प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया शायद उसका देना बनता था हमारा लेना बनता था उसने दिल खोल कर दिया और हमने खुले दिल से ले लिया ,पानी को भी हमने प्रकृति की वेसी ही देन समझा है और पानी है भी वैसी ही देन जिसका प्रकृति ने पलटकर कभी पैसा नहीं माँगा हमसे और प्रकृति आज भी नहीं मांग रही पर हम ख़ुद उसका पैसा देना चाहते है या ना चाहते हुए भी दे रहे हैं ....
न चाहते हुए इसलिए कहा क्यूंकि संविधान के मूलभूत सुविधाओं में ये उल्लेख किया गया है की देश के नागरिकों को स्वच्छ जल मिलना चाहिए. पर हम इक एसे देश के वासी है जहा के नेता महंगाई बढ़ने को जायज ठहराते हुए कहते हैं की जब लोग आइसक्रीम और पानी की बोतलों पर पैसा खर्च कर सकते हैं तो थोड़ी सी महंगाई बढ़ने पर इतनी आपति क्यों ?
इक बार सुनने पर शायद ये बात अजीब ना लगे पर जब गहराई से सोचेंगे तो पाएँगे की ये पानी की बोतलों का अम्बार हमारे आस पास लगा ही क्यों ? इसलिए की हमें प्लास्टिक की बोतलों में कई दिनों से पैक किया हुआ पानी स्वाद में बेहतर लगता है ? या इसलिए की हम बोतल का पानी पीकर बोतल के जिन्न जेसे कुछ हो जाना चाहते है ? दोनों ही तर्क हास्यास्पद है पर ये सत्य है की हम सब मजबूर है हम वो पानी पीते है क्यूंकि हमें लगता है मुंसीपाल्टी के नलों से आने वाले पानी से बोतलों का पानी साफ़ है.
ये बात बहुत हद तक सच भी है घरों में आने वाला पानी सच में गन्दा होता है बहुत गन्दा, इतना गन्दा की उसे पीना तो बहुत दूर की बात है दो बार छान लेने के बाद भी नहाने के बाद एसा लगता है जेसे नहाकर नहीं निकले जेसे बालों में कहीं मिटटी सी है ये मुंबई जैसे महानगर का सच है गाँव और छोटे शहरों का सच कही ,कही बेहतर और कहीं बहुत भयानक हो सकता है .पीने के पानी का फिल्टर हर रोज पानी में आ रही गन्दगी की कहानी कहकर मुह चिढाता है जेसे अभी बोलेगा में भी अब इस गंदे पानी का साथी हो गया हू तुम लोग जल्दी बीमार पड़ोगे .....
कई लोग है जो आजकल घर में यूज़ के लिए भी बोतलबंद पानी लाते हैं पर रिसर्च कहते हैं की बोतलों में बंद ये जीवन हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर रहा है कई बार ये इतना पुराना होता है की स्वास्थ पर हानिकारक प्रभाव डालता है साथ ही साथ ये हमारे नल के पानी से इतना महंगा है की कमी का इक बड़ा हिस्सा ये बोतलें गटक जाती है .मतलब अप्रत्क्ष रूप से हम पानी को पैसा पिला रहे हैं वो भी अपने स्वास्थ के रिस्क पर.
४ से ५ रु प्रति बोत्तल की लागत में तैयार होने वाला सो काल्ड मिनिरल वाटर हम १५ से २० रु देकर पी रहे हैं और ये बहुत बड़े प्रोफिट वाला धंधा भारत में तेजी से फेल रहा है क्यूंकि लागत कम है और मुनाफा ज्यादा,सरकार चुप है क्यूंकि उन्हें रेवेनयु मिलता है लोग चुप है क्योंकि किसी को स्वास्थ की चिंता है किसी को पैसे की ज्यादा चिंता नहीं.
चिंता ये नहीं है की हम बोतलबंद पानी पी रहे हैं ये चिंता होनी भी नहीं चाहिए क्यूंकि हम अपने शौक से ये बोतलबंद पानी नहीं पी रहे हम मजबूर हैं. सोचिये अगर हमें घरों में ,बाज़ार में,पर्यटन स्थलों पर , सभी जगह साफ़ और स्वच्छ जल उपलब्ध होता तो क्या सच में इतने लोग बोतलबंद पानी पीते जो आज पी रहे हैं ? तब भी लोग होते जो ये पानी पीते पर तब संख्या इतनी बड़ी नहीं होती और जो संख्या होती वो भी सिर्फ दिखावे वाली होती या बड़ी मजबूरी वाली. पर आम जनता आज दिखावे के लिए ये पानी नहीं पी रही मजबूरी में पी रही है.
