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Saturday, February 4, 2012

खुला आकाश

मैं जब जब मुस्कराहट का दामन छोड़ने का मन बनाता हु, हर बार एक हवा के झोकें की तरह तुम तस्वुर में आ जाती  हो और मेरे उदास चेहरे पर अपना अक्स छोड़ जाती  हो....अचानक से महसूस होता है जेसे मेरे उदास से गालों पर तुम्हारी मासूम सी मुस्कराहट नाच उठती है ....अजीब है ना ? लोग कहते हैं प्यार तो फेविकोल के जोड़ सा होता है पर मैं हमेशा से तुम्हे टूट टूटकर प्यार करता रहा हु........एकदम बिखर बिखर कर ......वेसे अजीब तो ये भी है की कभी हम प्यार के नाम से भी नफरत किया करते थे....तुम भी और मैं भी...पर जब हो गया तो हो ही गया....और हुआ तो ऐसा हुआ है की कही अंत ही नहीं इसका जब भी तुम मेरे प्रेम में गहरी सी उतरती लगती हो तो ऐसा लगता है कही तुम घुटन सी महसूस ना करो इसलिए बार बार तुम्हे आकाश देता हु...ताकि तुम बंधन महसूस ना करो....और तुम भी वन की मैना सी फिर चली आती हो उस आकाश को ठुकराकर हर बार मेरे पास ...और हर बार हमारा प्यार और भी गहरा सा हो जाता है......

कही छोड़कर हम बढ़ चले थे जिन्हें
फिर वही अहसास दे रहा हु तुम्हे
बस जुदाई के तराने ही दिए है अब तक
अब प्यार की बात दे रहा हु तुम्हे...

अपनी धड़कन का हर इक कतरा
रूह की प्यास दे रहा हू तुम्हे
जिस विश्वास को खो रही थी तुम
वही विश्वास दे रहा हूँ  तुम्हे

तेरी मुस्कान को गहरी सी चमक
प्यार के दिन रात दे रहा हु तुम्हे
बिना बंधन के जी सको मेरे संग
वो जज़्बात दे रहा हु तुम्हे

ना सोचना  की मैं भूल जाऊंगा
पर उड़ान की आस दे रहा हु तुम्हे
तुम्हारे पंख इजाज़त दे तो उड़ जाओ
मैं खुला आकाश दे रहा हु तुम्हे



आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी