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parwaz:love or friendship |
मुझे तुमसे प्यार कैसे होता मेरे पास आंसुओं से गीले करने के लिए तुम्हारा कोई ख़त ना था कोई याद ना थी.....कोई शब्द ना थे....जिन्हें में भूले बिसरे गीतों की ही तरह ही गुनगुना लू.....अब तुम मुझे दोष देते हो की क्यों मैंने भी तुमसे प्यार ना किया...मुझे बेवफा कहकर बदनाम करते हो सारे जहां में ...मेरी दोस्ती को भी ठुकराए जाते हो.......पर....तुम्ही बताओ कैसे होता मुझे प्यार?....अब मेरा क्या कुसूर जो तुम मुझसे मोहब्बत कर बैठे .........
तुम बार बार कहते हो मैं तुम्हे छल गई पर मुझसे ज्यादा कौन छला गया इस दुनिया में ये बताओ तो ज़रा...? मेरे किस ख़त मैं मैंने तुम्हे प्रेम किया ? तुम्हे ये अहसास दिलाया की तुम मेरे जीवन आधार बने जाते हो? कब कहा मुझे प्रेम है तुमसे ?कौन सा ख़त कहता है की मैं तुम्हे विरहनी की तरह याद करती हू......? मैं तो हर बार अपने शब्दों को तुम्हारी खेरियत की दुआ से जोडती रही....तुम्हारी तरक्की के लिए किए हुए सजदे को शब्दों में पिरोती रही.....मेरे कौन से शब्दों में तुम्हारे मन मैं प्रेम के अंकुर को जनम दिया.....मैं क्या जानु ? अब तुम ही बताओ तुम तो जिंदगी भर मुझे दोष देकर जी लोगे और शायद जल्दी ही मुझे भूल भी जाओगे पर मैं ?मेरा क्या होगा मैं तो सारी उम्र इस आग में जलती रहूंगी की मैंने तुम्हारा दिल दुखा दिया ....तुम जो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो.....तुम ही बताओ ए मेरे दोस्त मैं क्या करू?
मेरा बस चलता तो उन खतों में जाकर सारे शब्द नोच लाती ,तुम्हारी यादों के समुन्दर में उतरकर मेरी हर याद को खींच लाती ...काश एसा कोई यन्त्र होता जिससे खतों की सारी स्याही सोख ली जाती और ये ख़त कोरे कागज़ बन जाते..... इसके साथ मै तुम्हारे मन में उतरे हर शब्द को भी खीच लाती वापस अपने पास.....और जला देती कही ले जाकर...... पर मैं क्या करू ? मैं तो कुछ नहीं कर सकती अब.....तुम्हे जितना दुःख अपने एक तरफा प्रेम के ना मिल पाने का है उससे कहीं ज्यादा दुःख मुझे अपने सबसे ज्यादा अच्छे दोस्त के खो जाने का है......पर तुम कैसे समझोगे मेरा दर्द तुम तो प्रेम किए बेठे हो मेरे उन निर्जीव खतों से ....पर ये दुःख से हलकान हुई जाती जीवधारी दोस्त तुम्हे दिखाई नहीं देती ? दिखेगी भी कैसे ?तुम तो अपने ही दुःख के अंधे कुए में डूबे जाते हो.....
सोचती हू मै भी तुम्हारी तरह sms वाली हो जाऊ अब...आज का ये ख़त तुम्हे आखरी ख़त है अब ना लिखूंगी कोई ख़त.... बस इधर उधर से आए sms भेज दिया करुँगी सबको हाय हल्लो लिखकर....अब तो मन करता है अपने सारे ख़त लोगो से वापस मंगवाकर उनमे आग लगा दू.....ना जाने कब कहाँ उनसे प्रेम का अंकुर फूट जाए और एक एक करके मेरे सारे अपने छूट जाए ....पर में जानती हूँ मै आदत से मजबूर हूँ....लत लग गई है मुझे लिखने की शायद लिखना और जीना एक सा हुआ जाता है मेरे लिए अब......
अब बस एक ही काम हो सकता है सबके लिए ख़त लिखती रहू पर उन्हें पोस्ट ना करू.... एक बक्से में जमा कर लूँगी....और उस बक्से की चाबी मेरी वसीयत के साथ रख दूँगी जिस दिन में मरूंगी तब मेरी वसीयत में ये सारे ख़त उन सारे लोगो के नाम लिख जाउंगी जिनके लिए ये लिखे गए हैं......तुम भी उसी दिन आना तुम चाहे मुझे बेवफा कहकर भूल जाओगे पर में जिंदगी भर अपने सबसे अच्छे दोस्त के नाम के ख़त जमा करती रहूंगी....मेरे मरने के बाद तुम अपनी अमानत ले जाना........पर कसम है तुम्हे इस अधूरी दोस्ती की... मेरे शब्दों से...मेरे खतों से फिर मोहब्बत ना कर बेठना.....
तुम्हारी दोस्त....