Monday, September 26, 2011

मौसम फिल्म : मेरी नजर मैं mausam film review:with a different angle

आज तक आपने ना जाने कितने फिल्म रिव्यू पढ़े होंगे जिनमे लिखने वाले ने फिल्म को अच्छी या बुरी सन्देश देती ना देती फिल्म के रूप में देखा होगा ,यहाँ तक की आप में से कई लोगो ने अब तक इस फिल्म को देख लिया होगा या कम इसका रिव्यू भी पढ़ लिया होगा .पर मुझे विश्वास है की इस लेख को पढने के बाद आपको बहुत कुछ नए अहसास होंगे.

सीन १ : आज से तकरीबन ५,६ दिन पहले  रात मे मेरे मन मे विचार आया की मुझे प्रेम कहानियों की एक सीरीज लिखनी  चाहिए जिसमे अलग अलग अंत हो अलग अलग एंगल हो बस नायक और नायिका का नाम एक हो बाकि हर बार पृष्ठभूमि अलग ही परिस्थितियां  अलग हो ,अपना ये विचार मैंने फेसबुक  पर डाला और लोगो से पुछा क्या मुझे एसा करना चाहिए...

सीन २ :आज से २ दिन पहले मतलब २४/०९/२०११ को में ऑफिस में थी और मैंने लोकेश (मेरे हसबेंड) से कहा लोकेश मेरा बड़ा मन है की में आज किसी रूहानी विषय पर लिखू जिसमे प्रेम हो पर आत्मिक अहसास हो जेसे इस्वर से मिलना हो रहा हो पर में चाह  कर भी लिख नहीं पा  रही कोई विषय ही समझ नहीं आ रहा  .

सीन ३  :मैंने लोकेश से कहा कल (२५/०९/२०११) को हम मौसम देखने जाएँगे आप टिकिट  बुक करवा लो  , एसा कहने का कारन है की लोकेश की हर शनिवार छुट्टी होती है और मै मजदूर शनिवार को भी अपनी दिहाड़ी लेने अपने ऑफिस आती हू तो मुझे पता था आज वो घर पर है फ्री है तो टिकिट बुक करवा लेंगे  .लोकेश ने थोड़ी देर बाद फ़ोन किया और कहा सीट नहीं है ३ से ६ के शो मे क्या करना है ? मैंने कहा आप १२ से ३ देखो मेरा बड़ा मन है ये फिल्म देखने का कुछ भी करो हो सके तो टिकिट अडवांस बुकिंग ले लो  और फाईनली लोकेश का फ़ोन आया मैंने कल की टिकिट बुक करवा ली है ,उस समय मेरे चेहरे पर जो ख़ुशी थि मे उसे अभी बयां नहीं कर सकती . " आप लोगो को ये सारी बातें बताने का मतलब ये नहीं की मे आपको अब ये भी बताने वाली हू की हम थिएटर तक केसे गए , कौन से रंग के कपडे पहने ,या क्या खाया   ये सब बताने का मतलब बस इतना है की मे इस फिल्म को देखने के विचार के पीछे की अपनी मानसिक स्थति और इस फिल्म को देखने की अपनी जिज्ञासा के भावो को आप तक पहुंचा सकू.


 इस फिल्म ने मुझे निराश नहीं किया फिल्म बहुत  ही अच्छी बनी है. वेसे  सूरज बडजात्या की फिल्म ' विवाह " के समय से ही  शाहिद मेरे पसंदीदा हीरो है पर सच कहू तो इस फिल्म को देखते हुए कही ये महसूस ही नहीं हुआ की शाहिद मेरे पसंदीदा हीरो हैं .इस फिल्म  मे उनके अभिनय मे बहुत निखार दिखाई देता है .पंजाबी विस्थपित मुस्लिम लड़की अयात और सिक्ख लडके हेरी के बीच पनपी एक प्रेम कथा पर आधारित ये फिल्म बार बार इन्हें एक दुसरे से मिलाती है दूर करती है फिर मिलाती है .सच कहू तो सोनम कपूर अपने नाम अयात (चमत्कार संकेत) को एक शब्द देती सी लगी है एकदम चमत्कारिक एकदम पवित्र रुई  के फाहे जैसी सुन्दर  .

फिल्म के शुरुवाती भाग मे शाहिद  ने  खेतों मे ट्रक्टर पर बैठकर  गन्ने चूसते लड़के के पात्र मे जान डाल दी है ,इसी के साथ ट्रेन के आगे से गाड़ी निकलने का द्रश्य भी उनके खिलंदरपने  को दर्शाता है.कहानी का पंजाबी पुट आपको हसने पर मजबूर कर देगा और सिर्फ आपको ही नहीं कई बार आपके साथ हॉल मे बेठे और लोग भी ठहाके मारकर  हस्ते सुनाई देंगे .चाहे वो गाड़ी मे साईंकिले पार्क कर देने वाला सीन  हो या कुर्सियां पास करने वाला सब फिम के पहले हिस्से को हसी ख़ुशी भरा बनाता है .

बाकि की पूरी फिल्म  मे कही आपको गंभीर सन्देश मिलेगा , कही गांधीवाद की झलक दिखाई देगी, कहीं अनंत प्रेम दिखाई देगा और कहीं आतंकवाद और आतंरिक कलह  के दुष्परिणाम.और इन सब बातों का प्रभाव हमारे नायक नायिका के जीवन पर पड़ता दिखाई देगा .

कहानी आपको नहीं बताउंगी क्यूंकि फिर आपका देखने का मजा शायद कम हो जाए पर इस फिल्म के एक रिव्यू मे मैंने पढ़ा की प्रेम पर आधारित  इस फिल्म मे प्रेम ही नदारत है ,इस बात को सच कहा जा सकता है क्यूंकि आजकल प्रेम की परिभाषाएं  बदल गई है  आजकल जब तक नायक नायिका के बीच कुछ लव सीन ना दिखाई दे,उनके माँ बाप उन्हें एक दुसरे से अलग करते ना दिखाई दे ,वो घरवालों से प्यार के लिए बगावत करते ना दिखाई दे ,फिल्म मे जब तक नायक नायिका एक दुसरे के लिए रोते आंसू बहाते ना दिखाई दे तब तक जैसे लोगो को प्रेम दीखता ही नहीं. क्यूंकि इस फिल्म मे छुप छुप कर देखना ,कागज की पर्चियों पर लिखकर बात करना ,एक दुसरे को बारिश की बूंदों से खेलते देखना ही प्रेम की शुरुआत है और बस उसके बाद बिछोह है .पर मेरे ख्याल से यही आत्मिक प्रेम इस कहानी को दूसरी कहानियों  से अलग बनाता है .

अगर आप सच मे रूहानी प्रेम को देखना चाहते है  एसे नायक नायिका को देखना चाहते है जो प्रक्टिकल है पर, प्रेम के लिए बरसों एक दुसरे का इन्तेजार करते है ,कोई दिखावा नहीं कोई रोना धोना नहीं यहाँ तक की एक दुसरे से किसी तरह का कोई संपर्क भी नहीं हो पाता क्यूंकि दोनों को एक दुसरे का पता  ही नहीं होता कौन कहा है कसा है कुछ नहीं , बस प्रेम है जो दोनों को एक दुसरे से बांधे हुए है  वही उन्हें एक दुसरे से दूर नहीं होने देता ,दोनों के शरीर एक दुसरे से दूर पर रूहें एक दुसरे मे समाई हुई है. फिल्म को देखकर एक बार आपको भी ये अहसास होगा काश एसा रूहानी प्रेम सबके जीवन मे हो .इस फिल्म की एक खास बात और ये है की ये आपमें दूसरी कई प्रेम कहानियों की तरह  प्रेम की उत्तेजना नहीं पैदा करती बल्कि  आपका हाथ पकड़कर पावन प्रेम की और बढ़ा ले जाती है .

पंकज कपूर ने पहली फिल्म डाइरेक्ट की है एसा लगता ही नहीं.वेसे वो एक मजे हुए कलाकार है,रंगमंच के अभिनेता भी रहे हैं और ये अनुभव उनकी फिल्म मे साफ़ दिखाई देता है .उन्होंने हर कलाकार से बेहतरीन काम निकलवाया है और हर सीन को बेहतर बनाने की कोशिश की है जो फिल्म दिखाई देता है.

अब आपको एक किस्सा सुनाती हू जो उस दौरान हुआ जब हम फिल्म देख रहे थे शाहीद और सोनल एक दुसरे के करीब ठीक आमने सामने खड़े हैं सीन को थोडा ब्लैक एंड व्हाइट स्टाइल मे फिल्माया गया है जिसमे सोनम कपूर के होंठों की चथक लाल रंग की लिपस्टिक को उभरकर दिखाया गया है कैमरा दोनों के चेहरे पर जूम किया हुआ है और द्रष्य चल रहा है  तभी मेरे पास वाली सीट पर बेठे तकरीबन ६० वर्षीय अंकल अपनी पत्नी से कहते है ये इसके होंठों  पर इतने डार्क कोलोर की लिपस्टिक केसे  आ गई पिछले सीन मे तो नहीं थी और आंटी ने जवाब दिया तुम वही देख रे हो? और फिर अंकल बोले अरे नहीं नहीं  और इसके साथ की दोनों की दबी सी हंसी सुनाई दी.इसके साथ ही एक हसी की आवाज़ थी जो मेरी थी  और थोड़ी देर बाद लोकेश की हसी की आवाज़ भी इस हसी मे शामिल हो गई.

