Friday, August 10, 2012

तुम मेरे कर्म फल हो : कर्मन्यवाधिकारस्ते

आँखों के सामने तेर जाते हैं हर बार
तुम्हारे नाम के  कुछ अक्षर 
जो मैने समय की बर्फ में दबा दिए थे 
ये सोचकर की फिर सामने नहीं आएँगे 
नज़रों से दूर हुए तो दिल से दूर हो जाएँगे
पर मैं भूल गई 
तुम  और तुम्हारा नाम 
उस बर्फ में दबकर अमर हो गया 
जीवाश्मों की तरह 

तुम्हारी यादों के कुछ ख़त 
जो जला दिए थे अनमनेपन की अग्नि में
फिर आ खड़े होते है सामने
नाच उठते हैं शब्द 
सोचा था जले हुए खतों के साथ
यादें भी जल जाएगी 
पर तुम्हारी यादें तो आत्मा जैसी हो गई
नैनं  छिन्दन्ति शस्त्राणी, नैनं दहति पावक: 

तुम्हारे अस्तित्व के कतरे 
हर बार छोड़  आती हू कहीं पीछे
अपने कर्तव्यों के आगे मुझे तुम्हारा अस्तित्व 
बौना ही लगा सदा 
पर तुम तो हर बार बड़ा रूप लेकर 
आ खड़े होते हो मेरी राह में 
जैसे मेरे हर कर्तव्य का फल 
बस तुम ही होने वाले हो हमेशा 
चाहे अनचाहे ,जाने अनजाने
कर्मन्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन 

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी (चित्र गूगल से साभार )

18 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

आखिरी पैरा कुछ ज़्यादा ही अच्छा लगा।
जन्माष्टमी' की शुभकामनाएं

सादर

Saras said...

बहुत ही खुबसूरत तरीके से आपने जीवन को गीता के सार से जोड़ा है .....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

यह द्वन्द्व उस आधुनिक समाज की देन है जो भागने के पीछे पागल है। न वह प्रेम को छोड़ कर विरागी हो पाता है और न पूरी तरह प्रतिस्पर्धा में ख़ुद को खपा पाता है। द्वन्द्व जब तक समाप्त हो पाता है तब तक सब कुछ जा चुका होता है। समय प्रतीक्षा नहीं करता किसी की।

संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन रचना
जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनाएँ !!!!

kanu..... said...

aap sabhi ko bhi janmashtami ki shubhkamnaein....

vandana gupta said...

खूबसूरत भावाव्यक्ति

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सुंदर भावाभि‍व्‍यक्‍ति‍

Vinay said...

बहुत ही सुंदर

--- शायद आपको पसंद आये ---
1. Auto Read More हैक अब ब्लॉगर पर भी
2. दिल है हीरे की कनी, जिस्म गुलाबों वाला
3. तख़लीक़-ए-नज़र

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति कनु जी...

पर्व की शुभकामनाएं.

अनु

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत प्रभावी सुंदर अभिव्यक्ति,,,,कनु जी बधाई,,,,
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....

रविकर said...

बहुत बढ़िया |
बधाई ||

प्रवीण पाण्डेय said...

चिन्ता के समुद्र से बाहर निकाल देते हैं ये शब्द..कर्मण्येवाधिकारस्ते..

Shanti Garg said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग

जीवन विचार
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Kunwar Kusumesh said...

प्रभावपूर्ण रचना.

sm said...

प्रभावपूर्ण रचना

AmitAag said...

..very beautifully written, Kanu:)

kanupriya said...

thnx

kanupriya said...

thnx