Wednesday, December 5, 2012

बदलते बच्चे बिखरता बचपन

मुझे चाँद खिलौना ला दो माँ ,मुझे तारों तक पहुंचा दो माँ
पापा प्यारी गुडिया ला दो, छोटा बेलन चकला ला दो
एक प्यारी सी चुनरी ला दो,मैं पहन उसे नाचूंगी माँ
मुझे चाँद खिलौना ला दो माँ ......


हमारा बचपन कुछ इसी तरह का था और शायद आज से २० से २५ साल पहले लगभग सभी बच्चो का बचपन कुछ एसा ही मासूमियत भरा था.बच्चे बिलकुल ओंस की बूंदों जेसे हुआ करते थे निश्चल , भोले और मासूम.पर अब बचपन वेसा नहीं बचा आजकल के बच्चे बाली उम्र में ही जाने कब जवान लोगो की तरह व्यवहार करने लगते है पता भी नहीं चलता .जिन विषयों पर हम और हमारी और हमसे पहले की पीढ़ी वाले लोग जवानी के दौर में भी बातें करने तक से शरमाते रहे वो सब आजकल के बच्चे मासूम उम्र में ही करने लगे है .उनका बचपन खो रहा है अहसास ख़तम हो रहे है और वो उम्र से पहले वयस्कों की तरह व्यवहार लगे है....
कई बार जब तक माता पिता को इस बात का अहसास होता है की उनका बच्चा अपनी उम्र से पहले बड़ा हो रहा है उसके पहले ही वो दहलीज लाँघ जाता है.३० वर्षीया विनीता के साथ कुछ एसा ही हुआ वो अपनी ४ साल की बेटी रितिका के साथ एक खिलोनो की दूकान पर गई वहा एक गुडिया को देखकर बेटी मचल गई की मम्मी मुझे यही गुडिया चाहिए विनीता ने जब उसे मना किया और कहा नहीं ये अच्छी गुडिया नहीं है तो बच्ची ने तपाक से जवाब दिया "मम्मा देखो ना कितनी हॉट है इसकी ड्रेस इसका मेकअप सब कितना सेक्सी है प्लीज़ ले दो ना ".अपनी चार साल की बेटी के मुह से एसे शब्द सुनकर उसे अजीब लगा .पर ये नई बात नहीं है आजकल बच्चे अपनी बोलचाल में एसे शब्दों का प्रयोग करते है.इतना ही नहीं सेक्स की आधी अधूरी जानकारी लेकर एक्सपेरिमेंट करने से भी नहीं कतराते.
देल्ही के एक स्कूल में २ बच्चों ने आपतिजनक स्थति में अपना एक ऍम ऍम एस बनाया और उसे अपने दोस्तों को भेज दिया.इंदौर की कुछ लड़कियां स्कूल में शराब पीती पकड़ी गई .एक किशोर छोटी बच्ची के साथ बलात्कार का दोषी पाया गया.मुंबई में एक १६ वर्षीय लड़की ने फुटपाथ पर चलते हुए ४ लोगो को अपनी कार से टक्कर मार दी. ये सारे उदाहरन है जहाँ बच्चो को जरुरत से ज्यादा छूट दी गई उन्होंने इसका गलत इस्तेमाल किया या सही जानकारी नहीं दी गई और वो रस्ते से भटक गए. आए दिन एसी कई घटनाएं देखने सुनने मिलती है जहा बच्चे अपनी मासूमियत का दायरा लांघते और उम्र से पहले बड़े होते दिखाई देते है.
आजकल की छोटी छोटी सी बच्चियां ४,५ साल की ही उम्र में हॉट दिखना चाहती है ,सेक्सी कपडे पहनना चाहती हैं शीला और मुन्नी की तरह उत्तेजक डांस करना चाहती हैं. .किशोर वय की लड़कियां एसे कपडे पहनती है जो उन्हें सेक्सी दिखने में मदद करें.इसमें हम थोडा सा हाथ बाजारवाद का भी मान सकते है. चाइल्ड सायकोलोजी की टीचर वंदना उपाध्याय कहती है "बच्चियां ये सब कर रही हैं क्यूंकि उन्हें अपने आस पास यही सब होता दिखाई दे रहा है .बाजार उन्हें सिखा रहा है की उनकी कला,पर्सनालिटी ,अच्छे गुणों का कोई मोल नहीं है वो अगर सुन्दर और सेक्सी दिखेंगी तो ये सब बातें कोई मायने नहीं रखती .और यही गलत सोच उन्हें बिगड़ने में बड़ी भूमिका अदा कर रही है .
कुछ दिनों पहले अखबारों में खबर पढ़ी होगी आपने जिसमे ३,४ दस वर्षीय स्कूली बच्चे अपनी क्लास में असामान्य अवस्था में पाए गए और जब उनसे इसके बारे में पूछताछ की गई तो तो उन्होंने कहा हम रेप गेम खेल रहे थे.क्या आप सोच भी सकते है की रेप गेम भी कुछ हो सकता है पर ये सच है की बच्चे ये सब कर रहे हैं.बच्चे कितनी तेजी से अपनी उम्र के पहले ही बड़े हो रहे है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की व्यस्क फिल्म देखते हुए कई बच्चो को देखा जा सकता है जो अपनी उम्र के लिए नकली आई- डी प्रूफ दिखाकर फिल्म देखते है. मुंबई के १ सिनेमा हॉल पर टिकिट की बुकिंग करने वाले महेश बताते है " कई बार बच्चो ए सर्टिफिकेट वाली फिल्मों को देखने बच्चे आते है हमे उनकी उम्र पर शक भी होता है पर वो आई डी प्रूफ दिखाते है और हमे टिकिट देना पड़ता है".

