Tuesday, June 28, 2011

रेव पार्टी :अब तो शर्म भी शर्माने लगी है

अखबारों के वो क्लासिफाइड विज्ञापन तो आपको याद ही होंगे " जिंदगी में मौज मस्ती के लिए हमसे जुड़े २० हजार से ३० हजार रूपए महिना कमाए  संपर्क करें .....".गुजरात से आई रेव पार्टी  की खबर देखकर मुझे भी ऐसा ही विज्ञापन याद आ गया अभी ये खबर खुलकर बाहर भी नहीं आई थी की पोलिसे ने मुंबई में रविवार की रात कर्जत में चल रही एसी ही एक पार्टी में ३०० -३५० नोजवानो को एसी ही रेव पार्टी में पकड़ा.दोनों जगह एक बात मुख्य है शराब,कॉल गर्ल्स और बेसुध होकर नाचते और  ड्रग्स लेते लेते लोग .और ये आलम होता है हर रेव पार्टी का.इन दोनों पार्टी में अंतर था तो बस एक गुजरात की पार्टी में गिरफ्तार अभियुक्‍तों का संबंध राज्‍य के प्रतिष्‍ठित लोगों से है इसलिये उनके नाम को उजागर नहीं किया जा रहा है और मुंबई की पार्टी में पकडे गए अधिकतर  लोग युवा है और उम्र की एसी देहलीज पर है जहाँ पैर फिसलने की पूरी संभावनाएं रहती है.कुलमिलाकर  हर उम्र ,हर दर्जे हर तबके के लोग इसके शिकार हो रहे है,मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर जल्दी ही ये सुनना पड़े की पिता एक रेव पार्टी से बरामद हुआ और बेटा दूसरी तरफ चल रही रेव पार्टी में पकड़ा गया .

हम बेवजह ही कहते है की देश में नौकरियों की कमी है  देखिये कितनी नोकरियां  बिखरी पड़ी है ,हम बेकार ही कहते है पैसे की कमी है देखिये कितना पैसा बिखरा हुआ है ,देश में भुखमरी है पर एसी पार्टियों को देखकर लगता है खाने की जरुरत किसे है युवा तो पीकर ही काम चला रहे है.शर्म की बात है पर वो भी आने से शर्माने लगी है शायद.

रेव पार्टी ऐसे  अय्याश लोगो का जमवाडा जो शराब पीने,खुले बदन नाचने और ड्रगस को  ही जिंदगी मानने लगे है.,उन्हें खुदी  का होश नहीं तो खुदा का ख्याल  होने की बात करना बेकार है....खास बात यह है कि इन पार्टियों में अब सिर्फ बड़े बाप की बिगड़ैल औलादें ही नहीं बल्कि मध्‍यमवर्गीय परिवारों के वो लड़के-लड़कियां भी जाने लगी हैं, जिन्‍हें घर से या तो खर्चा नहीं मिलता और या फिर उनके खर्च स्‍टेटस से कहीं ज्‍यादा हैं।  यही नहीं अपने घरों से दूर रहकर पढ़ रहे छात्र-छात्राएं भी इन क्‍लाबों का शिकार बन रहे हैं। आप अगर एक बार इस माया जाल में फंस गए तो निकलना काफी मुश्किल होता है क्यूंकि इस तरह की पार्टियों में वीडियो बनाए जाते है और कई बार या तो लोगो को ब्लैकमेल करने के काम आते है या बाजार में एमएमएस या सीडी के माध्यम से परोसे जाते है जो एक बार उलझ गया वो धसता ही चला जाता है .बेरोजगारी के कारण जहां युवा वर्ग सिर्फ उसी दिशा में देखता है जहां पैसा मिले। और यदि 20 से 30 हजार रुपए महीने का लालच हो तो आकर्षण और भी बढ़ जाता है।

आजकल  पैसे की भूख और ऐयाशी  के नशे ने युवाओं को किस हाल में पहुचा दिया है वो दिन में बेसुध होकर कमाते है है रातों को बेसुध होकर नाचते है .मतलब होश हर हाल में नहीं  है ..अख़बारों के ऐसे  विज्ञापन सबसे ज्यादा आकर्षित करते है पैसे के लिए  किसी भी हद तक, गिरने के लिए तैयार मध्यमवर्गीय लड़कियों को ,जिनके लिए  अपना स्टेटस मेनटेन करना अपनी इज्जत  मेनटेन करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है और ऐसी  पार्टियों में अपनी हदें तोडना उतना ही आसान  जितनी आसानी से वो अपने माँ बाप का विश्वास तोड़ देती है.

इन दोनों ही पार्टी में एक और चीज कॉमन है वो है फेसबुक ,दोनों ही पार्टी के  इनवीटेशन फेसबुक में बनी कम्युनिटी के माध्यम से पहुचाए गए.इन्ही कम्युनिटी के माध्यम से फ़ोन नंबर एक्सचेंज हुए, वेन्यु डीसाइड हुआ और लोग मिल लिए .हम बेकार ही कहते है लोगो के पास समय नहीं एक दुसरे के लिए या लोग अब सोशल नहीं रहे पर इन रेव पार्टियों को देखकर लगता है युवा तो ज्यादा सोशल हो गए है अब वो सामाजिकता के पार नए रास्ते तलाशने लगे है सोशल होने के लिए .फिर चाहे उन्हें अपनी माँ का जन्मदिन याद रहे ना रहे ,पापा की उम्मीदें याद रहे ना रहे,एसी पार्टियों की सारी डीटेल्स याद रहती है.कितना अजीब है ना अब युवा सोशल होकर अनसोशल  हो रहे है ...

अब हम में से कई लोग सोचेंगे की सरकार इन क्लबो पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगा देती जो इस तरह की रेव पार्टियाँ संचालित करते है पर  यही समस्या है  की  क्‍योंकि हमारे संविधान में हर व्‍यक्ति को संस्‍था या संगठन बनाने का अधिकार है। और इसीलिए इन पार्टियों के माध्यम से देह व्यापार को बढ़ावा देने वाले लोग कानून की पहुँच से दूर है .अब यदि कोई संस्‍था अखबारों के माध्‍यम से फ्रेंडशिप के नाम पर आमंत्रण दे रही है तो वो सीधे तौर पर कामर्शियल प्रॉस्‍टीट्यूट को बढ़ावा देने जैसा है पर, ये सारी संस्थाएं क्लब के रजीस्ट्रेशन के साथ प्रारंभ होती है और कानूनन क्लब का रजीस्ट्रेशन  करवाना या उसे संचालित करना अपराध नहीं है. इसलिए सब कुछ जानकार भी कोई कुछ नहीं कर पाता . तो जब तक एसी किसी रेव पार्टी की खबर पोलिसे को नहीं मिलती तब तक वो भी  कुछ कर नहीं पाती. अब में यहाँ वो बात तो बिलकुल नहीं करुँगी की पोलिसे वाले क्या नहीं जानते या कई बार तो पोलिसे वालों की निगरानी में ये सब संचालित होता है क्यूंकि वो बातें सभी जानते है उन्हें बार बार बोलकर पोलिसे का टेनशन क्यों बढ़ाना...

वैसे देखा जाए तो ऐसे विज्ञापन छापने से पहले अखबारों को भी सोचना चाहिए, क्‍योंकि अखबार समाज को दिशा दिखाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।पर शायद अखबार वाले भी सोच लेते है की जब करने वालो को करने में शर्म नहीं तो हमे छापने में क्या शर्म . अब क्या कहे सब कमाने  में लगे है शायद किसी को युवा पीढ़ी के भविष्य की चिंता नहीं.उतनी ही गलती माता पिता की भी है वो भी शायद भूल जाते है की बच्चे को हर सुख - सुविधा देना, उनकी हर सही गलत बात को मान लेना ही कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं है. उन पर नजर रखना सही संस्कार देना भी उनकी जिम्मेदारी  है क्यूंकि जिनके संस्कार गिर जाए उनके बच्चो को शराब पीकर गिरते देर नहीं लगती  पर समस्या तो यही है सब समझदार है पर समझता कोई नहीं...

सामजिक दृष्टी  से देखा जाए तो अब सोचने का वक़्त आ गया है क्यूंकि अगर अब सरकार और लोग नहीं चेते तो वो दिन दूर नहीं जब समाज का विघटन चरम पर होगा.शादी,रिश्ते,सामाजिकता जेसी बातें सिर्फ किस्से कहानियों की रह जाएगी . वेश्‍यावृत्ति, नशाखोरी और अपराध बढ़ता जाएगा।और हमारी आने वाली पीढियां तब शायद अपने बच्चो को कहानियों में बताएं  की पहले शादी जेसा कुछ होता था और बच्चे कहे -रीअली ? आई डोंट बीलीव.या शायद उन बिचारों को कहानियां भी नसीब ना हो ....

