Tuesday, February 28, 2012

उसका कल कभी नहीं आता ...

ह़र रात वो सोचकर सोती है
कल से थोडा समय खुद के लिए

अपने ख्वाबों, अपनी किताबों के लिए
अपनी बातों ,अपनी यादों के लिए
अपनी गलतियों अपने सुधारों के लिए
अपने किस्सों ,अपने विचारों के लिए
अपनी पसंद ,नापसंद के लिए
ढलते हुए अपने रूप रंग के लिए

पर दुसरे दिन सुबह होते ही                                                     
उसका  अपनों के लिए प्यार
मुन्ना की मनुहार, रिश्तेदारी, व्यवहार
धुप  में सूखता आम का अचार

ऑफिस का काम ,आने वाले मेहमान
पति की फ़रमाइश, बच्चो की हर ख्वाहिश
घर के सारे काम ,सब्जी के बढ़ते दाम,

उसके सारे विचारों ,किताबों पर
दस्तक देती छोटी छोटी चाहतों पर
पसंद नापसंद की बातों पर
आती जाती यादों पर
कुहासा फेला देती है

और हमेशा की तरह
 वो फिर जुट जाती है
अपने रोज़ के कामों में ...


 रात हो जाती है हर रोज़ की तरह
हर रात  वो अपने दिन भर को तोलती है
खुद से फिर वही बात बोलती है
कल से थोडा समय खुद के लिए
और? उसका कल कभी नहीं आता .....
पर वो खुश है इस इंतज़ार में.....

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Sunday, February 26, 2012

सात वचनों का क्या आधार रहा ?

  आए दिन शादियों के टूटने और रिश्तों के दरकने की खबरें सुनकर ये कविता अचानक से मन में आई....


जबसे  तुमने  मुह  मोड़ा  है 
सूना  सा हर त्यौहार रहा
जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?

तुम्हरे संग सावन सावन  था
तुम्हरे संग फागुन था फागुन
जब से विरहन का रंग चढ़ा
भाए न अब कोई मौसम
जब तेरे प्रेम का रंग नहीं तो 
सिन्दूर का रंग उजाड़ रहा

जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?

सात जनम का साथ रहे
कुल की मर्यादा हाथ रहे
सुख ,दुःख में पल पल के साथी
हम तुम भी थे  दीपक बाती
पर प्रेम के सब आधार गए
तुम और कहीं दिल हार गए
अब मन से मन का मेल नहीं
 बस बातों का कारोबार रहा .....

जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?

तुम बिन भाता श्रृंगार नहीं
दर्पण पर भी अधिकार नहीं
सारे गहनों से मन रूठा
जब तेरी बाँहों का हार नहीं
मंगल सूत्र का 'मंगल' गया
काले मोती का व्यवहार रहा .....

जब प्रेम की कसमे टूट गई तो
सात वचनों का क्या आधार रहा ?

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Friday, February 24, 2012

तुम्हे बुलाऊंगा नहीं पर तुम्हे भुलाऊंगा भी नहीं......

जब से तुम गई मैं रोता नहीं
इसलिए नहीं की खुद से बदला ले रहा हु
या खुद को बड़ा तीस मार खा दिखाना चाहता हु
रोता नहीं क्यूंकि अब आंसू आते ही नहीं
सारा कुआ उलीच  कर ले गई तुम
तुम थी तो तुम्हारे संग हँसते हँसते भी रो देता था
अब तो बूँद बूँद को तरस गया हु
शायद  प्यासा पानी को एसे ही तरसता होगा
मै भी वेसे ही आंसुओं का प्यासा हो गया

सच है तुम्हारे  साथ जिंदगी नहीं गई
जाती भी कैसे ? सिर्फ खुशिया ही तो ज़िन्दगी नहीं
दर्द न सहा तो जिंदगी पूरी  कहा जी ?
खुदा मुझे पूरी जिंदगी देना चाहता था
इसीलिए उसने सब दिया ख़ुशी भी दर्द भी....
कितना खुशनसीब हु मैं. है न?

