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Tuesday, February 28, 2012

उसका कल कभी नहीं आता ...

ह़र रात वो सोचकर सोती है
कल से थोडा समय खुद के लिए

अपने ख्वाबों, अपनी किताबों के लिए
अपनी बातों ,अपनी यादों के लिए
अपनी गलतियों अपने सुधारों के लिए
अपने किस्सों ,अपने विचारों के लिए
अपनी पसंद ,नापसंद के लिए
ढलते हुए अपने रूप रंग के लिए

पर दुसरे दिन सुबह होते ही                                                     
उसका  अपनों के लिए प्यार
मुन्ना की मनुहार, रिश्तेदारी, व्यवहार
धुप  में सूखता आम का अचार

ऑफिस का काम ,आने वाले मेहमान
पति की फ़रमाइश, बच्चो की हर ख्वाहिश
घर के सारे काम ,सब्जी के बढ़ते दाम,

उसके सारे विचारों ,किताबों पर
दस्तक देती छोटी छोटी चाहतों पर
पसंद नापसंद की बातों पर
आती जाती यादों पर
कुहासा फेला देती है

और हमेशा की तरह
 वो फिर जुट जाती है
अपने रोज़ के कामों में ...


 रात हो जाती है हर रोज़ की तरह
हर रात  वो अपने दिन भर को तोलती है
खुद से फिर वही बात बोलती है
कल से थोडा समय खुद के लिए
और? उसका कल कभी नहीं आता .....
पर वो खुश है इस इंतज़ार में.....

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी