जो छोड़कर जाते हैं अपने इश्क को मझधार में
उन बेवफाओं के किए क्या दिल लगाना छोड़ दे ?
जिन रास्तों ने ज़ख्म देकर पैरों को घायल किया
जब वो ना फितरत छोड़े अपनी तो
हम क्यों उन रास्तों पर जाना छोड़ दे ?
हे इश्क वो दाता जिसने
भटकती रूह सा जीवन दिया
और वो कहते हैं की हम
इश्क से खौफ खाना छोड़ दे
वो कहते हैं हमसे सरेराह
यूँ नशे में चलना बंद करो
हमें डर हैं मोहब्बत की
खुमारी के उतर जाने का
गर साथ वो अपने हैं तो
फिर हमारी नज़रों का काम क्या
कैसे दुनियादारी की ख़ातिर
उनका सहारा छोड़ दे ?
जाने वाले ऐसे गए
ज्यो शाख से पत्ते गए
वो ना आएं लौटकर तो
आस भी लगाना छोड़ दे ?
किस घडी वो लौट आएं
,इश्क का अहसान हो
राह में कैसे भला
दिया जलाना छोड़ दे ?
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
11 comments:
वाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है
अहसासों की शानदार अभिव्यक्ति,,,खूबशूरत नज्म,,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
सुन्दर अभिव्यक्ति ,भावनाओं को दुलराती,अपने को टटोलती कसमसाहट से सबका करती अच्छी रचना.
बहुत सुन्दर.....
आस का दीपक जलता रहे...
अनु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सही बात...
भावनाओं की कोमलतम अभिव्यक्ति...
:-)
प्रेम में इंतज़ार करती प्रेमिका का दर्द दिखता है
अच्छी अभिव्यक्ति
सब अपना धर्म निभायेंगे।
प्रेममय अहसास से सजी सुंदर रचना |
मेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:पढ़ना था मुझे
आयेंगे ना लौट कर , जाने वाले लोग
हँसकर जी लें आज को,यही सुखद संयोग
यही सुखद संयोग,आस है सिर्फ जलाती
दिया रोशनी कर , तभी जब जलती बाती
झरे फूल इक बार ,कभी ना खिल पायेंगे
जाने वाले लोग , लौट कर ना आयेंगे ||
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