कैसे कह दू तुम्हे की लौट आओ
अब ये प्यास मुझे उन बूंदों से ज्यादा प्यारी है
ये दर्द  तुमसे ज्यादा करीबी है
तुम्हारी याद तुम्हारे साथ से ज्यादा ख़ास है
सब जाता है,शायद एक दिन मेरा मैं भी चला जाए
पर ये याद नहीं जाएगी...

बोलो भला इतनी अपनी चीज़ को कैसे खो दू?
एक वादा करोगी ?
तुम लौटकर मत आना अब कभी....
मैं भी एक वादा करता हु तुम्हे बुलाऊंगा नहीं
पर तुम्हे भुलाऊंगा  भी नहीं......


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Monday, February 20, 2012

तुम हमेशा से एसे ही थे ?

तुम मेरे लिए धूप के टुकड़े से हो
तुम्हारी थोड़ी सी कमी जेसे गला देती है मुझे
ऐसा लगता है उंगलियाँ जमने सी लगी है
और जब थोडा सा प्यार बढ़ जाता है
तो घबरा जाती हु कही जल न जाऊ
तुम हमेशा से एसे ही थे ?
एकदम धूप जेसे... जीवनदाई भी और जानलेवा भी...?

मैं हमेशा तुम्हे एक सा चाहती हु
और तुम कभी एक से नहीं होते
कभी अचानक  से भड़कते लावे से हो जाते हो
जैसे अभी भस्म कर दोगे अपनी अग्नि में
जला दोगे मेरा हर  कतरा अपने क्रोध से
 अचानक से गर्म तवे पर पड़ी
पानी की बूँद  से छनक उठते हो
और थोड़ी ही देर में ओंस की बूँद से मुस्कुरा देते हो
तुम हमेशा से एसे ही थे?
 जितने गर्म उतने ही शीतल भी ?

मैं तुम्हे हमेशा से सहेज कर रख लेना चाहती थी
जैसे बचपन में छुपा कर रख लेती थी अपना गुड्डा
पर तुम तो बिखरे बिखरे से हो
जितना सहेजू उतना और बिखर जाते हो
जितना मै झुक जाऊ तुम और अकड जाते हो
तुम्हे न सहेजू  तो दिल दुखा लेते हो
और थोडा सा ज्यादा सहेज लूं तो
बड़ी जल्दी दिल दुखा देते हो मेरा
तुम हमेशा से एसे ही थे ?
दिल दुखा लेने वाले  और दिल दुखा देने  वाले भी ?


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Wednesday, February 8, 2012

दर्द प्यार और अभिशाप

१८ बरस की वो लड़की अपनी उम्र के रंग से  कहीं ज्यादा गहरे  रंगों से रंगी हुई ,एसा गज़ब का रूप खुदा सबको नहीं बक्श्ता न ही सबको गज़ब का रूप अपनी आँखों के समुन्दर में समां लेने का हुनर देता है..शायद वो भी जानता है समुन्दर की हर लहर सुकून नहीं देती कुछ जानलेवा भी होती है ठीक यही सोचकर शायद खुदा ने उसकी आँखें बनाई  थी सारी लड़कियों को खुदा खूबसूरत ऑंखें देता है समुन्दर की शांत लहरों के जेसी पर उसे तो एकदम जानलेवा सी ऑंखें दी थी जो एक बार डूबा उसके बाहर आने के चांस जेसे ख़तम ही समझो...एकदम शराब की उस बोतल की तरह जानलेवा, जिसपर लिखा होता है अल्कोहल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है पर न पीने वाले उसे छोड़ते  हैं न नए चाहने वाले आशिक  उसके मुरीद होने से बच पाते हैं....

