प्रेम के प्रतिमान बदल गए हैं और इनका बदल जाना निश्चित भी था जब रिश्तों के लिए हमारी विचारधारा बदल गई ,जिंदगी में रिश्तों के मायने बदल गए ,घर बाहर इंसानों की भूमिकाएं बदल गई तो प्रेम का बदल जाना कोई नई बात नहीं ...लोग कहते हैं प्रेम को पढने वाले कम हो गए पर मुझे लगता है प्रेम को करने वाले कम हो गए हैं जबकि पढने वालो की संख्या तो बढ़ रही है क्यूंकि प्रेम करना अब उतना आसान नहीं रहा (वैसे पहले भी आसान नहीं था) शायद इसीलिए लोग प्रेम पढ़कर जीवन में प्रेम की पूर्ती कर लेते हैं अब सामाजिक दीवारें तो हैं ही साथ ही साथ प्रेक्टिकल विचाधारा ने भी प्रेम की राह में रोड़े अटकाना प्रारंभ कर दिया है .
बदलती जीवनशेली ने प्रेम को सबसे बड़ा झटका दिया है सामान्य तौर पर प्रेम करने की उम्र १६ से २२,२३ वर्ष की मानी जा सकती है पर आजकल ये समय लड़का और लड़की दोनों के करियर बनाने का होता है ,प्रेम के अंकुर नहीं फूटते ऐसा नहीं है पर शायद प्रेक्टिकल सोच की खाद प्रेम की खाद से ज्यादा असर करती है और वो अंकुर उतनी तेजी से नहीं बढ़ते .....
वैसे ये सच है प्रेम की कोई उम्र नहीं होती पर परिपक्वता की ,समझदारी के आने की और बचपने के जाने की एक उम्र होती है ...ये बात जिन पालकों ने समझ ली उन लोगो ने अपने बच्चो के बचपने को एक एसी राह पर पर डाल दिया जहाँ उन्हें अपना सुनहरा भविष्य दिखाई देता है प्रियतम के सपनो की जगह उजले भविष्य और कुछ कर दिखाने के जज्बे के सपने आँखों में घर कर जाते है...एक तरीके से देखा जाए तो ये सही है क्यूंकि बचकाना प्रेम और आवेश में उठाया गया कदम कई बार भारी पड़ता है जबकि समझदारी आने के बाद किया गया प्रेम और लिए गए निर्णय बच्चो को भटकने से बचा लेते हैं ....
ये एक तरह का संधिकाल है जब कॉलेज जाते घरों से बाहर निकलते बच्चे प्रेम में तो पड़ते हैं पर थोडा प्रेक्टिकल होकर सोचते भी हैं लड़के २७,२८ की उम्र तक पढाई और करिएर में व्यस्त रहते हैं और भारत के बहुत बड़े हिस्से में आज भी लड़कियों के लिए शादी की सही उम्र २४, वर्ष है एसी स्तिथि में कई बार लड़के ठीक ढंग से पैरों पर खड़े हो जाने तक शादी की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते और लड़कियां बहुत लम्बे समय तक इंतज़ार ना कर सकने की मजबूरी के कारण कही और शादी कर लेती हैं . अलग अलग लोगो की नज़र में इसके अलग अलग मायने हो सकते हैं ,कुछ लोग इसे बेवफाई, धोखा जेसे नाम भी देते है पर ये आज का सच हैं...आज की आधुनिक पीढ़ी का सच...और ऐसा सच जिसमे गलत कोई नहीं दोनों अपनी अपनी जगह सही हैं
आजकल कई एसे जोड़े मिल जाएँगे जो चाहकर भी शादी के बंधन में नहीं बंध सकते यहाँ तक की समाज के विरोध की तो नोबत ही नहीं आती क्यूंकि युवा स्वयं ही परिस्थितियों को देखते हुए पीछे हट जाते हैं...या कहा जाए तो प्रक्टिकल सोच के चलते प्रेम की पीगें नहीं भर पाते....ऐसा ही कोई निर्णय हर तीसरा युवा लेता दिखाई देता है दोस्ती होती है प्यार होता है और फिर शादी ना हो पाने की अलग अलग परिस्थतियों के चलते प्रेमी "गुड फ्रेंड "की श्रेणी में आ जाते हैं इनमे से कई तो वर्षो तक अच्छी दोस्ती निभाते भी हैं और एक दुसरे को किसी तरह का दोष देते भी नहीं दिखाई देते ...
