इक शहीद को याद करके रोना उसका अपमान माना जाता है पर उसके लौट आने की आस तो परिवारों से कोई नहीं छीन सकता वो दुसरे मुसाफिरों की तरह ही यात्रा पर जाता है वो लौटकर आए ना आए उसके अपने यादों को आने से नहीं रोक सकते....
जहाँ भी गए हो चले आओ अब
जहाँ भी गए हो चले आओ अब
की वो उम्मीद जो जाते समय
मेरे आँचल में रखकर चले गए थे
वो तुम्हारे इंतज़ार में मुरझाने लगी है
वो मुस्कराहट जो तुम जाते जाते
मेरे होंठों की खूंटी पर टांग गए थे
उसे ना जाने कहा से आकर
अकुलाहट ने जकड लिया है
तुम्हारी सफल यात्रा के लिए
भगवान को चढ़ाया प्रसाद
फीका सा लगने लगा है
शायद भोग लगा लिया उसने भी
लौट आओ की तुम जो दरवाज़े पर
पुनर्मिलन की आस छोड़ गए हो
वो भी तुम्हारे पिताजी की तरह
इधर से उधर चक्कर लगा रही है
अपनी माँ की आँखों में जो
पुत्रमोह छोड़ गए हो तुम
वो कई दिनों की अधूरी नींद के कारण
लाल डोरों में बदल गया है
चले आओ की तुम्हारी विजय की खबर
वीरगति की खबर से ज्यादा सुख देगी
तुम्हारी वीरगति सम्मान दे सकती है
पर हम सबकी जिंदगी भर की नींद नहीं
तुम लौट आओ
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