उसका रंग कभी गुलाबी नहीं था वो जाफरानी था जैसे लाखों जाफरान के फूलों को मसलकर रंगत दी देने वाले ने ...एसी रंगत जो देखने वाले के होश उड़ा दे की वो इंसान देख रहा है या बुत.....और दिल में एसा भावनाओं का सेलाब जो जब भी चेहरे पर उभर  आता तो लगता जेसे सारी कायनात  इस जाफरानी रंग में रंग जाएगी....उसके आंसू मोतियों के जेसे कैसे कह दू ? क्यूंकि जब वो रो देती तो लगता सारे बादल मेरे सर पर मंडरा  गए हो, पूरी दुनिया का कालापन उसकी आँखों के कालेपन के साथ बह चला हो और जल्दी  ही खुदा की बनाई सुन्दर सृष्टि इस कालिख से दब जाएगी...लोग हाहाकार कर उठेंगे और उसके इन आंसुओं की कीमत सारी दुनिया को चुकानी होगी.....

वो लिखा करती थी... सिर्फ कागज़ के पन्नो पर नहीं मैंने उसे अकले में हवाओं में ,समुन्दर की रेत पर हर जगह लिखते देखा था .......लोग कहते थे वो दिलों पर लिखने का हुनर जानती थी उसका लिखा पढने वाला उसका दीवाना हो जाया करता था ,औरतें उसके बनाए खाने की महक से नहीं उसके लिखे दर्द भरे शब्दों से खार खाया करती थी ,उसके लिए न जाने कितनी ही कहानियां बना  दी गई थी की वो अपने लिखे हुए से जादू टोने करना जानती है तभी सारे शहर की माएं और लड़कियां अपने बेटों और प्रेमियों को उसके लिखे के जादू से बचाने के लिए बाबा साधुओं के चक्कर लगाया करती, जगह जगह  से भभूत लाया करती पर ये सच था जिसने भी उसका लिखा पढ़ा वो बार बार उसे पढना चाहता था वो गज़ब का दर्द लिखती थी एसा दर्द जेसे किसी के खून से लिखा हो जेसे हर अक्षर दर्द में डुबोकर आंसुओं में नहलाकर कागज़ पर उतारा हो......वो प्यार भी एसा ही जानलेवा लिखा करती थी बस जैसे दिल पर चोट हो ऐसा बेतहाशा  समर्पण लिखती की पढने  वाला बस वेसी ही नायिका अपने जीवन में चाहने लगता.....

उसकी आवाज़ बांसुरी  की आवाज़ सी थी ,सारी दुनिया यही कहती थी की वो बोलती नहीं सुर छेडती है पर मुझे हमेशा वो आवाज़ सुरंग की सी लगी जब जब सुनता था लगता था कही गहरी सी खाई में से आ रही हो एसी खाई जहा अगर गलती से मेरा पैर पड़ गया तो में बस उस आवाज़ के मोह में बंध जाऊंगा और अगर बंध गया तो दुनिया का कोई धुरंधर मुझे उस पाश से न बचा पाएगा.....उसकी इसी  आवाज़ के कई दीवाने हुआ करते थे एसा लगता था जेसे वो सारे दीवानों को अपनी आवाज़ के पाश में बांधेगी और एक दिन छोड़ आएगी समन्दर की गहराई में डूब जाने के लिए........

इसी बांसुरी जेसी आवाज़ से एक दिन जब उसने मुझे कहा " मैं तुम्हे प्यार करती हू " तो मेरा अंदाज़ा सही निकला मुझे सच में एसा लगा जैसे मुझे दुनिया के सारे दर्द,सारे प्यार,सारे कालेपन,सारे आंसुओं ने अपनी बाँहों में जकड लिया जैसे उसके दिल की सारी घुटन सारी मोहब्बत मेरे सामने आ खड़ी हुई ,और जब उसने आगे कहा तुम मुझसे इतने दूर क्यों हो जल्दी लौट आओ मेरा दम घुट जाएगा तुम्हारे बिना तो एसा लगा जैसे जिंदगी ख़तम ही हो गई,विश्वास ही नहीं हुआ वो मुझे असे टूट टूटकर प्यार करती होगी, उस दिन के बाद उसकी लिखी हर कविता का नायक में हो गया खुद को हर बार उसके शब्दों से तोलकर देखता और हर बार अपने आपको,उसके प्रेम की लायकी से कुछ कमतर ही महसूस करता ...लोग सच कहते थे उसने मेरे दिल पर लिख दिया....
मैं कभी लौट कर न जा सका उसके पास बस उसके लिखे कुछ दर्द के हर्फ़ पहुँचते रहे मुझतक हर बार .....हर बार इन हर्फों में उसके दिल का खून बढ़ता रहा ,जेसे बूँद बूँद इकठ्ठा करके कलम में डाल देती हो कई दीवानों की की कल्पना का साकार रूप वो जाफरानी लड़की मेरा प्यार लिखती रही....कहते हैं वो मेरा प्यार लिखते लिखते ही वादियों में कही खो गई मेरे न मिल पाने के बाद वो बस मेरे गम में लिखती रही ...अब वादियों में बस उसके लिखे शब्द तैरतें है और उसकी बांसुरी की सी आवाज़ की गूँज आज भी जाने कितनी प्रेमिकाओं की रातों की नींद हराम किए देती है .......