कहने को कितना ही कहा जाए आज की पीढ़ी दिशा विहीन है पर सच तो ये हैं की जितनी समझदार और मानसिक रूप से सुद्रढ़ आज की पीढ़ी है वो लोगो की सोच से भी परे है ...जितनी संवेदनाएं, प्रेम और समझदारी आज की पीढ़ी के इन प्रेक्टिकल प्रेमियों में हैं उतनी कम ही लोगो में देखने मिलेगी...इसमें कोई दोमत नहीं की घर के माहोल और माता पिता के संस्कारों ने उन्हें एसा बनाया है और ये माता पिता उस पीढ़ी के थे जो अपनी चाहतो को पूरा नहीं कर पाए तो उनने कुछ समझदारी भरे सपने अपने बच्चो की आँखों में दिए....और उन्हें सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता भी दी .
जब भी इस तरह का कोई मुद्दा उठता है तो मुझे लगता है ये परिवर्तन का दौर है प्रेम विवाह आज नहीं तो कल सभी घरों में होंगे पर मुख्य मुद्दा ये है की किस तरह से इन प्रेम विवाहों को भटकाव के दौर की जगह समझदारी भरे प्रेम विवाहों में बदला जाए और गलत ढंग और गलत रीति से परिवर्तन को अपनाने की जगह समझदारी भरे निर्णय लेने वाली पीढ़ी तैयार की जाए जो जिंदगी को जुए की तरह ना खेले...इन पंक्तियों को पढ़कर कई लोगो को शायद ये लगे की में प्रेम के विरोध में बात कर रही हू ,या प्रेम तो दिल से किया जाता है दिमाग का इसमें क्या काम ? सहमत हू इस बात से पर में ये भी मानती हू की प्रेम दिल से किया जाता है पर जिंदगी दिल से नहीं जी जाती ...कोई प्रेम तभी सफल हो सकता है जब उसके पीछे प्रेम भरी दुआएं हो और हाँ प्रेम करने वालों को आटे दाल का सही भाव पता हो...
आज की पीढ़ी में एसे लोगो की संख्या बढ़ रही है जो प्रेम में गैर जिम्मेदाराना हरकत करने के स्थान पर समझदारी भरे प्रयास करते हैं और निर्णय भी उसी ढंग से लेते है ये संख्या कम है पर ये युवा आने वाली युवापीढ़ी के लिए आदर्श का काम करते हैं या भविष्य में कर सकते हैं....और जिस दिन प्रेम में जिम्मेदारी की ये भावना भी समाहित हो गई प्रेम का एक अलग ही आयाम दिखाई देगा....
(पूरा लेख पढने वालो को प्रेक्टिकल विचारधारा वाला लग सकता है पर ये बदलती विचारधारा बदलते युवाओं का प्रतिनिधि लेख है पर ये सच है प्रेम का अर्थ सिर्फ पाना नहीं ....) इस पोस्ट को भास्कर भूमि एवं मीडिया दरबार पर भी देखा जा सकता है
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
6 comments:
एक बार फिर आपके शब्द कौशल ने मन्त्र मुग्ध कर दिया...नमन है आपकी लेखनी को...अद्भुत
संसार परिवर्तनशील है!
आपका अवलोकन सामयिक है..
बहुत बढ़िया.....
पूर्ण सहमति आपके विचारों से...
अनु
saamyik alekh..
मेरा मानना भी है की आज समझदारी बढ़ गई इस इस मामले में ... आत्मनिर्भरता का विचार प्रबल हुवा है युवा में ... और शायद इसी में भलाई भी है ...
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