Saturday, June 25, 2011

माँ मुझे घर याद आता है...

माँ मुझे घर याद आता है...
हर ख़ुशी में हर गम में
प्यार ज्यादा हो चाहे कम में
माँ मुझे घर याद आता है

अब पता चला मुझे
क्यों भर आती थी आँखे तुम्हारी
जब पापा मेरे सर पर हाथ फेरते थे प्यार से
या तुम भीच लेती थी अपने आँचल में दुलार से
मुझे रात रात भर जगाता है.....
माँ मुझे घर याद आता है........

अब समझ आया क्यों तुम कहती थी बार बार
बेटा संभल के जाना,बाहर का मत खाना
क्यों लगाती थी फ़ोन  दिन में कम से कम १ बार
मेरी चिंता ही थी ना वो जो घेरे रहती थी तुम्हे?

बस यही ख्याल अब मुझे सताता है
माँ मुझे घर याद आता है.....

अब पता चला क्यों रातों को उठ कर बैठ जाती थी तुम अचानक
और आ जाती थी मेरे सिरहाने ,मेरे बालों में हाथ फेरने के लिए
माँ अब में उठ जाती हू अचानक रातों को तुम्हे याद करते हुए
तुम्हारी आवाज़ मुझे वेसे ही तड़पा  देती है अब

क्या करू  तुम्हारे साथ बिता हुआ हर पल बहुत लुभाता है
माँ मुझे घर याद आता है ........

अब अहसास हुआ हुए क्यों तुम नानाजी की आवाज़  सुनकर 
चुपके से पोंछ  लेती थी अपनी पलकों पर उभर आए आंसू 
और मुस्कुरा देती थी हमें देखकर एक आत्मतृप्ति  की भावना के साथ
जेसे कह रही हो में खुश हु तुम लोगो के साथ

बस वही अनकहा संवाद अब मुझे सताता  है 
माँ मुझे घर याद आता है.....

Thursday, June 23, 2011

दिग्विजय सिंह :एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी बोलेगा

एक लोकप्रिय टी वी चैनल पर एक प्रोग्राम आता है "एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा "कुछ अच्छे कलाकार वहा आते है अपने करतब दिखाते है, पर साथ ही कुछ लोग सस्ती लोकप्रियता के लिए कुछ भी करने लगते है...में जानती हू आप लोग सोच रहे होंगे ये आज कनु को क्या हो गया एक टी वी प्रोग्राम का प्रचार कर रही है पर ऐसा  नहीं है ये तो शुरुआत है, मुख्य बात तो ये है की दिग्विजय सिंह की हालिया बयानबाज़ी देखकर मुझे इसी प्रोग्राम की याद आ रही है ,बिना सोचे समझे उटपटांग बयान देकर वो शायद सुर्ख़ियों में रहने की कोशिश कर रहे है .
यहाँ में ये बिलकुल नहीं कह सकती की वो सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश कर रहे है क्युकी लोकप्रिय (बदनाम) तो वो पहले से ही है  अब तो शायद इसी फलसफे पर चल रहे है की बदनाम हुए तो क्या कम से कम नाम तो हुआ.

हाल ही में आया उनका बयान  चर्चा में है जिसमे उनने कहा की अन्ना अगर अनशन करंगे उनका भी वही हाल होगा जो बाबा रामदेव का हुआ था .सही भी है इस देश में सबका वही हाल हो रहा है कोई डंडो से पिट रहा है तो कोई दुसरे ना दिखने वाले हथियारों से.  पर दर्द सबको है किसी का दीखता है किसी का छुपा हुआ है.सरकार सोते हुए लोगो को मारती है  ,गरीबी ,भुकमरी जिन्दा लोगो को वेसे ही मारे दे रही है क्या फर्क पड़ता सरकार मारे या गरीबी कही ना कही से तो पडनी ही है .
सरकार भी शायद यही सोच रही है की इन्हें वोट देने का अधिकार क्या दे दिया ये तो खुद को भगवान् समझने लगे .(अब सरकार को कौन समझाए  की वो नौकर है हमने उन्हें देश को चलाने  के लिए नेता बनाया  है देश लुटाने के लिए नहीं). लगता है हम थोड़े सीरीयेस -ट्रैक  पर बात करने लगे पर क्या करू कभी निकल ही आता है मन का उबाल...हां तो  हम दिग्विज्जय सिंह की बात कर रहे थे ....

वेसे गलती बिचारे दिग्विजय सिंह की नहीं है  लोगो ने दिग्गी राजा बोल बोलकर दिग्विजय सिंह को चने के झाड पर चढ़ा दिया और फिर मध्यप्रदेश की राजनीती से उनका पत्ता पूरी तरह से साफ़ कर दिया वो बिचारे तो राजा होने के भ्रम में ही रह गए. अब जब राज नहीं रहा तो पता चला की आसमान से गिर गए है तो रास्ते में किसी खजूर की तलाश कर रहे है ताकि उस पर अटक सके ,और उन्हें ये खजूर शायद इस तरह की बेतुकी बयानबाजी में नजर आ रही है .और फिर वो बिचारे अब देश के लोगो के लिए कुछ अच्छा तो कर नहीं सकते कम से कम उनका एंटरटेनमेंट ही करने की ठानी है . इसीलिए एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करने तैयार हो गए है .

वो खुलेआम लोगो को धमकी (अच्छे शब्दों में कहें तो चेतावनी) दे रहे है की कोल्हू के बैल की तरह काम करो,अच्छा बुरा जो भी हो उसे सहन करो और अगर मुह खोला तो कोड़े पड़ेंगे ...सही भी है आजादी के बाद से हम लोग यही तो करते आ रहे है और हम लोगो को अब तक तो इसकी आदत पड़ जानी चाहिए थी (या शायद पड़ ही गई है) .अब जाने कहा से बाबा रामदेव और अन्ना हजारे आ गए है और लोगो को उनका अधिकार बता रहे है भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जुट कर रहे है तो दिज्विजय सिंह जेसे महान (महाभ्रष्ट )नेताओं को दर्द होना लाजमी है की जो लोग भूखे , नंगे  रहकर भी जीने तैयार थे और  खुश रहना (या कम से कम खुश रहेने  का नाटक करना ) सीख गए थे  उन्हें ये सत्याग्रह   क्यों सिखाया  जा रहा है.

 उनका कहना भी सही है अगर सब जागरूक हो गए तो भ्रष्टाचार का क्या होगा?उसका तो अस्तित्व  ही ख़तम हो जाएगा और दिग्विजय सिंह केसे  देख सकते है की उनके राज में फले फुले नाजो से पाले भ्रष्टाचार का अस्तित्व असे ख़तम हो जाए .

वेसे सुनने में तो ये भी आ रहा है वो अपने बयान से पलट गए है पर ये उनने एकदम सही किया है आखिर एंटरटेनमेंट के लिए कभी कभी उलटी छलांग भी लगनी पड़ती है (आपने मदारी का खेल देखा ही होगा) दिग्गी राजा भी वही कर रहे है पहले बयान दो फिर पलट जाओ मतलब की धमकी दे भी दो और मुकर भी जाओ तो हुआ ना दुगुना एंटरटेनमेंट ,दुगुनी लोकप्रियता.

ना जाने क्यों  लोग है की उन्हें गलत कह रहे है अरे हमें तो उनका आभार व्यक्त करना चाहिए की इतनी तकलीफों से भरी जिंदगी में वो हमें मुस्कुराने का मौका दे रहे है हमारा एंटरटेनमेंट कर रहे है अपनी बयानबाजी से .(क्यूंकि अब एसा तो बिलकुल नहीं लगता की उनकी बात का कोई असर होता है लोगो पर).वो बयान देते है लोग हँसते है, वो बयान से पलटते है लोग फिर हँसते है और क्या चाहिए कुछ मुस्कुराहटों के पल मिल रहे है वो भी मुफ्त में ...तो इनका मजा उठाइये और इन्तेजार कीजिए एक और छलांग का मेरा मतलब है एक और बयान का....

                                                                                       कनुप्रिया गुप्ता

मेरा ये सम्पादकीय  लेख  आप इ खबर ओनलाइन पर "'एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी बकेगा " हेडलाइन के साथ देख सकते है  लिंक :http://www.ekhabar.in/editorial-hindi/11702-2011-06-24-09-32-56.html.

इसी के साथ आप इसे "पुब्लिसिटी के लिए कुछ भी करेगा:दिग्विजय सिंह"हेडलाइन के साथ जनोक्ति मीडिया ब्लॉग पर भी देख सकते है

Monday, June 20, 2011

ढूंढो रे साजना वो एक चुइंग-गम वाला

आज की ताज़ा  खबर वित्त मंत्रालय में जासूसी ...सुबह से हर टी वी चेनल पर यही खबर सुनाई दे रही है सही भी है जब कांग्रेस के धुरंदर नेता प्रणव मुखर्जी के विभाग में १६ जगह जाकर कोई चुइंग-गम चिपका आए तो उनका गम में आ जाना लाजमी है .मुझे लगता है की कोई बड़ा उत्सुक हो रहा है ये जानने के लिए  की वित्त मंत्रालय में बंद दरवाजो के पीछे क्या हो रहा है ?

 गौर फरमाने की बात है की जांच एजेंसी का कहना वो गोंद जैसा कोई पदार्थ है शायद चुइंगगम.कहा जा रहा है प्रणब मुखर्जी ने ७ जून को प्रधान मंत्री को इस सम्बन्ध में पत्र लिखा .उन्हें शक है की कोई उनकी जासूसी करवा रहा है....बात तो सही है शायद उनके पास छुपाने जेसा कुछ है वेसे देखा जाए तो बहुत कुछ है आखिर देश का वित्त मंत्रालय है पर बिचारा चुइंगगम खाने वाला क्या जाने ये सब बातें उसने तो खाई और जहा मन आया वह चिपका दी अब वो चाहे हमारे वित्तमंत्री का कमरा ही क्यों न हो.वेसे भी मुखर्जी साहब आन्दोलन करने वालों पर लाठी चलवा सकते है पर चुइंग-गम खाने वालों को केसे रोकें?

बड़ी अजीब बात है कोई वित्त मंत्रालय में जाता है और जाकर चुइंग-गम चिपका आता है(या शायद जासूसी कैमरे ) नहीं नहीं में यहाँ हमारी सुरक्षा एजेंसियों पर सवाल नहीं उठाने वाली क्यूंकि उन पर सवाल उठाने के लिए बहुत लोग है  हम तो यहाँ बात करेंगे की जो अन्दर तक गया शायद उसके मन में ये हो की नेताओं तुमने हमें इतने गम दिए  जिन्हें हम आजादी के बाद से चबाते जा रहे है  पर वो ख़तम ही नहीं होते तो लो हमारी तरफ से ये चुइंग-गम ही रख लो.

वैसे इस खबर का असर ये है की आज सुबह जब ऑफिस आ रही थी पोलिसे वाले चुइंग-गम खाने वालों को एक तरफ खड़ा करके पूछताछ कर रही थी और सवाल कुछ एसे की कहा से खरीदी,कब से खा रहे हो?और कौन कौन शामिल है तुम्हारे साथ ये चुइंग-गम खाने के काम में ?कहाँ  कहाँ चिपकाई अब तक ?ये  सारे सवाल सुनकर मैंने ये कसम खाई की अब कुछ दिनों के  लिए चुइंग-गम से तोबा .अरे बाबा खाना छोड़  नहीं सकती क्यूंकि वेसे ही आम आदमी के पास चबाने के लिए गम ही तो होते है चुइंग-गम के बहाने वो उन्हें ही चबा लेता है.
वेसे अभी ये सब देखकर मुझे एक गाना याद आ रहा है ढूंढो  ढूंढो  रे साजना ढूंढो  रे साजना वो एक चुइंग-गम वाला अब देखना है की क्या होता है कही खोदा पहाड़ निकली चुहिया न हो या चुहिया ही है जिसे पहाड़ बनाया जा रहा  है...ये तो आने वाला समय ही बताएगा

अभी का सच ये है की लोकपाल बिल पर होने वाली बहस के लिए  सरकार कोई वीडीओ  शूट नहीं करवाना चाहती न चाहती है की जनता को पता चले की मीटिंग में  क्या बात हुई  पर ये चुइंग-गम खाने वाले ने तो सब गुड गोबर कर डाला अन्दर जाकर चुइंग-गम चिपका आया शायद जल्दी ही हमारे सामने वित्त मंत्रालय की अंदरूनी ख़बरों का वीडीओ आए. और  उनकी हेड लाइन हो वित्त मंत्रालय की कहानी चुइंग-गम की जुबानी पर आप लोग तब तक इन्तेजार का  चुइंग-गम चबाइए.....

