अपनी बिखरी यादों का हर ज़र्रा हमसाया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है
वो लम्हे जो पीछे छूट गए
वो अपने जो हमसे रूठ गए
वो गाँव जो हमने देखे ना
वो शहर जो आकर बीत गए
सपनो की दुनिया में उनका मंच सजाया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है
वो बरखा जो तुमसे सावन थी
सर्दी की धूप जो मनभावन थी
वो बसंत जो मन का मीत बना
वो फागुन जो संगीत बना
मन को ना भाए कुछ भी ,हर मौसम बोराया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है
वो कलियाँ जो हमको प्यारी थी
जिन पंछियों से यारी थी
वो चाँद था जिससे प्रेम बढ़ा
वो लहरें जिनसे था सम्बन्ध घना
कतरे से लेकर ईश्वर तक अब सब कुछ ज़ाया (बेकार ) लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
10 comments:
प्रेरित करती प्रस्तुति-
कथ्य और शिल्प दोनों प्रभावी-
आभार आदरेया ।।
दुखी रियाया शहर की, फिर भी बड़ी शरीफ ।
सह लेती सिस्कारियां, खुद अपनी तकलीफ ।
खुद अपनी तकलीफ, बड़ा बदला सा मौसम ।
वेलेंटाइन बसंत, बरसते ओले हरदम ।
हमदम जो नाराज, आज कर गया पराया ।
बिगड़े सारे साज, भीगती दुखी रियाया ।।
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति.
sundartam bhav,"mohabbt kare aur karna sikhaye,chalo aaj mohabbt ki duniya basaye......"
katre se lekar Ishwar tak ab sab kuch jaya lagta hae,
jab yad tumahari aati hae,to shaher paraya lagta hae.
EK bhav purna sundar prastuti
आपने राजेंद्र गुप्ता और नीना गुप्ता के ग़ज़ल की याद दिला दी बहुत ही सुन्दर रचना .
बहुत सुन्दर गजल .........
सुन्दर अभिव्यक्ति.जब तुम्हीं गर साथ अगर , अब सब कुछ जाया लगता है
जहाँ इंसान की यादें अटकी रहती हैं उसका मन वहीं जाता है बार बार ... ओर बाकी सबकुछ पराया लगता है ...
सच कहा है ... भावमय रचना ...
यादों में सब कुछ बिसराया..
बहुत सुंदर भावमय,लययुक्त मन को प्रभावित करती अभिव्यक्ति,,,बधाई,कनुप्रिया जी,,,
Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
Post a Comment