चलिए फिर से फिल्म की बात करते हैं.फिल्म मे शाहिद कपूर को देखकर आराधना  के राजेश खन्ना की याद आ जाती है इसी से आप समझ सकते हैं की उनका रोल काफी अच्छा है .रिश्तों और फिल्म के सभी पात्रों  के आस पास घूमती ये कहानी हर कलाकर को किरदार मे दम डालने की जगह देती है और कलाकारों ने अपनी पूरी कोशिश भी की है चाहे वो घोडा गाड़ी चलाने वाला  चाचा हो ,अयात और हेरी की दोस्त रज्जो हो (जो हलके से रूप मे फिल्म मे विलेन जैसी दिखाई देती है) ,फूफी का किरदार अदा करने वाली सुप्रिया पाठक हो या दो पक्के दोस्तों का किरदार अदा करने वाले अयात के अब्बा और कश्मीरी पंडित अनुपम खेर हो .

गहरे तौर पर देखेंगे तो इस फिल्म मे कोई विलेन नहीं ना माँ बाप ना रिश्तेदार सबसे बड़ी विलेन है परिस्थितियां .और पंकज कपूर ने ये परिस्थतियाँ युद्धों और आतंरिक कलह के रूप मे दिखाई है .चाहे वो अयोध्या कांड हो ,कारगिल युद्ध हो ,फिर अहमदाबाद के दंगे सब को इतने बेहतरीन तरीके से एक दुसरे से जोड़ा गया है और इन सबका प्रयोग इतने आराम से नायक नायिका को एक दुसरे से दूर करने और मिलवाने के लिए किया गया है जैसे सब सच हो .कहीं कहीं आपको लगेगा की बिचारे फिर नहीं मिल पाए या कब तक ये चलेगा पर पूरी कहानी  और कांसेप्ट पर गौर करेंगे तो इस खिचाव को भूल जाने का मन करेगा.नायक नायिका अपने प्रेम को याद करते हैं पर अपनी परिस्थितिओं का जमकर सामना करते है रोते बिलखते नहीं ना ही जिंदगी से दूर होते है.कही कहीं आपको लगेगा प्रेम जैसा कुछ कहा है? पर फिर जब गौर करेंगे तो बरसाती बूँद,फूलों की खुशबु,और ओंस की बूँद जेसा पवित्र और रूहानी प्रेम दिखाई देगा....

मौसम को आप एक एसी फिल्म के रूप मे देख सकते है जो कुछ ना कहते हुए भी प्रेम और भाईचारे का बहुत बड़ा सन्देश दे जाती है ,प्रेम का पागलपन  नहीं दिखाती पर रूहानी प्रेम की सीढ़ियों तक पंहुचा देती है , विलेन नहीं दिखाती पर ये दिखा जाती है की अधुरा प्रेम क्या असर कर सकता है ?कैसे दो चाहने वालों की जिंदगी मे उथल पुथल  का एक कारण बन सकता है ,ये फिल्म ये भी नहीं दिखाती की जुदाई के कारन बनाए  जाते हैं पर एसी परिस्थितियां दिखाती है जब आप जुदाई के लिए किसी को दोष नहीं दे सकते.और साथ ही बहुत ही प्यारा सन्देश की दंगा करने वालों और जान लेने वालों का कोई धर्म नहीं होता वो बस साए होते सिर्फ साए.....इसे आप प्रेम कहानी मत समझे क्यूंकि एक प्रेम कहानी से कहीं ज्यादा ये संदेशात्मक कहानी है ...

ये हो सकता है की मेने इसे कुछ ज्यादा ही रूहानी ढंग से लिया हो पर ये सच है की इस फिल्म को एक बार देखना बनता है ...कम से कम उन लोगो के लिए तो जरूर बनता  है जो अच्छे कांसेप्ट ,संदेशात्मक फिल्मों और साफ़ सुथरी प्रेम कहानियों के कदरदान है....


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Friday, September 23, 2011

वो खुशबुएँ और मासूम लड़की-fragrances and that sweet girl


सुबह ८.३० की वो ए सी बस मेरे घर से ऑफिस आने का साधन बनती है रोज ,अनवरत , हमेशा की दिनचर्या है मेरी. उसी बस में बैठकर मैं ऑफिस तक आती हू .वैसे बेठना कहना सही नहीं क्यूंकि आज तक मुझे कभी उस बस में बेठने की जगह नहीं मिली ज्यादातर सफ़र खड़े होकर ही करना पड़ता है  पर में फिर भी खुश रहती हू क्यूंकि कम से कम बेस्ट की बस की तरह भाग दोड़ कर और गंभीर  भीड़ में लोगो से टकराते, माफ़ी मागते हुए ,लोगो के टकराने पर भी कुछ ना कह पाने के गम से जूझते  हुए नहीं आना पड़ता . ये एक बस छूटी की मुझे ना जाने कितने पापड़ बेलते हुए भाग दौड़  करते हुए ऑफिस आना पड़ता है...
हाँ तो मैं ए सी बस पर थी  आज सुबह मुझे मेरी किस्मत और भगवन के करम से फिर ए सी बस मिल ही गई किस्मत और भगवन का करम इसलिए कह रही हू क्यूंकि में बहुत ही बिखरी बिखरी सी लड़की हू आज भी बचपना है मुझमे जिसमे लोग अलार्म बजने पर खुद से ही कहते है १० मिनिट  और सो जाती हू १० मिनिट  में कोई फर्क नहीं पड़ेगा और ये १० मिनिट का फरक मुझे दौड़ लगाकर लंच तैयार करने और नहाने ,तैयार होने , भागते भागते दूध पीने और जल्दी जल्दी सीढियां उतरने पर मजबूर कर देता है....पर जाने क्यों सब जानते समझते में सुधरती नहीं या शायद सुधरना नहीं चाहती.

मैं फिर बातों में उलझ गई न तो में कह रही थी आज बस में खड़े होने के बाद हमेशा की तरह अलग अलग चेहरों से नजर टकराई कुछ से टकराकर नजरों में जान पहचान वाले भाव उभरे तो कुछ से टकराकर  परावर्तित हो गई जैसे उनकी भाव शुन्यता और अनजानापन आकर्षण का केंद्र ना हो मेरे लिए  .इन्ही चेहरों के साथ एक और अनुभव जो इस तरह की बस में होता है वो है अलग अलग खुशबुओं का अहसास सारे खिड़की दरवाजे बंद होने के कारन शायद ज्यादा बढ़ जाता है. जानती हू  गवारों जैसी बात लगे शायद क्यूंकि सब जानते है की ए सी बस में खिड़कियाँ होती नहीं पर इसी के कारन ये खुशबुओं वाला अहसास हावी होता है.

तरह तरह की खुशबुएँ कुछ इतर की , कुछ परफ्यूम  की , बॉडी लोशन की, हैयेर  जेल की,क्रीम ,पौडर  और भी ना जाने कितनी तरह तरह की खुशबुएँ...कभी आकर्षित करती कभी सर को भन्नाने और दर्द की कगार पर पहुंचती इन खुशबुओं से रोज ही दो चार होना पड़ता है .कभी कभी लगता है इन सारी खुशबुओं को ओढ़कर हम सब जैसे दिखावे की दुनिया के करीब आ जाते है...अपने आप से अपने खुद से काफी दूर , जैसे इन लिपे पुते चेहरों और तेज़  खुशबुओं के पीछे सब अपना दर्द ,अपनी तकलीफें अपने असली रंग रूप को दबा लेना चाहते हो. कभी जकड़ती सी लगती है ये तरह तरह की खुशबुएँ ....

हाँ तो आज इन्ही खुशबुओं और लिपे पुते जाने अनजाने चेहरों के बीच मुझे एक नया चेहरा नजर आया वो मेरे काफी पास खडी थी ,थोड़ी ही देर में उसने मुझे पूछा आप कहा तक जा रही है ?जवाब में मैंने कहा एल एंड टी तक.फिर प्रश्न था :आप मुझे बता देंगी स्टॉप आएगा तो?में पहली बार जा रही हू  मैंने कहा हाँ क्यों नहीं? बिलकुल बता दूंगी और फिर छोटा मोटा बातों का सिलसिला चल  पड़ा वैसे भी ये मेरी आदत है में लोगो के साथ बड़ी जल्दी घुल मिल जाती हू, और मुंबई में क्यूंकि हम दो लोगो के सिवा घर में कोई है नहीं तो ,जहा भी बातें करने का मौका मिलता है वहा चूकती नहीं .अभी ये शहर मुझे इतना नहीं बदल पाया की मैं घुन्नो की तरह व्यवहार करू ,पर हाँ कोशिश में जरूर है मुझे बदलने की देखते हैं कौन जीतता है .

बातों ही बातों में पता चला की वो आज ही ज्वाइन करने आई है बाकि भीड़ के कारन ज्यादा बात नहीं हुई.थोड़ी देर में ही उसे सीट मिल गई और मेरी नजर  घूमकर उससे मिली .सच कहू तो प्यारी से लड़की थी वो चटकीला  पिंक फूलों वाला सूट ,उसी रंग के टॉप्स ,एक कड़ा , मचिंग  चप्पल  और सबसे बड़ी बात चेहरे पर मासूमियत.देखकर ही  लगता था बाहर से आई है मुंबई की नहीं है कारन दो थे पहला ये की मुंबई में नए नए आए लोग अलग से पहचान में आ जाते है और दूसरा उसका मचिंग प्रेम ,क्यूंकि मुंबई में ऑफिस जाते लोगो को आप इस तरह से कम ही देखेंगे .उसे देखकर वो समय याद आ गया जब स्कूल के पहले दिन नया बैग ,उसी रंग का तिफ्फिन ,और उसी रंग की बोत्तल लेकर जाते थे. वैसे सच कहू तो जब मैंने बैंक की अपनी पहली नौकरी ज्वाइन की थी तो मुझे ये मचिंग प्रेम नहीं था पर मेरे पापा को लगता था की पहला दिन है ऑफिस का तो उनने मुझे एक पिंक बोतल,पिंक तिफ्फिन,पिंक बरसाती,,पिंक बैग  सब दिलाकर  पूरा पिंकी बना दिया था :) बस क्यूंकि में पिंकी दिखना नहीं चाहती थी इसलिए पिंक ड्रेस नहीं पहना और बाद में अक्भी ये मौका नहीं मिला क्युंकी प्राइवेट बैंक में official ड्रेस होता है . 

