पिछली पोस्ट में कहा था अलगाव,विरह जेसी भावनाओं पर बात करेंगे ,पर आज सोचा बातें दूसरी की जाए और कविताएँ,त्याग,विरह और अलगाव की डाली जाए...आइस क्रीम के साथ हॉट चोकलेट जेसा फ्यूजन बनाया जाए कुछ एसी बातें जो अचानक दिल में आजाती है वो लिख डाली है बस ........
जब इंसानों को देखती हू तो लगता है हर कहानी एक दुसरे से मिलती जुलती सी है कोई यूनीक नहीं कही ना कही सब एक ही गोमुख से निकले हुए ....वेसे भी शुरुआत तो सबकी एक जैसी ही है बस, कथानक और पृष्टभूमि अलग है बाकि, जनम तो सारे नायक, नायिका की तरह ही लेते हैं ..अपनी अपनी कहानी बनाते हैं पर एसा लगता है जेसे सबकी कहानियों के कुछ टुकड़े एक दुसरे के उधार पर जिन्दा है . ऐसा लगता है सारे आईने है जो टुकडो से जुड़ जुड़ कर बने हैं और इन टुकड़ों जेसे ही कुछ टुकड़े दूसरी कहानी के आईने में भी है .हर आईने से थोडा चूरा दूसरी कहानियों में जा मिलता है कोई भी साबुत नहीं है यहाँ .... बस एक दुसरे की कहानियों को देखकर अपनी कहानियां महसूस करते हुए ....या दुसरे आईने में गाहे बगाहे अपना अक्स देखते हुए .. .
सारे के सारे आईने इस इंतज़ार में की कब ये टूटन कम होगी और उन्हें वापस से रीसाईंकिलिंग के लिए भेज दिया जाएगा ,ताकि वो फिर नया आइना बन सके जिसके टुकड़े हों ...सभी बाहर से आवरण ओढ़े की वो जीवन संघर्ष मैं है , आनंद ,दुःख ,प्रेम में है पर अन्दर से हर आइना जनता है की टूट टूट के एक दिन चूरा हो जाना है और एक ही अदुर्श्य भट्टी में सबको गलना है ...सब जानकार भी सबकुछ नकारते हुए ...जिन्दादिली से कहानियां बनाते हुए ....क्यूंकि ये सारी कहानियां , ये सारे आईने जानते है अगर आज से ही भाति और उसके ताप के बारे में सोचा तो जाने कहाँ भटक जाएँगे .....बस सारे के सारे इस भटकाव से बचने की कोशिश करते से ... हमेशा से सुना है जेसे जेसे मृत्यु का समय नज़दीक आता है जीवन से मोह या तो बहुत बढ़ जाता है बहुत ही कम हो जाता है पर कभी कभी लगता है बड़े खुशनसीब हैं वो क्यूंकि जल्दी ही इस भटकाव से मुक्त हो जाने वाले हैं ....वेसे कभी प्रेमचंद की कहानी "बूढी काकी " में पढ़ा था जीवन के सायंकाल में सारी इन्द्रियों की सक्रियता स्वाद -इन्द्री में आकर सिमट जाती है कितना अजीब है जब हमारा सच में खाने का समय होता है तब बस समय ही नहीं होता ,दौड़ भाग होती है और जब शरीर सच में खाने का परहेज रखना चाहता है तब स्वाद-इन्द्री जागृत हो जाती है ....
खेर बातों का क्या है कभी खतम नहीं होती चलती ही रहती हैं अनवरत ,जैसे कहानियां कभी ख़तम नहीं एक कहानी से दूसरी जुडी होती है , तो अब कुछ पंक्तियाँ,कुछ मुक्तक....
शुरुआत बेवफाई से करते है...
एक बेवफा के लिए और क्या दुआ मांगू?
तुम अपने लिए एक नया जहाँ मांग लेना
मैं तारे की तरह टूटकर गिर जाउंगी
तुम अपनी खैरियत की दुआ मांग लेना....
मेरे साथ का मौसम तुम्हे सुहाना नहीं लगता
कोई एक मौसम खुशनुमा मांग लेना
मेरे लिए तो बस तुम ही जीने का सबब थे
अब जीने की अपने वजह मांग लेना ......
अब थोडा त्याग की बात,अलगाव की बात....
मेरे साथ साथ चलना तुमसे नहीं बनेगा
इन कंटकों पर प्रेम का कुसुम नहीं खिलेगा
मैं जंगलों का मुसाफिर ,तुम शांत झील सी हो
ना देख सकूँगा मैं तुम्हे क्ष्रण भर भी पीर सी हो
बड़ा कठिन है देना पर ये त्याग मांगता हू
मैं विरह की पीड़ा साकार मांगता हूँ .....
जानता हूँ तुम मेरे साथ भी चल दोगी
मेरे घावों को अपने आँचल की छाव दोगी
पर तुम्हारे आँचल को आंसुओं का रंग कैसे दूं ?
तुम प्रेयसी हो मेरी तुम्हे कंटक पंथ कैसे दूं?
क्या मुझे दे सकोगी बस ये उपहार मांगता हूँ
मैं दुनिया की जीत और दिल की हार मांगता हू .....
मैं विरह की पीड़ा साकार मांगता हूँ...
आज के लिए बस इतना ही ..........
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
11 comments:
सम्बन्धों के न जाने कितने रंग हैं, हर एक अलग।
टुकड़ों टुकड़ों में बनती हुई ज़िंदगी की कहानी
सुन्दर विचार
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dil haar jaataa hai
samasyaa hee yahee hai
isiliye
dil haarne waalon kaa naazayaz faaydaa uthaayaa jaataa hai
प्रवीण जी की बात से सहमत हूँ समाबंधों के जाने कितने रंग है और तुमने जीवन के रंगों को आईने से जोड़कर एक अलग ही दिशा दी है। एक गीत है
"आईने के सौ टुकड़े करके हमने देखे हैं
एक मैं भी तन्हा थे,सौ में भी अकेले हैं"
विचारणीय लेख....
सुंदर मुक्तक।
भाव सहजता से अभिव्यक्त करती पंक्तियाँ!
अच्छा
प्रयास
है
prakhar kalam
सच है, विचारों के लिये आलेख और रस व भावनाओं के लिये काव्य - और कहानियाँ वाकई हमें दूसरे लोगों से जोड़ती हैं। वही कहानियाँ दोहराई जाती हैं, फिर भी नित-नूतन। कवितायें अच्छी लगीं, खासकर त्याग की बात।
मिक्सचर अच्छा लगा...........आईने के टुकड़े वाली बात और एक कहानी से दूसरी कहानी मिलने वाली बात बहुत अच्छी कही आपने|
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