वो पात्र जो शायद कभी रहे या सिर्फ गए थे गढ़े
प्रेम सूक्तियां जिनको अपने जीवन से प्यारी होती थी
वो लड़के जिनका जीवन देश की सेवा में जाता था
वो लड़के जिनका नाम बड़े देशभक्तों में आता था
वो लड़के जो रस्ते चलतों के अपने से हो जाते थे
वो लड़के जो यारों की यारी में प्राणों को खो जाते थे
वो लड़के जो बहनों की राखी का रास्ता तकते थे
सारे गाँव की बेटिओं को अपनी इज्जत सा रखते थे
वो लड़की जो " मेरी कुडमाई हुई" कहने में शर्माती थी
वो लड़की जो चुन्नी का पल्लू हाथों में ले मुस्काती थी
वो लड़की जो जरुरत पड़ने पर वीरांगना हो जाती थी
बम तलवार चलाती थी क्रांति गीतों को गाती थी
वो लड़की जिसके संस्कार में भक्ति भी थी शक्ति भी
वो लड़की जिसके व्यवहार में तर्क भी थे युक्ति भी
सब बिखरा बिखरा सा अब है बस वाक् बाण ही चलते हैं
वो सारे पात्र दिन रात इन आँखों में उतरते ढलते हैं....
वो ढलता सूरज ना फिर लौटा ,वो शाम कभी ना फिर आई
कुछ चले गए ,कुछ आ गए बनकर जाने वालो की परछाई...
वो जो कल थे वो आज नहीं बस उनकी धुंधली यादें है
कुछ पन्ने रंग बिरंगे है ,कुछ कहानियां सीधी सादी है
कुछ पात्र हमारे जीवन का आधार बनाकर चले गए
कुछ अंतर्मन में गहरे उतरे स्वप्न संसार बनाकर चले गए ......
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
13 comments:
वो सब कहाँ चले गए वक़्त के साथ साथ सब बदल रहा है आदर्श ,मर्यादाएं ,भावनाएं कल की बात हो गई गईं ....बहुत सुन्दर बहुत कुछ कहती रचना
कहाँ गए वे लोग...??? सार्थक प्रस्तुति...बहुत-बहुत आभार
बहुत शानदार प्रस्तुति। बधाई।
बदलते समय को बाखूबी उतारा है इस रचना में ... वो सब कुछ जो गुजरा है आँखों के सामने आ गया ...
पता नहीं वे सब कहाँ चले गये, बहुत अच्छा ।
badhiya
इन्हीं पात्रों में हम स्वयं को ढूढ़ने का आनन्द उठाते हैं।
बहुत सुन्दर...
अच्छी रचना..
अनु
सुन्दर अभिव्यक्ति....
सादर.
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बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
वक्त के साथ अक्सर बहुत कुछ बदल जाता है शायद इसलिए की परिवर्तन की प्रकृति का नियम है।
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