और मै? मैं  यहाँ सात आकाश पार सपनो की दहलीज़ के परे बैठकर उसके प्यार, उसके मिलन का इंतज़ार कर रहा हूँ...बस अब उसका अभिशाप ख़तम हुआ खुदा ने उसका दर्द कागज़ पर उतरवा दिया और उसे मुझसे मिलाने का इंतज़ाम कर दिया उसे मुक्ति मिल गई.......पर उसकी रूह प्यार का दर्द न छोड़ सकी और कही बीच रस्ते मे सारे दर्द के साथ भटक गई शायद इस उम्मीद के साथ की  शायद वो वहा से मुझे धरती पर देख पाए कहीं....शायद जल्दी ही वो जान जाए की मे यहाँ सात आकाश पार उसका इंतज़ार कर रहा हू.......... शायद कोई अगली लड़की उसका दर्द ले सके और वो छूट जाए इस अभीशाप से ..........


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Saturday, February 4, 2012

खुला आकाश

मैं जब जब मुस्कराहट का दामन छोड़ने का मन बनाता हु, हर बार एक हवा के झोकें की तरह तुम तस्वुर में आ जाती  हो और मेरे उदास चेहरे पर अपना अक्स छोड़ जाती  हो....अचानक से महसूस होता है जेसे मेरे उदास से गालों पर तुम्हारी मासूम सी मुस्कराहट नाच उठती है ....अजीब है ना ? लोग कहते हैं प्यार तो फेविकोल के जोड़ सा होता है पर मैं हमेशा से तुम्हे टूट टूटकर प्यार करता रहा हु........एकदम बिखर बिखर कर ......वेसे अजीब तो ये भी है की कभी हम प्यार के नाम से भी नफरत किया करते थे....तुम भी और मैं भी...पर जब हो गया तो हो ही गया....और हुआ तो ऐसा हुआ है की कही अंत ही नहीं इसका जब भी तुम मेरे प्रेम में गहरी सी उतरती लगती हो तो ऐसा लगता है कही तुम घुटन सी महसूस ना करो इसलिए बार बार तुम्हे आकाश देता हु...ताकि तुम बंधन महसूस ना करो....और तुम भी वन की मैना सी फिर चली आती हो उस आकाश को ठुकराकर हर बार मेरे पास ...और हर बार हमारा प्यार और भी गहरा सा हो जाता है......

कही छोड़कर हम बढ़ चले थे जिन्हें
फिर वही अहसास दे रहा हु तुम्हे
बस जुदाई के तराने ही दिए है अब तक
अब प्यार की बात दे रहा हु तुम्हे...

अपनी धड़कन का हर इक कतरा
रूह की प्यास दे रहा हू तुम्हे
जिस विश्वास को खो रही थी तुम
वही विश्वास दे रहा हूँ  तुम्हे

तेरी मुस्कान को गहरी सी चमक
प्यार के दिन रात दे रहा हु तुम्हे
बिना बंधन के जी सको मेरे संग
वो जज़्बात दे रहा हु तुम्हे

ना सोचना  की मैं भूल जाऊंगा
पर उड़ान की आस दे रहा हु तुम्हे
तुम्हारे पंख इजाज़त दे तो उड़ जाओ
मैं खुला आकाश दे रहा हु तुम्हे



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