खेर मै यादों के जगल में खो गई लगती हू  हाँ तो वो  लड़की के चहरे पर डर और मासूमियत के मिले जुले भाव देखकर ये भाव मन में आए की कुछ ही दिनों में ये भी मुंबई के रंग में रंग जाएगी इसका भी चेहरा यंत्रवत , भावहीन टाइप का हो जाएगा जैसे वो सबसे आगे वाली सीट पर बैठी लड़की का है , वो ठुल्तुले से अंकल का है ,वो जींस वाली लड़की का है जो मुस्कराहट का जवाब भी मुस्कराहट से नहीं देती...एक दिन आएगा जब ये भी इन खुशबुओं का हिस्सा  बन जाएगी ,ये सारी खुशबुएँ  जकड लेगी इसे भी एक दिन.या शायद  ये मेरी तरह संघर्ष  करती रहे इन खुशबुओं की भीड़ में खो जाने से बचने की....बस एक ही दुआ निकल रही है सुबह से बार बार हे इश्वर  हे खुदा तू जहा भी है काश अगर तुझे बने तो एक काम करना इसकी मासूमियत ,अल्हड़ता ,बचपना बचा लेना इस भीड़ में खो जाने से.....आमीन




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Tuesday, September 20, 2011

कही बिक जाए गम

कही बिक जाए गम तो बेचकर खुशियाँ खरीद ले
कुछ पूँजी जमा हो जाए यादों के सफ़र के लिए.

वो जो कहते हैं माँ का साथ कभी छूटता नहीं .
वो  लाकर दे मेरी माँ की लोरी हर रात बाकि सफ़र के लिए .

सोने के सिक्कों से गर सब ख़रीदा जा सकता है दुनिया में
मेरे बचपन की दुनिया ला दे मुझको  रहगुजर के लिए


जिन्हें लगता है महबूब की मोहब्बत  ही दुनिया है
मेरे बाबा (पिता ) के लाड देख ले वो रूककर पल भर के लिए .

बड़े इत्मीनान से जो सो जाते है कल की सुबह की खातिर
जरा सोचे किसे गम के आंसू दिए हैं रात भर के लिए .

मेरा मुस्तकबिल तेरे मुस्तकबिल  से जुड़ भी जाता शायद (भविष्य )
ना जाने किसने मुक़र्रर की जुदाई उम्र भर के लिए

तुझे मेरी मोहब्बत पर यकीन भी तब हुआ
जब इन्तेजार का वक़्त ना बचा तेरे मुन्तजिर (इन्तेजार करने वाला) के लिए .


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Friday, September 16, 2011

कैसे रोकती तुम्हे....? kse rokti tumhe?

 आज अपने मिजाज से हटकर एक कविता लिखी है .एक प्रेम कहानी पढने के बाद ये कविता मन में आई ,इसका रंग रूप मेरी सारी पुरानी कविताओं से अलग है पर शायद कई प्रेम कहानियां एसे ही दम तोड़ देती होंगी ...कही ना कहीं....

किस्मत ने हमें मिलवा तो दिया पर मिला ना पाई
तुम आए और चले गए कही दूर मुझसे ,  मेरे प्रेम से
हमारे प्रेम की दुनिया से दूर कहीं दूर 
और में तुम्हे रोक भी ना पाई,पर कैसे रोकती तुम्हे ?


कैसे रोकती तुम्हे ? मेरा गाव बड़ा छोटा है
यहाँ के घर बड़े है ,दालान बड़े है ,कमरे बड़े है
पर दिल बड़े छोटे है....
हमारे जज्बातों के लिए इन छोटे  दिलों में कोई जगह नहीं

यहाँ की खिडकियों से झांकती आँखें बड़ी तेज है
हमें चीर देती बीच सड़क पर ,जड़ कर देती बीच बाजार में
हमारे पैरों को जकड लेती ये सांप की तरह....
और उसका दर्द मेरे -तुम्हारे घर वालों की झुकी नजरों में दिखता
तुम्ही बताओ कैसे रोकती तुम्हे....

यहाँ के नाम बड़े है,इज्जत बड़ी है ,रुतबा बड़ा है
पर इन सब के साथ मेरे गाव की चुगलियाँ भी बड़ी हैं
कानाफूसियाँ करते लोग,मुह फेरती चाचियाँ,मामियां,बुआएं
हमें अपनी ही नजरों से गिरा देते ,जीने नहीं देते
सोचो सिर्फ हम दोनों के लिए
 मै हमारे घर वालों को इस आग में कैसे  झोक देती....
तुम्ही बताओ कैसे रोकती तुम्हे....

जानती हू मेरे सीने का दर्द तुम्हारी आँखों से लावा बनकर बह रहा था
तुम्हारे दिल की जलन सारी दुनिया से बचा कर ले जाती मुझे कही दूर
पर मुझे घर आँगन चाहिए था स्वछंद आकाश नहीं ...
जानती हू तुम्हारे प्रेम का झरना उमंग भर देता मेरे जीवन में
पर वो प्रेम अपनों के बिना जीवन जीने का खालीपन नहीं भर पाता

इसीलिए मैंने जाने दिया तुम्हे दूर खुद से,अपने प्रेम से...
इस खिडकियों ,दीवारों ,गलियों,सडको बाजारों से दूर
इन कानाफूसियों ,चुगलियों ,चुभती आँखों,सबसे दूर
तुम यहाँ रहते तो तुम्हारा आकाश तुमसे छूट जाता 
कैसे छीन लेती तुमसे तुम्हारा आकाश ?
तुम्ही बताओ कैसे रोकती तुम्हे....?


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Wednesday, September 14, 2011

मेरे शब्द खोए से लगते हैं


पिछले कुछ दिनों से ढूंढना पड़ रहे हैं  बार बार  ...
ना जाने क्यों आजकल मेरे शब्द खोए से लगते हैं

कोई कड़ी नहीं मिलती उन्हें जुड़ने के लिए
शायद कही चिर निंद्रा में आराम करना चाहते है
या बस यू ही कही छुप गए है मुझे परेशां करने के लिए 
जेसे मेरी खोज उन्हें अपनी अहमियत बताने वाली हो
नहीं जानती मै पर ,बार बार नींद से जगाना पड़ता है इन्हें .



प्रचलित विषयों पर लिखे जाने से बचाना चाहते है खुद को
या इन्हें ऊब हो गई इस बात से की ये लोगों के सामने आए
जेसे थक गए हो  कलम से बहार आ आकर
और कुछ दिन के लिए विराम चाहते हैं ?
नहीं जानती मैं पर ,ढूँढना पड़ता है इन्हें दिल के कोनो में जा जाकर ....

दिमाग और दिल के द्वन्द में उलझ गए है शायद
या अहसासों के अतिरेक में फस गए है
जैसे जरुरत से ज्यादा भोजन, भोजन की इच्छा को मार देता है
नहीं जानती मैं पर, कही कोई दर्द है जो कचोट रहा है मेरे शब्दों को

पिछले कुछ दिनों से ढूंढना पड़ रहे हैं  बार बार  ...
ना जाने क्यों आजकल मेरे शब्द खोए से लगते हैं

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Friday, September 9, 2011

ये कैसा भारत निर्माण है ? ye ksa bharat nirmaan hai?



अश्रु  बहते है आँखों से ,मन को ना विश्राम है
चारों तरफ लहू बह रहा ये कैसा भारत निर्माण है ?

बम के धमाको से दहला भारतवासी  कराह रहा
शरीर के परखच्चे देखकर आतंकवाद  दहाड़ रहा
                                                  क्रंदन से कांपी है धरती ,हर गली चोबारा खाली है
                                                  हर कोई आशंकित है बड़ी विपदा आने वाली है

इंसानों का खून पीने को तत्पर दिखता शेतान है
चारों तरफ लहू बह रहा ये कैसा भारत निर्माण है ?

खून की बारिश का मंजर कितनी ही आँखों ने देखा
मृत्यु से फिर हार गई हाथों की लम्बी  जीवन रेखा
बूढ़े कन्धों  ने फिर  जवान बेटों की करी विदाई
कोई परिजनों को ढांढस  दे  मातम की बेला आई

कल तक जो जीवन परिमल  था आज बना संग्राम है
चारों तरफ लहू बह रहा ये कैसा भारत निर्माण है ?

"स्कूल चले हम" का नारा अब लगता बेमानी है '
छोटे छोटे बच्चो की भी ,  अर्थी की तैयारी है
मौत का मंजर आए दिन कई दिलों को सूना करता है
बच्चे घर की छत  पर भी खेले तो माँ का मन आशंका से डरता है

काल के मुह का ग्रास बन रहे जो बेकुसूर, नादान है
चारों तरफ लहू बह रहा ये कैसा भारत निर्माण है ?

किसी का भाई, किसी का बेटा, किसी की माँ चली गई
मुआवजा देकर जानों का कर ली कर्तव्य  की इति श्री
जीवन की कीमत हुई सस्ती ,क्या पैसा ही भगवान है ?
जिनसे अपने बिछुड़  गए उनके भावों ना कोई मान है

लाशों के ढेरों पर बैठा वो बस देता सांत्वना बयान है '
चारों तरफ लहू बह रहा ये कैसा भारत निर्माण है ?

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लौट आओ तुम (ए लव स्टोरी -destroyed by terrorism )

वो मासूम सा लड़का उसे बचपन से भला लगता था ,छोटी छोटी सी आँखें,घुंघराले बाल ,वो हमेशा से छुप छुप के उसे देखती आई थी ,जब वो अपना बल्ला  लेकर खेलने जाता,अपने दीदी की चोटी खींचकर भाग जाता,मोहल्ले के बच्चो के साथ गिल्ली डंडा खेलता हर बार वो बस उसे चुपके से निहार लिया करती थी .जैसे उसे बस एक बार देख लेने भर से इसकी आँखों को गंगाजल की पावन बूदों सा अहसास मिल जाता था .घर की छत  पर खड़ा होकर  जब वो पतंग उडाता वो उसे कनखियों से देखा करती थी जेसे जेसे उसकी पतंग आसमान में ऊपर जाती, इसका दिल भी जोरों से धड़कने लगता और फिर वो भागकर नीचे आ जाती की इंजन की तरह आवाज करते इस दिल की आवाज कही आस पास के लोगो को ना सुनाई दे ,कितनी पगली थी वो जानती ही नहीं थी दिल की आवाज़ बस उसी  को सुनाई देती है जिनका दिल आपके दिल से जुड़ा होता है बाकि लोग तो बस शब्द सुन सकते है  अनंत आकाश में हमेशा  गूंजने वाले शब्द....

जब उम्र ने थोडा बदलाव लिया ,शरीर के साथ मन भी बदलने लगा ,बातों के साथ नजरें भी बदलने लगी ,गली के लड़कों के तेवर और माँ की सीखें भी बदलने लगी पर वो नहीं बदली वो बस उसे निहारा करती थी चुपके से  बस अंतर इतना आया था की उसके इस तरह चुपके से देखने की आदत शायद वो ताड़ने लगा था ,कभी कभी कनखियों से वो भी उसे देख लेता जेसे मौन संवाद की प्रतिक्रिया मौन में ही दे देना चाहता हो.
दोनों नहीं जानते थे ये क्या था ,बस इतना जानते थे की ये मौन संवाद अच्छा लगने लगा था दोनों को. कभी कभी जब दोनों आमने सामने पड़ जाते तो नजरे मिलती और साथ ही झुक भी जाती जेसे अगर ज्यादा देर तक मिली रह गई तो एक दुसरे का चुम्बक उन्हें दूर ना होने देगा.

दोनों की उम्र बढती जा रही थी और ये मौन संवाद भी  मुस्कुराहटों में बदलने लगा था पर शब्द अभी भी इस मौन संवाद की जगह नहीं ले पाए थे ,दोनों कॉलेज जाते थे लड़का वकील बनना चाहता था इसलिए ला कॉलेज में दाखिला  लिया और लड़की अपनी डाक्टरी की पढाई में लग गई ,दोनों बस एक दुसरे को देखकर मुस्कुराते,और फिर नजरे चुरा लेते,धीरे धीरे दोनों समझने लगे थे की उनके अन्दर क्या पनप रहा था पर इस पनपते अंकुर को दोनों दुनिया से छुपा रहे थे शायद या इन्तेजार कर रहे थे सही समय का ,पर इससे भी ज्यादा इन्तेजार उन्हें इस बात का था की वो खुद ठीक से समझ पाए की क्या था ये ?

बरसात की सुबह थी वो 7 september 2011  आज  लड़के ने सोचा था सुप्रीम कोर्ट का अपना काम निपटाकर वो शाम को वापस लौटते हुए उससे एक बार बात जरूर करेगा ,चाहे शुरुवात  ही पर इस मौन संवाद को में थोड़े शब्दों की लड़ियाँ पिरोएगा.. आज उसने एक छोटी सी पर्ची बनाई और रस्ते में जब वो मिली तो उसके हाथ में थमाकर निकल गया लड़की ने चारों तरफ नजर घुमाते हुए उस पर्ची को पढ़ा उसमे लिखा था "शाम को वापस आते समय कालोनी के पार्क में मिलना बात करनी है.".पर्ची खोलते ही उसका दिल जोरो से धड़कने लगा, एक अजीब से अहसास ने दिल को भर दिया,बस बार बार यही सोचती थी आज उससे बात होगी क्या बात होगी , केसे  होगी वहा तक वो पहुँच ही नहीं पा रही थी.बस बात होगी मौन टूटेगा इसी की ख़ुशी उसके पैरों को जमीन पर नहीं पड़ने दे रही थी.

बस इसी उधेड़बुन में वो कॉलेज चली गई शाम को जल्दी से वापस आकर पार्क में बैठ गई ,दिन में दिल्ली में हुए आतंकवादी  धमाके की खबर पर लोग बातें कर रहे थे आखिर उसका शहर दिल्ली से थोड़ी ही दूरी पर था सो चर्चा होना भी चाहिए थी. उसे भी बड़ा दुःख था की लोगो की जानें चली गई ,पर वो फिर भी उसका इन्तेजार कर रही थी और ये इन्तेजार की ख़ुशी उसे बड़ा सुकून दे रही थी ,एक घंटा बीता ,२ घंटे बीत गए अँधेरा चने लगा पर वो ना आया ,घर से २ बार माँ का फ़ोन आ गया  था की आज उसे इतनी देर क्यों हो रही है पर वो एक्स्ट्रा क्लास का बहन बनाकर वहा बैठी उसकी राह ताकती रही .आखिर वो ना आया और वो उठकर घर आ गई .

