Friday, January 30, 2015

प्यार सच में पागल बना देता होगा न ? पता नहीं

मैं हमेशा से तुम्हे लिखना चाहती थी और  लिखना चाहती थी खुद को. लिखते लिखते जी लेना चाहती थी पर न जाने क्यों लिखते लिखते खो जाना इतना आसान नहीं , मैं ज़हर लिखना चाहती हु ऐसा ज़हर जो लिखते लिखते सूज गई उँगलियों में उतर आए , लिखने वाले को खबर ही न हो उसकी खुद की कलम अब उसे छलनी करने लगी है ...स्याही खून में घुलकर उसे नस नस तक पंहुचा रही है और लिखने वाला दिन ,दिन ऐसे मर रहा है की उसे खुद को भी असर पता न चले ...
मैं उस लड़की की कहानी लिखना चाहती हूँ जिसने कभी कुछ ख़ास बुरा नहीं किया पर बादल हमेशा उसे सिर्फ इसलिए प्यासा छोड़कर चले गए क्योंकि उसने कुछ ख़ास बुरा नहीं नहीं किया न कुछ ख़ास अच्छा किया ....जो खो गई इस दुनिया में क्योंकि उसने वो किया जो सब चाहते थे वो नहीं किया वो खुद चाहती थी ...वो प्यासी  रह गई क्योंकि वो प्यासी होने का ढिंढोरा न पीट सकी ...बस अपनी बारी का इंतज़ार करती रही ......

मैं हमेशा से कहानी लिखना चाहती थी उस लड़के की जिसे दुःख है की उसने प्रेम नहीं किया बस विवाह किया और अब वो इस बात का बदला सारी दुनिया से ले लेना चाहता है ...जता देना चाहता है  सारी दुनिया को की वो भी प्रेम की पींगे भरना चाहता था पर इन सारे लोगो की वजह से वो ये नहीं कर पाया ...ऐसा लड़का जो अपनी हर भूल का बदला अपनी ब्याहता से ले लेना चाहता है ...जैसे कह रहा हो तुम न होती तो मैं कहीं ज्यादा सुखी होता , या तुम न होती तो मैं भी किसी के प्रेम में सारी दुनिया से लड़ जाता पर अब कैसे लडू...तुम जो आ गई .....


मुझे मेरी कहानी में हमेशा से एक खुश लड़की चाहिए थी जो आंसू न बहाए ,जरा हिम्मती सी हो मैंने ऐसी  लड़की तो लिख दी पर राज़ की बात तो ये है की लिखने वाले जादूगर हुआ करते हैं  अरे नहीं नहीं जादूगर नहीं तांत्रिक जेसे कुछ ...सुना होगा न की तांत्रिक को अपना परिवार नहीं रखना चाहिए क्योंकि वो अगर किसी बुरी बीमारी या आत्मा का साया किसी पर से उतारते है तो तांत्रिक के अपने घर के किसी आदमी पर असर पड़ता है ...हम लिखने वालो के साथ भी शायद कुछ ऐसा ही होता है हम किसी खुश लड़की को ऐसे ही नहीं लिख सकते उसकी आँखों में चमक ,दिल में ख़ुशी डालने के लिए हमें अपनी आँखों में उसके आंसू लेने होते हैं ,अपने दिल की खुशिया निचोड़कर उस केरेक्टर में दाल देनी होती है ...

मैं इश्क लिखना चाहती हूँ ,इतना इश्क की एक दिन तुम्हे लगे की मैं तुम्हारे इश्क में पागल हो गई हूँ मैं तुम्हारे इश्क को गूगल ड्राइव जेसा एक फोल्डर बनाकर लिखना चाहती हु की जेसे ही में कुछ लिखू वो क्लाउड पर अपलोड़ हो जाए फिर जहाँ चाहे जब चाहे तुम्हारे इश्क को डाऊनलोड कर सकू....में स्याहियों के रंग नहीं ज़िन्दगी के सारे रंग बदल देना चाहती हूँ ...

मैं खिड़की के पास टंगे पिंजरे में बैठे पंछी को आजाद कर देना चाहती हूँ ताकि उसे मलाल न रहे की उसे उड़ने का मौका ही नहीं मिला ...मैं उसकी घुटन को एक बार पूरी तरह ख़त्म कर देना चाहती हु ....मैं अपनी कहानी वाले लड़के को भी बंधन से आजाद कर देना चाहती हूँ और उसकी ब्याहता को भी ...चाहती हूँ की लड़के के मन में मरते दम तक ये मलाल न रहे की उसने प्रेम विवाह नहीं किया ...वो प्रेम विवाह करता तो लड़की को प्यार करता ....

मैं एक बार उस खुदा को लिखना चाहती हूँ जिसने प्रेम दिया ढेर सा प्रेम पर प्रेम करने के लिए कोई नहीं दिया ....मैं तुम्हे लिखना चाहती हु हर बार अलग केरेक्टर में जिसे तुम खुद न पहचान सको ...उन्ही बातों  उन्ही यादों के साथ ...उसी ज़हर के साथ ....हर बार नए असर के साथ ....

प्यार सच में पागल बना देता होगा न ...? पता नहीं ....

Wednesday, January 7, 2015

लोग तो लाखों है पर , क्या थोड़े से भी इंसान है ( A song)

आज कई दिन बाद ब्लॉग पर एक पोस्ट … इसे  कविता की जगह एक ऑफबीट सांग कहना ज्यादा बेहतर होगा … कोशिश कैसी है बताइयेगा …… 





























कोई हमको ये बताए क्यों ये अंधी दौड़ है 
गलियां और चौबारे नहीं लंबी सड़क पर मोड़ है
क्यों  रात में दिन जैसा हो जाने की लम्बी  होड़ है

दिल घरों में रख दिए सड़को पर सिर है पॉव है

मौत से इक कशमकश है, जिंदगी बस दांव है.…। 
इस शहर की धड़कनों में जीने/जीवन की सूखी आस है
चारों तरफ फैला समुंदर बुझती नही क्यूं प्यास है

आस  के गहरे कुएं में  खौफ खाती जान है 

लोग तो लाखों है पर ,
क्या थोड़े से भी इंसान है

चलती हुई लाशों के अंदर कसमसाती आत्मा

ढ़ूंढ़ते है हम जिसे वो चैन मिलेगा कहाँ
वो जिसे सब चाँद कहते है,दाग से काला हुआ
डर ने खामोशी को...,खामोशी ने डर पाला हुआ
चाँदी के सिक्को के दम पर 
डोलता ईमान है
लोग तो लाखों है पर ,क्या थोड़े से भी इंसान है

ज़ुल्म की सीढ़ी बनाकर चल रहा व्यापार सा 

जिसने ज्यादा खून चूसा वो बन गया अवतार सा 

आग में तपकर के वो सोना बनेगा झूठ है

दर्द की भट्टी है ,इम्तेहान लेती भूख है

एक गोली,एक खंजर,एक आदमी की वासना

चारों तरफ दहशत है कब हो जाए इनसे सामना

झूठ की है व्यूहरचना

सच रणनीती से अंजान है
लोग तो लाखों हैं पर, थोड़े से ही इंसान है..... थोड़े से ही इंसान है..... 

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी