Tuesday, July 12, 2011

चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी

आज बहुत दिनों के बाद एक हलकी फुलकी सी कविता लिखी है उम्मीद है पाठकों का पसंद आएगी


सपनों को आँखों में लाती जेसे एक पहेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी

सो गए है तारें सारे ,सो गई है पुरवाई  भी
सोने को तैयार है बैठी गाँव की अमराई भी
मुझको यूं न छोड़  अकेला ,न कर यूं अठखेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी....

सूरज दिन का काम ख़तम कर  बादलों में जा सोया है
चंदा भी चांदनी के संग  रास रंग में खोया है
मुझको अपने पास बुलाए मेरी चादर मैली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी...

सभी  परिंदे शाखाओं पर दीन दुनिया से दूर हुए
यादों के झुरमुट भी अब तो थककर जैसे चूर हुए
सारे अपने चले गए है में रह गई अकेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी...

10 comments:

Mahesh Barmate "Maahi" said...

बहुत अच्छा लिखती हैं आप...
आभार

Bhargav Bhatt said...

very sweet...

kanu..... said...

thanks to mahesh and bhargav

ezzy said...

introduction is just awsome....wheather i didnt read the content but it striked bottem of my heart............

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

Kunal said...

Simple and beautiful.

शिखा कौशिक said...

komal bhavo ki sundar abhivyakti .badhai

Anonymous said...

बहुत ही खूबसूरत रचना है...

kanu..... said...

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद्
इसी तरह अआप का प्रोत्साहन मिलता रहेगा यही आशा है

Anonymous said...

Just to let you know your site looks a little bit strange in Opera on my laptop with Linux .