देश में इक बहुत बड़ा वर्ग है जो मिनरल वाटर के बारे में सोच भी नहीं सकता सोचने का सवाल ही नहीं उठता क्यूंकि दो जून की रोटी जुगाड़ने में उनका पूरा दिन निकल जाता है और पानी के लिए लगी लम्बी लाइनों में खड़े खड़े उनके घर के सदस्यों की आधी जिंदगी कट जाती है और सच मानिये पानी के लिए तरसने वाला ये वर्ग बहुत बड़ा है....कई लोग कह सकते है हर इंसान एसी लाइनों में नहीं खड़ा होता सच है नहीं होता पर किसी ना किसी तरह हम सभी पानी की समस्या से ग्रस्त तो है जाने अनजाने ही सही हम सभी या तो गन्दा पानी पी रहे हैं या बोतलों में बंद इस जल जिन्न को अपने गले से नीचे उतार रहे हैं....
बात ये नहीं की हम किस किस चीज़ के लिए लड़ सकते हैं पर क्या हमें, इस देश के सभी नागरिकों को साफ़ जल पीने का अधिकार भी नहीं है ? देश में हर साल बहुत बड़ा बजट पानी के लिए निर्धारित किया जाता है पर ये सारा पैसा बह बहकर आज़ादी के इतने सालों बाद भी हमें पीने का साफ़ पानी नहीं दे पाया ऊपर से बोतलबंद पानी के इस चस्के या मजबूरी ने धरती के इक बड़े हिस्से को कचरे से पाट दिया है यानि की दोहरी मार झेल रहे हैं हम सब गन्दा पानी पीते हैं और प्रदूषित भूमि के कारण भूमि प्रदुषण के दुष्प्रभावों को भी झेल रहे हैं ......
हम लोग कब तक सब चलता है का राग गाकर या हम क्या कर सकते हैं की ढपली बजाकर मूलभूत सुविधाओं और अपने मौलिक अधिकारों के लिए भी आवाज़ नहीं उठाएँगे ? क्यूंकि अगर हम इस देश के नागरिक होकर हर इक बात को यूँही नज़रंदाज़ करते रहेंगे तो फिर सरकार को ,दुसरे लोगो को दोष देने का क्या फायदा ... ये बोतलबंद जिन्न हम सबका पैसा, स्वास्थ्य और मौलिक अधिकार सब लील रहा है .....
9 comments:
सच्ची बात ....
और इससे बढकर साफगोई (खुद की स्वीकारोक्ति)के लिए बधाई आपको....
प्राकृतिक संसाधन में व्यवसाय ढूढ़ा जा रहा है, पारम्परिक स्रोतों को नष्ट किया जा रहा है।
बढ़िया आलेख. आज से कई सालों पहले हम लोग केवल विदेशियों को ही बोतल वाली पानी पीते देखते थे. कुछ समय के बाद ही अभिजात्य वर्ग में हाथ में बोतल लेकर चलना एक फेशन बन गया. अब उस जिन्न ने एक बहुत बड़े तबके को कैद कर लिया है. अधिकतर घरों में एक्वागार्ड या ऐसी ही कोई विधि अपनाई जा रही है जिससे नालों के पानी को पीने योग्य बनाया जा सके. परन्तु समाज के निम्न माध्यम श्रेणी और उसके नीचे के लोगों के लिए ऐसे संयंत्र खरीद पाना दुष्कर है. जल सत्याग्रह की आवश्यकता होगी और सरकार को वाध्य किया जाना चाहिए कि संविधान में निहित आम जन के अधिकारों (स्वच्छ पानी) का हनन न हो. एक ब्लोग्गर मित्र जो अभी अभी जापान गयी हुई थीं, ने लिखा है कि वहां साधारण नालों से मिलने वाला पानी एकदम शुद्ध होता है. बोतल वाला पानी अत्यधिक महंगा होने के कारण उन्होंने बाथरूम के नल से ही पानी भर रखा.
प्रवीण जी की बात से सहमत हूँ।
आज की सच्चाई से रूबरू कराती पोस्ट
बोतलबंद पानी के बारे में मैं आपकी राय से इत्तेफाक नहीं रखता हूँ.... जिस जगह ताज़ा पानी स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है, वहां बोतलबंद पानी पीना ज्यादा अच्छा है.
बोतल बंद पानी को केवल इस आधार पर बुरा नहीं कहा जा सकता है कि वह महंगा है.
जिस भी प्रोडक्ट के साथ जितना अधिक खर्च जुड़ा होता है, वह उतना ही महंगा होता है.
साधारण आदमी के बस की बात नही,कि रोज १५-२०
रूपये की बोतल खरीद कर उपयोग,मजबूरी हो तो अलग बात है,,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
अनुप्रिया जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'परवाज' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 24 जुलाई को 'बूंदों के साथ उतरता बोतलबंद जिन' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
thnx.
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