आपको याद होगा कुछ समय पहले एक प्रसिद्द टी वी कार्यक्रम में जज तब हैरान रह गए थे जब उन्होंने एक छोटी सी बच्ची को कमर हिलाकर लगभग अश्लील भाव भंगिमा में डांस करते देखा था .उनके मुह खुले के खुले और आँखे फटी की फटी रह गई थी , एक मासूम बच्ची को इस तरह का डांस करते देखकर. भड़कीला मेकअप ,अश्लील भंगिमा के साथ लोगो को आकर्षित करना ये आजकल छोटे छोटे मासूम बच्चो को करते देखा जा सकता है.जब उस बच्ची से इस बारे में जज ने सवाल किया तो वो उतनी ही मासूमियत से बोली ये मुझे मम्मा ने सिखाया.आजकल छोटी बच्चियां मल्लिका शेरवत और राखी सावंत की तरह दिखना चाहती है.और ५ से ६ साल के छोटे छोटे बच्चे मुन्नी और शीला से शादी करना चाहते है.इन सारे दिखावों में हमारे बच्चो का बचपन कही खो गया है.जब उनकी खेलने की उम्र होती है उस समय वो सेक्सी दिखने की इच्छा रखने लगते है , और जब उन्हें अपने लिए क्यूट शब्द सुनकर खुश होना चाहिए वो हॉट और डेशिंग शब्द सुनना चाहते है.

कुछ समय पहले मुंबई के कर्जत में एक रेव पार्टी हुई थी आपको जानकार आश्चर्य होगा की वहा से पकडे गए लोगो में किशोरवय के बच्चे भी थे. जिनमे लड़के और लड़कियां सभी शामिल थे .ये सभी शराब पीते ,और दृग्स लेते हुए मिले .इस तरह की पार्टियों में कई बार वीडिओ और ऍम ऍम एस बनाये जाते है और बाजार में बेचे जाते है.बच्चे कच्ची उम्र में जब एक बार इस सब में उलझ जाते है तो बाहर आना बहुत मुश्किल होता है.पर कम उम्र में बच्चे इस सब के दुष्परिणाम नहीं समझ पाते और बचपन के साथ कई बार अपने जीवन को भी अँधेरे में धकेल देते है.

एक सर्वे के अनुसार इन्टरनेट से पोर्न साईट देखने वाले और पोर्न वीडिओ डाउनलोड करने वालों में बड़ी संख्या किशोरों और बच्चो की होती है. ये बच्चे और किशोर इन्टरनेट के माध्यम से अधकचरा ज्ञान लेते है और अपने दोस्तों के साथ एक्सपेरिमेंट करते है.बच्चे अपनी उम्र से ज्यादा जानकारी रखते है उत्तेजक म्युझिक वीडिओ देखते है और अपनी उम्र से ज्यादा वयस्कों की तरह व्यवहार करने लगते हैं. " हमारे बच्चो के दिमाग पहले ही इन्टरनेट पर और दोस्तों से मिलने वाली अधूरी जानकारी से भरा हुआ है साथ ही साथ एक और बड़ी समस्या है की भारत के घरों में अभी भी बच्चो से सेक्स और योन शिक्षा पर बात नहीं की जाती है जिसके कारन बच्चे अपने आस पास के बच्चा,टीवी,सिनेमा और इन्टरनेट से गलत जानकारी इकट्ठी कर लेते है और धीरे धीरे ये सोचने लगते है की सेक्स करना और उत्तेजक कपडे पहनना या आसामान्य सेक्स हरकतें करना नोर्मल है. "ये कहना है सेक्सोलोजीस्ट अरुणेश कुमार का.

