आज कई दिन बाद ब्लॉग पर एक पोस्ट … इसे कविता की जगह एक ऑफबीट सांग कहना ज्यादा बेहतर होगा … कोशिश कैसी है बताइयेगा ……
कोई हमको ये बताए क्यों ये अंधी दौड़ है
क्यों रात में दिन जैसा हो जाने की लम्बी होड़ है
दिल घरों में रख दिए सड़को पर सिर है पॉव है
मौत से इक कशमकश है, जिंदगी बस दांव है.…।
इस शहर की धड़कनों में जीने/जीवन की सूखी आस है
चारों तरफ फैला समुंदर बुझती नही क्यूं प्यास है
आस के गहरे कुएं में खौफ खाती जान है
लोग तो लाखों है पर ,
क्या थोड़े से भी इंसान है
चलती हुई लाशों के अंदर कसमसाती आत्मा
ढ़ूंढ़ते है हम जिसे वो चैन मिलेगा कहाँ
वो जिसे सब चाँद कहते है,दाग से काला हुआ
डर ने खामोशी को...,खामोशी ने डर पाला हुआ
चाँदी के सिक्को के दम पर
डोलता ईमान है
लोग तो लाखों है पर ,क्या थोड़े से भी इंसान है
ज़ुल्म की सीढ़ी बनाकर चल रहा व्यापार सा
जिसने ज्यादा खून चूसा वो बन गया अवतार सा
आग में तपकर के वो सोना बनेगा झूठ है
दर्द की भट्टी है ,इम्तेहान लेती भूख है
एक गोली,एक खंजर,एक आदमी की वासना
चारों तरफ दहशत है कब हो जाए इनसे सामना
झूठ की है व्यूहरचना
सच रणनीती से अंजान है
लोग तो लाखों हैं पर, थोड़े से ही इंसान है..... थोड़े से ही इंसान है.....
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
7 comments:
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
खट्टी-मीठी यादों से भरे साल के गुजरने पर दुख तो होता है पर नया साल कई उमंग और उत्साह के साथ दस्तक देगा ऐसी उम्मीद है। नवर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
बाहरि जग के सुहा सों, तामस गुन बढ़ बाढ़ि ।
अंतर जग जब सोहहीं, सातबीक गुन गाढ़ि ।२२४२।
भावार्थ : -- बाह्य- जगत की शोभा के संग तमोगुण धर्म का विस्तार होता है इस अवस्था में मनुष्य का चित्त तामस वृत्ति में प्रवृत्त रहता है ॥ अंतर जगत की शोभा सतोगुण धर्म का वर्द्धन करती है रजस गुण कहीं अल्प ही होता है मनुष्य का चित्त सत्त्वान व् विवेकशील होकर साधु-पद को प्राप्त करता है ॥
सच आज इंसान बने रहने की सख्त जरुरत है ..
बहुत बढ़िया सार्थक चिंतन कराती प्रस्तुति /...
बहुत ही बढ़िया ..
सच में आज इन्सान मिलना बहुत कठिन है।
सच में आज इन्सान मिलना बहुत कठिन है।
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