हम मोहब्बत में तुम्हे क्या दिल की बात बतलाए
जो खुद भटके हैं तुम्हे राह केसे दिखलाए.
बहुत दिनों बात एक कविता या इसे जिस श्रेणी में पढने वाले रखना चाहे लिखी है ...
तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो
हमने तो हर शय में तमन्ना की तुम्हे चाहने की
तेरे वास्ते देखे हर ख्वाब को हकीक़त बनाने की
तुम भी खेल -ए -जिंदगी की हर चाल में जायज़ हो
रश्क बस एक है की इश्क की चाल में ज़रा नाजायज़ हो
पर मेरी दुनिया में बस डूब के चाहने की बात होती है
प्यार है तो सब है इसी में शय और मात होती है
तुमने जो याद न रखा उसे भूले तो नहीं हो
तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो
आओ सूरज की नहीं धरती बात करते हैं
हो चाहे चाँद रात बस हम तुमको याद करते हैं
तुम समुन्दर के पार दूर कही भटके हो
प्यार से दूर कही जिंदगी में अटके हो
इश्क का फर्क नहीं दर्द ए- दिल की उलझन है
मेरे रहते तेरी, तेरे रहते मेरी भटकी हुई सी धड़कन है
जो लड़कपन में देखे वो ख्वाब अधूरे तो नहीं हो
तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो .....
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
13 comments:
भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर भावअभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बेहतरीन
सादर
क्या भटकन है मोहब्ब्त की....
एहसासों की रौशनी राह दिखा ही देगी......
बहुत सुंदर कनु जी...
अनु
सुंदरानुभूति
क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 28-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-893 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
कुछ भटकन मन की ....
कुछ भटकन जीवन की ...
सुंदर ...बहुत सुंदर भाव प्रबल रचना .....!!
शुभकामनायें.
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
khoobsurat kavita...
Bhaav Purn rachna...............
सच है इस प्यार के खेल में ही सब कुछ है ... लाजवाब रचना है ..
तुम मुझे जितने मयस्सर हो पूरे तो नहीं हो....
बहुत खूब... सुन्दर रचना...
हार्दिक बधाईयाँ
कुछ अलग सा....
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