आस का दीपक जलाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ
कोई पलकें ना बिछाए
फूल चाहे ना खिले
बहार का मौसम चाहे
ना मिले आकर गले
मैं सुप्त खुशियों को जगाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ..
ना सुने व्यथा कोई
ना कोई पथ-कंटक चुने
आग सी तपती धरा पर
साथ कोई ना चले
ख़ुद ही स्वयं का संग निभाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ...
कोई चाहे सुनकर मुझे
अनसुना सा कर चले
मेरे शब्दों में अब चाहे
प्रेम सागर ना ढले
फिर भी कोई गीत गाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ ....
पंथ का भटका मुसाफिर
लौट मुझ तक आए ना
पर मुसाफिर बिन साथी के
उम्र भर रह जाए ना
मैं हर मुसाफिर का ठिकाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ .....
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ
कोई पलकें ना बिछाए
फूल चाहे ना खिले
बहार का मौसम चाहे
ना मिले आकर गले
मैं सुप्त खुशियों को जगाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ..
ना सुने व्यथा कोई
ना कोई पथ-कंटक चुने
आग सी तपती धरा पर
साथ कोई ना चले
ख़ुद ही स्वयं का संग निभाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ...
कोई चाहे सुनकर मुझे
अनसुना सा कर चले
मेरे शब्दों में अब चाहे
प्रेम सागर ना ढले
फिर भी कोई गीत गाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ ....
पंथ का भटका मुसाफिर
लौट मुझ तक आए ना
पर मुसाफिर बिन साथी के
उम्र भर रह जाए ना
मैं हर मुसाफिर का ठिकाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ .....
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
22 comments:
Behtareen Prastuti....Bahut sundar bhav..."Supt khushiyon ko jagana chahti hoon, muskurana chahti hoon..."
Sadaiv Muskurate rahein...
www.poeticprakash.com
Nice poem...Touch to deep heart....
सुप्त खुशियों को जगाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ.
बहुत सुन्दर रचना....
सादर बधाई...
आस का दीपक यूँ ही जलता रहे।
सच कहूँ तो बहुत दिन बाद एक बहुत अच्छी कविता पढ़ने को वाली। एक ऐसी कविता जिसे बार बार पढ़ने को दिल चाहे।
सादर
सुन्दर!
beautiful...:)
welcome to my blog
बहुत सुंदर प्रस्तुति...
बहोत अच्छी रचना
नया हिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
भले ही आप की ये कविता अतुकांत है, शिल्पगत नहीं है - परंतु आप के अंदर की लयात्मकता [रिदम] साफ रूप से इस में दिख रही है। ऋता जी की तरह आप भी शिल्पगत रचनाओं के काफी करीब मालूम होती हैं।
में नया गीत गाना चाहती हूँ निरंतर गुनगुना चाहती हूँ ,सार्थक सोच
"न सुने व्यथा कोई
ना कोई पथ-कंटक चुने
आग सी तपती धरा पर
साथ कोई न चले
खुद ही स्वयं का संग निभाना चाहती हूँ
आज फिर से मुस्कुराना चाहती हूँ.."
नए साल का संकल्प.....
आज फिर मुस्कुराना चाहती हूँ , बेहतर यही है ...
उम्मीदों के दिए यूँ ही जगमगाते रहें ..
शुभकामनायें !
very nice keep it up.
शब्द जब सीधे दिल से निकलते हैं तो इतनी सरलता लिए होते हैं कि उनका प्रभाव सीधे दिल तक ही पहुंचता है । बहुत सुंदर , नियमित रखिए । आने वाले वर्ष के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको
आज फिर मुस्कुराना चाहती हूँ
..
बहुत बढ़िया सकारात्मक सोच से भरी रचना...
सुन्दर गीत..
कनु जी आप बहुत ही भावुक हैं और यही भावुकता आपके काम आ सकती है साहित्य सृजन में ,आज की आपकी पोस्ट लड़कियों के बारें में बहुत ही अच्छी लगी ......आपका ब्लॉग तो सुंदर है ही ..बधाई |
आस ... से ही जीवन है ...निरंतर अग्रसर है ..
सुन्दर कविता
कलमदान.ब्लागस्पाट.com
सरल सहज अभिव्यक्ति.
meaningful words...written beautifully :) awesome Kanu!
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....
Could you write another post about this subject simply because this post was a bit difficult to comprehend?
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