कई दिनों कुछ अच्छा पढ़ा नहीं और अच्छा लिखा भी नहीं कुछ टुकड़े हैं जो इकट्ठे करके पोस्ट कर रही हु.....
3)शिव तो मन में भी बसे है पर शिवाला देख लू
कितना गहरा असर करेगा विष का प्याला देख लू
जा रहा हु छोड़कर उम्र भर के लिए तुझे
तू ज़रा सा सामने आ मैं नज़ारा देख लू
4)मेरे तेरे ख्वाबों की तस्वीर बनी जाती हु
तुझे लगता है मैं ज़ंजीर बनी जाती हु
ऐतबार रख मुझे अपनी कमजोरी न समझ
मै तेरे तरकश का कोई तीर बनी जाती हु
5) कहाँ ले जाएँगे जज़्बात मुझे खुद पता नहीं
बैचैनी है क्यों दिन रात मुझे खुद पता नहीं
लोग कहते हैं मैं तेरे प्यार में पागल हु
क्या सच में है येही बात ? मुझे खुद पता नहीं
11 comments:
चौथा वाला बहुत अच्छा है।
सादर
सुन्दर....
सभी अच्छे....
कभी बिखरे ख्यालों को समेटना भी अच्छा है...
:-)
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सभी रचनाओं के भाव सुंदर लगे ,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...
यही तो विडम्बना है कि अक्सर हमें हमारे ख्यालों के बारे में खुद ही कोई जानकारी नहीं होती और हम बस जिये जाते है एक अनदेखे से ,अंजाने से ख्याल के जरिये...मुझे अंतिम पंक्तियाँ सबसे जायदा पसंद आयी।
अच्छा,
अच्छा अच्छा भी नहीं अच्छा लगे है |
यह तो मीठे अंगूर का गुच्छा लगे है ||
सभी रचनाये अच्छी है .बिखरों को समेत कर,संकलित करना भी एक कला है.
bahut sundar prastuti.ye vanshvad nahin hain kya
बस यही सब पता करने के लिये जीवन जी रहे हैं हम सब..
बहुत सुन्दर ख्यालात्।
बहुत खूबसूरत अहसास
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