों से गिर गया
ये मैखाना संभालना चाहता है
४.
बचोगे कब तलक हर ओर ही शिकारी है
मौत की एक घडी सारी ज़िन्दगी पर भारी है
तमाम उम्र का साथ किसने देखा है
इस दर्द का खुमार हमपर तारी है
५. ऐ प्रेम मैं तुम्हे तब तलक पढूंगी
जब तक तलक तुम लिखे जाते रहोगे
अगर अपना पढ़ा जाना चाहते हो
तो लिखने वालों को सलामत रखो....
ऐ प्रेम मैं तुम्हे तब तलक लिखूंगी
जब तलक तुम पढ़े जाते रहोगे
अगर अपना लिखा जाना चाहते हो
तो अपने करने वालों को सलामत रखो
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
8 comments:
सुन्दर..
बहुत सुन्दर.....
अनु
बहुत ही बढ़िया
सादर
जिद है, हद तक लिखना होगा..
बहुत बेहतरीन लिखा है आपने,,,,बधाई कनु जी,,,
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
बहुत खूबसूरत भाव
बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वो खुदा होका खुदा से काम करता भी नहीं !
वाह !
खूबसूरत भाव....कनु जी
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