उसने देखा गली में मुर्दानगी छाई है और कही बस रोने की आवाजें आ रही है,उसने सोफे पर बैग फेकते हुए माँ से पूछा  क्या हुआ है माँ ? माँ ने कहा वो कोने वाले  शर्मा  है ना उनका बेटा आज दिल्ली गया था कोर्ट के काम से  वहा बम धमाका हो गया बिचारा लड़का  वापस नहीं आया मैं जा रही हू उनके घर तू चलेगी मेरे साथ ?पर ये सब सुनने के लिए उसे होश ही कहा था वो तो वही जमीन पर बैठ गई थी ,उसके लिए अब किसी शब्द का कोई मतलब नहीं था जिसके शब्द सुनने के लिए वो बचपन से तरस गई थी वो उससे अबोला ही चला गया.....क्या कहे वो इस रिश्ते को ,क्या नाम दे वो तो रो भी नहीं सकती .....

बस यही सोचती रही हमेशा सुना था आतंकवादी हमलों में जब कोई अपना जाता है तो सच्चा दर्द पता चलता है पर उसका जो चला गया वो तो पूरी तरह से अपना नहीं था पर बचपन से लेकर आज तक उससे ज्यादा अपने ढूँढना भी मुश्किल है उसके लिए ,वो अकेला नहीं गया अपने साथ उसके बचपन की यादें,उसकी आँखें,उसके अहसास ,उसका जीवन और उसकी वो मांग जो शायद उसके नाम के सिन्दूर  से भर सकती  थी सब सूना कर गया.....और वो ?वो बिचारी तो रो भी नहीं सकती  किस रिश्ते से रोए वो.....?अब तो ये भी नहीं कह सकती की लौट आओ तुम क्यूंकि शब्दों ने तो कभी जगह ली ही नहीं उनके बीच.........



आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

Friday, September 2, 2011

मेरी मोहब्बत -my love

after a long time i write a poem of love with urdu words...hope all of you like this...

वही चेहरा वही आँखें वही सूरत निकली
मैंने जो दिल में बसाई थी वही मूरत निकली
तुम आए  तो आँखों को भी यकीं भी  ना हुआ
मेरे ख्वाबों की हर ताबीर  हकीकत निकली



तेरे लिए हर बार यही सोचकर करती हू दुआ
हर दुआ खुदा की रूह से होकर निकले
अपने चेहरे को देखने की लिए जब देखा आइना
मेरे चेहरे पर तेरे अक्स  की चादर निकली

तेरे होने के हर अहसास को छुना चाहू
मै तेरी मोहब्बत  में इस कदर पागल निकली
दूर होकर भी तुझे रूह में महसूस करू
मै मशर्रत (ख़ुशी) से भटकी हुई मुसाफिर निकली

मेरा जिक्र -ऐ -फ़िराक होने लगा है लोगो में (मोहब्बत का जिक्र )
में तेरी रुसवाई -ए-उम्मत की वजह निकली (समाज में बदनामी  )
तुझे चाहकर जेसे छोड़  दिया दुनिया को
में दुनिया के फुरकान से थोडा हटकर निकली (फुरकान -standard -criterion-परिपाटी  )

Thursday, September 1, 2011

ये है मुंबई मेरी जान ye hai mumbai meri jaan


 ye hai mumbai meri jaan. bheed bhari anjani si kabhi jaanipahchani si ase hi bethe bethe kuch lines likhi hai....

सतरंगी सपने जेसे बलैक एंड व्हाइट से हो गए
मुंबई की गलियों में आकर सारे सपने खो गए

 
एक बड़ा सा बंगला हो जिसमे सुन्दर सा बगीचा हो
शाम की  हलकी ठंडक में चाय की चुस्कियां हो
जब पतिदेव घर पर आए तो ,
गार्डेन में  बातों का सिलसिला हो

पर बंगले के सारे सपने वन बी एच के से हो गए
मुंबई की गलियों में आकर सारे सपने खो  गए


एक लम्बी सी गाडी हो ,जिस पर हरदम नजर हमारी हो
रोज शाम की सेर हो , मुस्कानों का ढेर हो
बरसातों में आइसक्रीम  हो,बार बार लॉन्ग ड्राइव हो
पर बिन मौसम के बादल सारे सपने धो गए
मर्सिडीज़ जेसे सपने नैनो  वाले हो गए
मुंबई की गलियों में आकर सारे सपने खो  गए



आराम की जिंदगी हो ,भगवन की भी बंदगी हो
घर से ऑफिस पास हो ,बेबसी का ना अहसास हो
अपने लिए भी टाइम हो ,और अपने भी पास हो
पर भूल भुलैया में खोकर हम भीड़ का हिस्सा हो गए

बेस्ट की बस के धक्कों में हम पीड़ित जेसे हो गए
मुंबई की गलियों में आकर सारे सपने खो  गए