आसमान के इस कोने से लेकर उस छोर तक वो हर रोज उसके आने की उम्मीद लगाती है ...हर सुबह उठकर उम्मीद की डोर बांधती है दोनों छोर के बीच ....और सुखा देती है कुम्हलाए सपने ,बिसुरती यादें , अलसाए प्रेम गीत ,बस ये सोचकर की समय की सीलन कही इनकी चमक ना कम दे ... नहीं मानती वो की धरती गोल है क्यूंकि धरती जो गोल ही होती तो वो लौटकर उसके पास जरुर आता ...जरूर ....
भाता नहीं है अब किसी भी सत्य का दर्पण
द्वार से उकता गया है देहरी का मन
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
कुछ छोटी छोटी कविताएँ या पंक्तिया फेसबुक पेज से
1 .
एक प्रारंभ से
एक प्रारब्ध तक...
गहन इंतज़ार से
सुगम उपलब्ध तक ...
मोहि बन्धनों से
निर्मोही मन तक ...
मेरी प्रार्थना से
तेरे वंदन तक...
प्रेम ही तो है
जो हमें पिरोए हुए हैं....
2.
तुम्हारी खैर मांगना मेरा हक है जाना
खुदा से तुमको मांगना मेरा हक कैसे हो ?
मैं तुम्हे चाहता हू इस पर शक हो सकता है
तुम्हारी चाहतों पर भला शक कैसे हो ?
3.
मेरे साथ राहों पर चलना होगा मुहाल
अपने लिए कोई और रहगुज़र देखें
बड़ा मुश्किल है साया हमारी पलकों का
उनसे कह दो कही और अपना घर देखें
4.
मंडी है व्यापार की ,भूख के सोदे का शहर है
यहाँ सब बिकता है बस दर्द नहीं बिकता
तुम रसूखदार मेरा वक़्त खरीद ही लोगे
अहसास की कीमत लगाए ऐसा कोई नहीं दिखता
5.
बेकरारी करती है घायल उसे
कर दिया है प्रेम ने पागल उसे भाता नहीं है अब किसी भी सत्य का दर्पण
द्वार से उकता गया है देहरी का मन
8 comments:
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
अच्छी प्रस्तुति |
आभार ||
बहुत सुन्दर हैं सभी कवितायें....
शीर्षक तो बहुत ही प्यारा लगा....
द्वार से उकता गया है देहरी का मन..
वाह !!
अनु
बहुत बढ़िया आपकी सभी प्रस्तुति अच्छी लगी,,,,
RECENT POST LINK...: खता,,,
बेहतरीन
द्धार से उकता गया है देहरी का मन, कविताएं असरकारक है। अच्छा लिखती हैं आप। इरादे बुलंद हैं तय है मंिजल कदम चूमेगी। शुभकामनाएं।
रचनाएँ अच्छी लगी।
आप हमारे पर BLOG आमंत्रित हो-www.yuvaam.blogspot.com
bahut achha man ko chho gaya..
तुम्हारी खैर मांगना मेरा हक है जाना
खुदा से तुमको मांगना मेरा हक कैसे हो ?
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