तुम मुझसे दुनियादारी की उम्मीद करते हो
मेरी मोहब्बत दुनियादारी ना माने मैं क्या करूँ ?
तुम कहते हो तुममे ,मुझमे कुछ फासला रखो
मेरा मन तुम्हे खुद से अलग ना जाने मै क्या करू ?
तुम कहते हो बचपना छोड़ो ,संजीदगी लाओ
तुम्हारे प्यार की तरह मेरा बचपना भी ना जाए मैं क्या करू ?
तुम कहते हो इतना प्यार नहीं अच्छा
पर ना चाहूँ तो भी दिल तुम्हे चाहे मैं क्या करू?
तुम सागर से गंभीर मै नदिया सी तरंगिनी
ये तरंगे तुम्हारी गंभीरता से डर जाए मै क्या करू ?
तुम्हे आकाश बनना है मुझसे धरती सी उम्मीदें है
पर धरती सा धीर मुझमे ना आए मै क्या करू ?
तुम्हारा सारी दुनिया से मिलना है मेरे लिए एक बस तुम हो
मेरा हर पल बस तुममे ही गुज़र जाए में क्या करू.....?
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
मेरी मोहब्बत दुनियादारी ना माने मैं क्या करूँ ?
तुम कहते हो तुममे ,मुझमे कुछ फासला रखो
मेरा मन तुम्हे खुद से अलग ना जाने मै क्या करू ?
तुम कहते हो बचपना छोड़ो ,संजीदगी लाओ
तुम्हारे प्यार की तरह मेरा बचपना भी ना जाए मैं क्या करू ?
तुम कहते हो इतना प्यार नहीं अच्छा
पर ना चाहूँ तो भी दिल तुम्हे चाहे मैं क्या करू?
तुम सागर से गंभीर मै नदिया सी तरंगिनी
ये तरंगे तुम्हारी गंभीरता से डर जाए मै क्या करू ?
तुम्हे आकाश बनना है मुझसे धरती सी उम्मीदें है
पर धरती सा धीर मुझमे ना आए मै क्या करू ?
तुम्हारा सारी दुनिया से मिलना है मेरे लिए एक बस तुम हो
मेरा हर पल बस तुममे ही गुज़र जाए में क्या करू.....?
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
21 comments:
वाह ....बहुत खूब कहा आपने ... बेहतरीन ।
यह पंक्तियाँ बहुतों की मनोदशा को शब्द दे रही हैं।
एक एक पंक्ति अपनी बात को ब-खूबी बयां करती है।
सादर
दर्द-ऐ-दिल को
मन से
बयां किया आपने
दीवानगी का
सबूत दिया आपने
कई मुकाम आते मोहब्बत में
दूर नहीं रह पाता इंसान
मंजिल-ऐ-मोहब्बत के खातिर
कुछ भी कर सकता इंसान
dil ki gaharaaiyon se nikli kavita.bahut achchi lagi.
बहुत खूब।
ख्याल बहुत अच्छे है आखिरी शेर में अल्फाज़ की बंदिश पर ध्यान दें , कुल मिला कर अच्छी ग़ज़ल , मुबारक हो
तुम्हारी लेखनी की तारीफ में मुझे समझ न आय मैं क्या लिखूँ :-)हमेशा की तरह सुंदर रचना ....
bahut badhiya Ghazal...
koshishe hi kaamyaab hoti hain...
zari rakhen...
tumhari gambheerta se meri tarangen darr jayen to ... bahutbadhiyaa
न जाने कितनी बातों में हमारा बस नहीं चलता है।
अच्छी ग़ज़ल ..बहुत खूब।
'तुम सागर से गंभीर... मैं नदिया सी तरंगिनी...'
वाह बेहतरीन प्रस्तुति।
दिल के भाव उमड़ पड़े कागज़ पर । पढ़कर आनन्द आ गया। हम सब कभी ना कभी ह्रिदय की ज्वार-भाटा में गोते लगाते ही हैं । मैं तो यही कहूँगी -
बरबस खिंचा जाता है
हाथों से छूटा जाता है
मुझसे बागी हो जाता है
उस से राज़ी हो जाता है
क्या इंतज़ार में पाता है
क्यों खुद को भरमाता है !"
सुशीला श्योराण
बहुत खूब ... प्यार और बचपना दोनों आठ ही रहें तो अच्छा है ... बहुत उम्दा लिखा है ...
सुन्दर कविता, यह भी होता है और वह भी।
बहुत सुन्दर भावों को संजोया है।
मोहब्बत की इंतहा को खूबसूरती से बयां किया है.
हर बात वश में नहीं होती...!
सहज अभिव्यक्ति!
आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
bahut sundar rachana;;;;
padh kar accha laga;;
Hehe, the post took quite a while to read but it sure worth it
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