इन्टरनेट पर आजकल एसे कई वीडिओ और फोटो उपलब्ध हैं जो बच्चो को अधकचरी जानकारी देते है.फसबूक ,यू -ट्यूब और ऑरकुट जेसी साइट्स पर भी आपको इस तरह के वीडिओ देखने मिल जाएगे .और इनमे से कई वीडिओ बिना किसी एज वेरीफीकेशन के देखे जा सकते है.इस सब मायाजाल में उलझकर बच्चे अपनी मासूमियत को खोते जा रहे हैं. लेखिका मोहिनी पुराणिक कहती हैं की "बच्चे इन साइट्स पर अपनी उम्र ज्यादा बताकर अपने अकाउंट खोल लेते है और फिर यहाँ अपलोड किए जाने वाले वीडिओ और फोटोग्राफ्स देखते है ये बहुत जरूरी हो गया है की परेंट्स बच्चो की गतिविधयों पर नजर रखे और उन्हें बिगड़ने से और उम्र से पहले बड़ा होने से रोके.."

महानगरीय संस्कृति ने भी इस सब को बढ़ावा दिया है बच्चे बाहर जाकर मस्ती ना करे इसलिए माता पिता उनके हाथ में रिमोट थमा देते हैं एक कंप्यूटर ला देते है और इन्टरनेट कनेक्शन करवा देते है ताकि वो घर पर रहकर ही खुश रह सके. कई माता पिता ऑफिस जाते है और अपना ज्यादा समय बच्चो को नहीं दे पाते और इसकी पूर्ती वो बच्चो को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देकर करना चाहते हैं.एसे में बच्चे घर में अकेले रहकर टी वी ,इन्टरनेट का सही उपयोग करने की जगह गलत इस्तेमाल करने लगते है.कई बार उनकी संगती भी बिगड़ जाती है जिसके कारण वो गलत बातें सीख जाते हैं और कई बार तो जिद करके अपनी गलत मांगे भी पूरी करवाने लगते है.उन्हें एक अलग कमरा दे दिया जाता है जिसमे प्रैवेच्य के नाम पर अकेले में बैठकर वो अपनी मनमर्जी करते है.

ये सच है की बच्चो को जोर जबरजस्ती से नहीं रोका जाना चाहिए पर आप ये कहकर भी अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते की "उसे जो करना है वो करेगा ही हमारी बात तो मानता या मानती ही नहीं".माता पिता के लिए ये जरूरी है की वो बच्चो को सही संस्कार दें और उन्हें अच्छे बुरे की पहचान बचपन से ही करवाए. उनके साथ दोस्तों की तरह व्यवहार करें और उनकी बातें सुने उन्हें थोडा समय दे.
इस बात में कोई दोमत नहीं की वो आगे जाकर सेक्स करेंगे पर इसका मतलब ये नहीं की बचपन से ही उन्हें ये सब करने की छूट दे दी जाए और जब उनके हाथों में खिलोने होने चाहिए तब उनके हाथों में कंडोम और गर्भनिरोधक थमा दिए जाए.

आज के समय में बच्चे बड़े और रंगीन सपने देखते है ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना नहीं बचा इसलिए उनपर जबरजस्ती करके या अति अनुशासन में रखकर कोई फायदा नहीं.पर उनकी गलत बातों के लिए सही ढंग से मना करना और उन्हें समझाना परेंट्स की ही जिम्मेदारी है.बच्चो को अपना दोस्त बनाइये उनके रंगीन सपनो को में सुन्दर रंग भरिये , उन्हें बचपन से ही रिश्तों की अहमियत समझाइए,उन्हें बताइए की हर चीज की एक उम्र है और सेक्स की भी एक उम्र है, उन्हें अपनापन दीजिए सिर्फ पैसे नहीं , ताकि उनकी मासूमियत बनी रहे और वो भी अपने बचपन में सच्चा बचपन महसूस कर सके.......

