तुम्हे बनाना ताज महल है
मै मरने से क्षण क्षण घबराऊ
बोलो इतनी उथल पुथल में
प्रेम भला कैसे पनपेगा ?
तुम जौहरी के जैसे गहरे
हीरों सी रंगत गढ़ना चाहो
मै नदिया के पत्थर सी उथली
बिखरी बिखरी सी चलना चाहू
तुम प्रश्नों की उलझी दुनिया
मै उत्तर की रीत चलाऊ
अमृत गरल के इक से मंथन में
बोलो साम्य कहाँ उपजेगा ?
तुम देवी मूरत के मूर्तिकार से
मैं सुबह के खिले हरसिंगार सी
तुम मूरत में अमरत्व चाहते
मैं शाम ढले तक ढल जाउंगी
इतने विपरीत गहन चिंतन में
बोलो बंधन कहाँ जन्मेगा ?
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
मै मरने से क्षण क्षण घबराऊ
बोलो इतनी उथल पुथल में
प्रेम भला कैसे पनपेगा ?
तुम जौहरी के जैसे गहरे
हीरों सी रंगत गढ़ना चाहो
मै नदिया के पत्थर सी उथली
बिखरी बिखरी सी चलना चाहू
तुम प्रश्नों की उलझी दुनिया
मै उत्तर की रीत चलाऊ
अमृत गरल के इक से मंथन में
बोलो साम्य कहाँ उपजेगा ?
तुम देवी मूरत के मूर्तिकार से
मैं सुबह के खिले हरसिंगार सी
तुम मूरत में अमरत्व चाहते
मैं शाम ढले तक ढल जाउंगी
इतने विपरीत गहन चिंतन में
बोलो बंधन कहाँ जन्मेगा ?
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
16 comments:
पलों को...एहसासों को कौन बाँध पाया है...
बहुत सुन्दर...
अनु
बहुत खूब सुन्दर अहसासों की प्रस्तुति,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
Man men uthe sawalon se ghiri prashn puchti,har bat ka ahsas karati, bahut hi khoobsurat rachna
सवालों के संग संग कई जवाब देती सुंदर रचना...!
सुंदर !
पता तो है ना कोई ताजमहल बनाना चाहता है
रुह को रुह की जगह तक पहुंचाना चाहता है ।
भवनों में बसने से अच्छा है हृदय में बसना।
nice presentation....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
तुम प्रश्नों की उलझी दुनिया
मै उत्तर की रीत चलाऊ
अमृत गरल के इक से मंथन में
बोलो साम्य कहाँ उपजेगा ?
यह पंक्तियाँ बेहद अच्छी लगीं
सादर
sundr lekhan man ki sundarta ka ghotk hota hai. aapki kavitaye sahaj saral kintu kalam kitani paini hai. ekadam dil ki gaharahi me utar jati hai.
badhai ho !
anvart likhati rahe !
तुम जौहरी के जैसे गहरे
हीरों सी रंगत गढ़ना चाहो
मै नदिया के पत्थर सी उथली
बिखरी बिखरी सी चलना चाहू
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
wah ! bahut subdar likha hai
वाह वाह वाह ………विपरीत ध्रुवों की सुन्दर अभिव्यक्ति मन को छू गयी।
तुम प्रश्नों की उलझी दुनिया
मै उत्तर की रीत चलाऊ
अमृत गरल के इक से मंथन में
बोलो साम्य कहाँ उपजेगा ?
....बहुत खूब! भावों की बहुत सुन्दर प्रवाहमयी अभिव्यक्ति...
सतत प्रवाहमय ... लाजवाब रचना है .. अतिसुन्दर ...
बहुत सुंदर भाव ...
सुन्दर कविता
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