ढलती हुई हर रात का बस इतना फ़साना है
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी (thanks to Google for picture)
सारी दीवारें तोड़कर उसे कल फिर चली आना है..
रोकेगा कोई कितना चाहत की चांदनी को
इक रात अमावस है फिर चाँद का आना है
पाक मोहब्बत की तस्वीर निराली है
इक जज़्बात है दिल में, सामने सारा ज़माना है
तुमसे लगाकर दिल बस यही दर्द है मुसाफिर
ना तेरा है कोई ठोर ना मेरा ही ठिकाना है
बस्ती जलाके दिल की वो खुश है मीनारों में
सितमगर क्या जाने उसे भी खाक हो जाना है
कल जिसने दिया धोखा वो आज सामने है
उसे माफ़ कर दिया है दिल कितना दीवाना है
वो जिसके तसव्वुर में वजूद खो दिया था
जब रूबरू हुआ तो लगता है बेगाना है
उसका नहीं कुसूर ,ये जुर्म में हमारा
उसने अपना बनाना चाहा हमें उसका हो जाना है आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी (thanks to Google for picture)
11 comments:
बहुत खुबसूरत प्रस्तुति ।
बधाई कनु जी ।।
Fantastic!
Regards
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,सुंदर शीर्षक ,,,,
कनु जी,,,,,बेहतरीन रचना के लिए,,बधाई
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
बहुत ही अच्छी कविता, कई बार पढ़ी..
thanks sir.
shirshak pasand krne k lie thnx
thnx
एक उम्दा प्रस्तुतीकरण
अमावस के बाद चाँद को आना ही होगा... बहुत खूबसूरत रचना
khoob surat rachna
bahut badhiya kanu....best wishes...
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