मेरी इक अजीब सी आदत है इक माला साथ लिए चलती हू (शब्दों की ) और जगह जगह उसके
मोती बिखेर देती हू फिर उसी रस्ते पर पलटकर जाती हू और उन मोतियों को
इकठ्ठा करके इक जगह रख देती हू .अजीब है न पर अच्छा लगता है इन मोतियों को बिखेर बिखेर कर समेत लेना. लगता है जेसे कुछ सहेज लिया हो अपने पास हमेशा के लिए .... अब ये मोती पक्के है या नहीं ,असली है या
नकली है ये तो सारे पढने वाले ज्यादा बेहतर जानते है पर एसे ही कुछ जगह
बिखरे शब्द इकट्ठे करके आप सबकी नज़र कर रही हूँ....
१.
सारी दुनिया को मोह्हबत सिखाने वाले
क्यों अपने ही प्यार से नज़रें छुपा के चलता है
ना भूल महफ़िलों में प्यार पर गाने वाले
कोई घर पर भी तेरा इंतज़ार करता है
२
बिन बुलाये मेरे साथ ना आओ देखो
मेरी मुस्कान अपनी मंजिल ना बनाओ देखो
बड़ी मुश्किल से संभाला है अपने दिल को
जो भूला है उसे याद ना दिलाओ देखो....
३
साहिल किनारे खड़े रहकर ना लहरों को गिनो
कश्ती को समुन्दर में उतारो तो मज़ा आ जाए
नाम, रुतबा ये अलग किस्म की चीज़ें है
ज़रा इज्जत भी कमा लो तो मज़ा आ जाए
४.
याद के गाँव में मुस्कुराते हो
आज रह रह कर तुम फिर याद आते हो ..........
विछोह की तपती गर्मी में
पावस सी ठंडक लाते हो
आज रह रह कर तुम फिर याद आते हो ..........
तेरा जाना मेरा रहना
मेरा जाना तेरा रहना
सब बात पुरानी लगती है
तुम नासूर नहीं हो खुशबू हो
मीठा अहसास दिलाते हो
आज रह रह कर तुम फिर याद आते हो ..........
बस आज इतना ही फिर मिलेंगे......
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
14 comments:
अनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
हर मोती एकदम सच्चा..............
चमकदार..........
बहुत सुंदर कनु जी.
अनु
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
sundar
तेरा जाना मेरा रहना ,मेरा जाना तेरा रहना ,
सब बात पुरानी लगती है,
तुम नासूर नहीं हो खुशबू हो ,मीठा अहसास दिलाते हो,
बस आज रह रह कर तुम फिर याद आते हो
अजीब सा अहसास ,अजीब सी सिहरन ,फिर भी अच्छी अभिव्यक्ति ,
अनुपम संयोजन बहुत बढ़िया प्रस्तुति,बेहतरीन रचना,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
आज रह-रह कर तुम फिर याद आते हो...
बहुत बढ़िया... बिलकुल सच्चे मोती जैसे सच्चे भाव...
स्मृतियों का संसार सदा ही अचम्भित करता है।
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
सच है असल मजे के लिए कश्ती समुन्दर में उतारी जाती है ... लाजवाब लिखा है आपने ...
Yadon men khoi ,sundar bhav,pyar ke meethe pal sda hi yad rhate haen.mere blog ki nai post par aapka svagat hae.
सुंदर मुक्तक
बहुत सुंदर! यूं ही दो पंक्तियाँ याद आ गयीं:
तू मेरे प्यार के सूरज की तपिश से न डर
मैं तेरे साथ हूँ जानम तेरा बादल बन कर||
Waah!!! So beautiful!! :)
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