Wednesday, August 14, 2013

आजकल नेताजी क्या कम नवाब है

अपना पसीना उनकी नज़रों में ख़राब है
आजकल नेताजी क्या कम नवाब है

उनके इत्र भी हमारी भूख पर भारी पड़े
खुशबुओं के दौर में रोटी का ख्वाब है

रेशमी शालू ,गुलाबी शाम के वो कद्रदान
आमजन की बेबसी का क्या जवाब है

मशहूर हो जाने को वो रोंदे हमारी लाश को
लाश हो जाना ही बस अपना सबाब है

रोशनाई ,जश्न उनकी जिंदगी का फलसफा
गरीबों की जिंदगी काँटों की किताब है 


 

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Tuesday, August 13, 2013

खोखला इतिहास लेकर क्या करूँ


भूख है और उम्र है ,दोनों ही खत्म होती नहीं
प्रसादों जेसे बड़े आवास लेकर क्या करू

उम्र भर की सेवा का मोल दिया न प्रेम से
सम्पूर्ण समर्पण के बदले ,परिहास लेकर क्या करू

बूँद बूँद के लिए तरसे हुए अंतस यहाँ
कागजों के कुएं और तालाब लेकर क्या करूँ

मैं चुनुँगा और को, राज करेगा दूजा कोई
अपने वोट पर ज्यादा विश्वास लेकर क्या करूँ


आएगा कल को कोई, मारेगा  भरे बाज़ार में
आतंकियों के शहर में साँस की आस लेकर क्या करूँ

जो आदमी आदमी  के खून में अंतर करे
मैं तुम्हारा खोखला इतिहास लेकर क्या करूँ

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