बच्चो के इस तरह के व्यवहार और उम्र से पहले बड़े होने के पीछे कई कारण हो सकते है आइये इनमे से कुछ कारणों पर एक नजर डालते है.

१ . बच्चो की जिज्ञासु प्रवत्ति :
बच्चे छोटी उम्र में हर बात के लिए जिज्ञासा रखते है ,क्यों और किस तरह ये दो सवाल उनके दिमाग में हमेशा घुमते रहते है.हर नई चीज को खुद करके देखना चाहते है. ये ऐसी उम्र होती है जब वो हर बात खुद करके देखना चाहते है और यही" मैं करके तो देखू" वाली प्रवत्ति उन्हें दृग्स,शराब और कम उम्र में सेक्स की तरफ धकेल देती है .आपके लिए ये चाहे उसकी बुराइयाँ हो सकती है पर उसके लिए ये एक साइंस के प्रयोग की तरह होता है . वो बस ये देखना चाहते है की परिणाम क्या होगा.

२. खुलकर बात न होना:
भारत में आज भी सेक्स जेसे विषय पर बच्चो से खुल कर बात नहीं की जाती.बच्चा अगर सवाल करता है तो उसे डांटकर चुप करा दिया जाता है .उसकी बालसुलभ जिज्ञासा को गन्दी बात कहकर दबा दिया जाता है .कई बार जब बच्चे अपने दोस्तों की दृग्स और शराब की आदत या असे ही किसी विसह्य पर बात करना चाहते है उन्हें गुस्सा दिखाया जाता है या सबके बीच में उनसे नाराजगी दिखाई जाती है .इस सबके कारण धीरे धीरे बच्चे हर बात छुपाने लगते है कभी डांट और मार के डर से और कभी सबके बीच में बेइज्जती किए जाने के डर से. और एक बार अगर गलत आदत के पंजे में आ गए तो फिर उसमे धसते ही चले जाते है.

३. पीयर प्रेशर :
आजकल बच्चे अपने आस पास के बच्चो और दोस्तों से जल्दी प्रभावित हो जाते है. कई बार उनके दोस्त उन्हें किसी काम को करने के लिए उकसाते हैं और न किए जाने पर चिढाते या परेशां करते है, ये भी एक बहुत बड़ा कारण है बच्चो के बिगड़ने का. जेसे कुछ बच्चे आपके बच्चे को क्लास बंक करने, सिगरते पीने या दृग्स लेने के लिए उकसाते हैं एसा न किया जाने पर उन्हें छोटा बच्चा कहकर चिढाते है और बच्चे उनकी बातों में आकर क्लास बंक करने लगते है या सिगरेटे या ड्रग्स लेने लगते है.उनके दोस्त कम उम्र में सेक्स करते है और एसा न करने पर उनका मजाल उड़ाते है इसलिए कई बच्चे कम उम्र में सेक्स करने लगते हैं. कई बार बच्चे दुसरे बच्चो की तरह दिखना चाहते है लड़कियां मेकअप करना चाहती है क्यूंकि उनकी फ्रेंड्स कर रही है ,लड़के डेशिंग दिखना चाहते है क्यूंकि उनके फ्रेंड्स वही सब कर रहे है . ये सब एक सीमा तक तो ठीक है पर जब बच्चे सीमा लाँघ जाए तो मुसीबत खड़ी हो जाती है. उनका पूरा ध्यान इन सब बातों में लग जाता है और वो पढाई लिखाई से दूर हो जाते हैं.

बच्चो में किए गए एक सर्वे में जब उनसे पुछा गया की वो शराब या ड्रग्स क्यों लेते है तो तीन कारण सामने आए
क्यूंकि उन्हें लगता है की अल्कोहल लेने से वो कूल दिखाई देंगे
वो देखना चाहते थे की इसे लेने से क्या होगा
उनके दोस्त लेते है इसलिए वो भी लेना चाहते हैं

४. माता पिता का अजीब व्यवहार:
८ वर्षीया परी की यही समस्या है उसकी माँ कभी कहती है "तुम बड़ी हो गई है तुम्हे अपने छोटे भाई का ध्यान रखना चाहिए , पर जब वो माँ या पापा से बात करती है उसे डांट पड़ती है की "तुम बच्ची हो चुप रहो".जब वो माँ से पूछती है की कभी उसे बड़ा और कभी छोटा क्यों कहा जाता है तब उसे कोई ठीक ठाक जवाब नहीं मिल पाता .ये कमोबेश हर बच्चे की समस्या रहती है वो पूरे बचपन यही सोचता है की वो बड़ा है या छोटा है ? पर उसे अपने सवालों के जवाब सही ढंग से नहीं मिल पाते. इसी सब से तंग आकर वो खुद को बड़ा साबित करना चाहता है , ,ये जताना चाहता है की वो बच्चा नहीं है समझदार है और खुद को साबित करने के चक्कर में वो गलत हरकतें करने लगता है या शराब और ड्रग्स लेने लगता है .

५. स्वतंत्रता की चाहत : I want my own room ,I want privacy ,Please don't interfere in my matter ". ये एसे जुमले हैं जो न्यू जनरेशन के बच्चो के मुह से कई बार सुनने को मिल जाएँगे.प्राईवेसी ने एक तरफ बच्चो को थोडा आत्मनिर्भर बनाया है वही दूसरी तरफ उन्हें बिगाड़ने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है .१४ वर्षीया राहुल दिन भर अपने कमरे में रहता है अन्दर खेलता है वही उसके दोस्त आते जाते है,जब एक दिन उसकी मम्मी रिया रूम में अचानक आ गई तो बोला "मम्मा प्लीज नॉक करके आया करो".रिया उसी दिन से घबरा गई की आखिर ये अकेले में असा क्या करता है ?जब छानबीन की तो तो उसके रूम से सिगरेट के टुकड़े ,और अश्लील अंग्रेजी मग्जींस मिली .स्वतंत्रता की चाह अच्छी बात है पर जब बच्चा बार बार इस तरह की बात करे ,आपसे कटा कटा रहने लगे तो समझ लीजिए कुछ गड़बड़ है. कई बार बच्चे जरुरत से ज्यादा छूट और प्राईवेसी का नाजायज फायदा उठाते है और जब तक आपको इसकी खबर लगती है वो गलत राहों पर चल पड़ते है.

६. बच्चो को समय न दे पाना : कुछ लोगो का मानना है की कामकाजी माता पिता बच्चो को समय नहीं दे पाते इसलिए बच्चे बिगड़ जाते है ,पर बात ये नहीं है बात ये है की माता पिता बच्चो को क्वालिटी टाइम नहीं दे पाते इसलिए बच्चे बिगड़ जाते है.कई बार माता पिता बच्चो के मन की बात नहीं समझ पाते बस उनकी जरूरते पूरी करके ,उनके हाथ में पैसे थमाकर ये समझ लेते है की वो बच्चे को पूरा प्यार दे रहे है उसकी हर जरूरत पूरी कर रहे हैं.और यही बात धीरे धीरे बच्चो को उनसे दूर कर देती है.बच्चे अपने दोस्तों में ही खो जाते है. एक मल्टीनेशनल में काम करने वाली सरला बताती हैं की "शुरू शुरू में जब मैं अपनी बेटी को घर पर छोड़कर जाती थी तो बड़ा दुःख होता था इसलिए छुट्टी के दिन अपना पूरा टाइम उसे देना चाहती हु पर अब धीरे धीरे लगने लगा की उसने जेसे मेरे बिना जीना सीख लिया अब में अगर उसके ज्यादा करीब जाने की कोशिश करती हु तो उसे पसंद नहीं आता वो अपनी दुनिया में मस्त है,वो मुझसे बातें छुपाने लगी है ,अब लगता है थोडा क्वालिटी टाइम दिया जाता तो ये नोबत नहीं आती ".बच्चो को अच्छा टाइम ,और पूरा ध्यान न दे पाना भी बच्चो को बिगाड़ सकता है.

७. शक्की माता पिता : 15 वर्षीया रोहित अपने मम्मी पापा के शक्की स्वाभाव से परेशान है जेसे ही मीडिया में बच्चो के बिगड़ने की कोई न्यूज़ आती है उसके कही आने जाने ,दोस्तों सब पर शक किया जाने लगता है वो कहता है " मम्मी पापा एसे बीहेव करते हैं जेसे मैं चोर हु मेरे कपडे चेक करते है हर बात पर शक करते हैं मैं परेशान हो गया हु ,वो मुझे समझना ही नहीं चाहते न ही ये समझना चाहते है की सब बच्चे एक जेसे नहीं होते अब तो असा लगता है जब तो किया ही जा रहा है तो बिगाड़ ही जाऊ".ये कई परिवारों का सच है किसी की बेटी भागी की अपनी बेटी पर पहरे बिठा देंगे,किसी का बेटा शराब पीता पकड़ा गया अपने बेटे को शक की निगाह से देखेंगे.बच्चो पर निगाह रखना अच्छी बात है पर बात बात पर शक करना ,उन्हें ताने देना उन्हें अकेलेपन का अहसास करता है और बिगड़ने में देर नहीं लगती.


परेंट्स क्या करें?
  1. बच्चो को रिश्तों की अहमियत समझाइए: बचपन से ही बच्चो   में अच्छे संस्कार डालिए.उन्हें रिश्तों का महत्व,शादी का महत्व हार बात समझाइए.और ये बात आप भी उनके सामने  फोलो करी अपने और अपने पार्टनर के रिश्ते को उनके सामने आदर्श दिष्ट बनाइये तभी उन्हें लगेगा की रिश्ते कितने महत्वपूर्ण है और वो कम उम्र में सेक्स जेसी हरकतों से दूर रहेंगे.
  2. अलग कमरा दीजिए अलग जिंदगी नहीं : अगर आपने अपने बच्चे को अलग कमरा दिया है तो शुरुआत से ही उसके कमरे में आते जाते रहिये वह बैठकर उससे बातें करिए ,पूरी कोशिश करिए की उस कमरे में उसकी जिंदगी सिमटकर न रह जाए.घर के सारे लोग कम से कम एक बार का खाना एकसाथ बैठकर खाइए इससे बच्चो में परिवार के लिए अपनापन पनपता है.घर के सारे लोग साथ बैठकर टीवी देखिए उसे अच्छे कार्यक्रम देखने के लिए प्रेरित करिए. धीरे धीरे वो आप लोगो  से अपनेपन की डोर से जुड़ जाएगा और ये डोर उसे आपसे अलग नहीं होने देगी.इन्टरनेट की सुविधा देने में कोई गलत बात नहीं पर ध्यान रखी की वो इन्टरनेट से कुछ गलत बातें तो नहीं सीख रहा.
  3. अच्छी बुक्स पढने की आदत डालिए: बच्चो में अच्छी बुक्स पढने की आदत डालिए क्यूंकि अच्छे बुक्स पढने पर उन्हें सही और गलत का अंतर समझ आएगा और वो गलत आदतों और चमक दमक से दूर रहेंगे.. अच्छा रोल मोडल चुनने में उनकी मदद करिए जरूरी नहीं की ये रोल मॉडल कोई बहुत सफल या पैसे वाला आदमी हो जरूरी ये है की वो अच्छा इंसान हो.उनका रोल मोडल अच्छा होगा तो वो बुरी आदतों से बचे रहेंगे... 
  4. पैसे से प्यार की पूर्ती:बच्चो की हर सही गलत मांग पूरी करना ठीक नहीं.आप उन्हें समय नहीं दे प् रहे इस हीन भावना मैं उन्हें पैसे देकर प्यार की पूर्ती मत करिए .जब भी बच्चा कोई मांग रखता है बिना सोचे समझे उसकी मांग पूरी मत करिए पहले समझिए की उसे उस चीज की कितनी जरूरत है अगर जरूत न हो तो उसे द्रढ़ता के साथ मन करिए और उसका सही कारन भी उसे बताइए . बचपने से ही उसे पैसे की अहमियत समझाइए ,उसे बताइए की पैसा मेहनत से आता है .जब आप उसे बचपन से ही उसकी गलत मांग को पूरा नहीं करेंगे तो वो खुद ही समझने लगेगा की क्या जरूरी है क्या नहीं.पर इसका मतलब ये नहीं की आप उसकी सही मांग भी पूरी न करे.
  5. बच्चो के दोस्त बनिए: बच्चा के दोस्त बनने की कोशिश करिए उन्हें हर बात शेयर करने की छूट दीजिए ,जब आपके बच्चे आपको दोस्त मानने लगेंगे तो वो अपनी हर बात हर परेशानी आपसे शेयर करेंगे . उनके सवालों के जवाब दीजिए .समय  आने पर उन्हें सेक्स  की जानकारी दीजिए.  बच्चो को समझाने के आपके अपने तरीके हो सकते है  पर उनकी जिज्ञासा को शांत करिए.हो सके तो काउंसलर की सलाह लीजिए की आप केसे अपने बच्चे से बात कर सकते है..बच्चे के दोस्तों और संगती पर नजर रखिये हमेशा ये मत कहिये की "बाहर जाकर खेलो" कोशिश करिए की उसके  दोस्त बीच बीच में आपके घर पर आए इससे आप भी उन्हें जान लेंगे और आपके बच्चे की संगती पर नजर रहेगी साथ ही साथ आप ये भी जान लेंगे की उनपर किसी तरह का गलत पीअर प्रेशर  तो नहीं.
              ६. बच्चो को  क्वालिटी टाइम दें : ये बिलकुल जरूरी नहीं है की आप पूरे समय अपने बच्चे के आस पास रहे पर अपना जितना भी समय आप उसे दे रहे है उसे क्वालिटी टाइम बनाने की कोशिश करिए ,उससे बातें करिए ,उसकी भावनाओं को उम्र के परिवर्तनों को समझने की कोशिश करिए.अगर वो कोई बात आपसे शेयर करना चाहता है तो उसकी बात सुनिए . अपने ब्बच्चे को इस बात का अहसास करवाइए की वो अकेला नहीं है आप हर समय उसके साथ है.



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6 comments:

लोकेन्द्र सिंह said...

कनुप्रिया जी ये एक सम्पूर्ण रिपोर्ट है... इस मेहनत के लिए आपको साधुवाद...
आप अपनी रिपोर्ट में सब कह चुकीं हैं कि समस्या कहाँ है... समस्या है कि माता पिता ठीक से बच्चो पर धयान नहीं दे रहे हैं, दरअसल काम धाम से फुर्सत मिलती है तो वो भी अपनी मौज मस्ती वाली जिंदगी में डूब जाते हैं और बच्चो को अकेला खतरनाक चीज़ों (कंप्यूटर, टीवी, विडियो गेम) के साथ छोड़ देते हैं. दादा-दादी को पहले ही बच्चों के माता पिता वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा चुके होते हैं... स्कूल में भी नैतिक शिक्षा के पाठ पढने बंद कर दिए गए हैं. अब मुसीबत यह है बच्चा अच्छी बात कहाँ से सीखे.

प्रवीण पाण्डेय said...

बच्चों के साथ संवाद बनाये रखना आवश्यक है..

Pallavi saxena said...

कनू मैं तुम्हारी बातों से सहमत हूँ इस समस्या का समाधान केवल बच्चों से संवाद बानए रखने के आलवा और कुछ भी नहीं है जरूरत के केवल उनको इतना भरोसा दिलाने की वह अपने मन की हर बात आपके साथ बाँट सकें, इसके अलावा मेरा ऐसा मानना है कि समस्या की मूल जड़ है टेक्नोलोजी आज कल इंटरनेट हर घर में बहुत ही आसानी से उपलब्ध है। जो जितना महत्वपूर्ण है उतना ही ख़तरनाक भी, हमारे और तुम्हारे जमाने मे किसी भी चीज़ की जानकारी के लिए केवल न्यूज़ पेपर या टीवी ही माध्यम थे उस पर भी हमें केवल एक फिक्स टाइम पर टीवी देखें की इजाज़त हुआ करती थी जानकारी के लिए और कोई माध्यम था ही नहीं मगर आज हज़ार चीज़ उपलब्ध है एक जगह से नहीं तो दूसरी जगह से बच्चों को वो सब जानकारीयां वक्त से पहले ही मिल जाती हैं। और परिणाम तुमने लिखे ही हैं कम से कम इस विषय में मेरा मानना तो यही है।

वाणी गीत said...

बच्चों के साथ बिताया गया अच्छा समय उन्हें शांत स्थिर बनाता है .
सार्थक आलेख !

दिगम्बर नासवा said...

समय के इस बदलाव को जो समझ जाता है वो आसानी से जी रहा है ... जो नहीं समझ पाता किच किच में रहता है ...
आपने तो सम्पूर्ण दस्तावेज़ तैयार कर दिया इस विषय पे ...

गुरप्रीत सिंह said...

बालमनोविज्ञान पर एक अच्छा आलेख है, धन्यवाद।

मैँ आपको आमंत्रित करता हूँ......इंतजार मेँ....
http://yuvaam.blogspot.com/p/katha.html?m=0