                                                                                            कनुप्रिया गुप्ता
मेरा ये सम्पादकीय  कमेन्ट आप इ खबर ओनलाइन पर 'चुइंग-गम मुखर्जी चुहिया सरकार' हेडलाइन के साथ देख सकते है http://ekhabar.in/editorial-hindi/11491-chuinggm-mukherjee-mouse-government.html

कब तक तारे जमीन पर लाते रहेंगे या लगान चुकाते रहेंगे आमिर

भाग डी. के बोस  : डैडी मुझसे बोला तू गलती है मेरी ... आजकल युवाओं की जबान पर चढ़ा देल्ली बेल्ली का ये गाना सुर्ख़ियों में है.और इसको सुर्ख़ियों में लाने में मीडिया का भी बड़ा हाथ है...क्यूंकि जब डी. के बोस भाग रहा था तो मेरे जैसे कई लोग रहे होंगे जो सिर्फ उसे भागता हुए देख रहे थे और उन्हें फिल्म के इस पात्र के भागने पर आपत्ति भी नहीं होगी पर जब उन्हें पता चला की डी. के बोस वैसे नहीं भाग रहा जैसे उसे भागना था तो उनकी नजर गालियों पर पड़ी.भाई आम इंसान अपने दिन भर के कामों में किसी के भागने से कहाँ विचलित होता है उसे अपनी भागमभाग से ही फुर्सत नहीं मिलती...
खेर आज के युवाओं की कहानी का ये गाना मीडिया में आई ख़बरों के बाद सड़कों के साथ दिमागों में भी भागने लगा और जबानों पर भी.
आमिर खान ने अपने एक इंटरव्यू में कहा की ये फिल्म बच्चो के लिए नहीं है और ऐसे लोग जिन्हें सभ्य भाषा की आदत हो वो भी इस फिल्म को न देखे. सही है आखिर आमिर कब तक तारे जमीन पर लाते रहेंगे या लगान चुकाते रहेंगे उन्हें भी आज के युवाओं के लिए फिल्म बनाने का अधिकार है सो उनने बना डाली और गाने की लोकप्रियता को देखकर ऐसा लगता है हर युवा असभ्य हो गया है.

इस गाने ने सूचना एवं जनसंचार मंत्रालय को मजबूर कर दिया की वो सेंसर बोर्ड से सवाल करे और सेंसर बोर्ड का कहना है गाने में समस्या नहीं समस्या है लोगो की सोच में क्यूंकि फिल्म में एक पात्र का नाम है डी.के. बोस और इस गाने में वो भाग रहा है सेंसर बोर्ड के हिसाब से जैसे शीला की जवानी पर विवाद उठा था वेसे ही ये विवाद भी जल्दी ही ख़तम हो जाएगा...सही भी है बिचारे डी. के बोस को भागने का भी अधिकार नहीं है क्या ?
खैर गाना चल निकला है और इस गाने के कारण देल्ली बेल्ली को भी अच्छी पब्लिसिटी मिल गई है जो हर युवा को एक बार थिएटर तक जरुर ले जाइगी ताकि वो इस डी.के .बोस को फिल्म में भागते देख सके आखिर अब वो भी जानना चाहेंगे की क्यों भाग रहा है ये डी. के बोस. देखना ये है की ये डी .के.बोस भागते भागते फिल्म को आमिर की पुरानी बड़ी फिल्मों की तरह सुपरहिट करवाता है या भागते भागते परदे के बाहर निकल आता है |
                                                                                                     कनुप्रिया गुप्ता 
  मेरा ये एडिटोरिअल कमेन्ट इ.खबर ऑनलाइन हिंदी न्यूज़ पोर्टल पर देखे .http://www.ekhabar.in/editorial-hindi/11444-film-article-in-hindi-kanu-priya-gupta.html

Sunday, June 19, 2011

आओ झूठी दुनिया बसा ले हम

फ़कत मुस्कुराना ही अगर जिंदगी की शर्त है
तो आओ हर बात भूलकर मुस्कुरा ले  हम

तुम अपने दर्द को समुन्दर की लहरों के  हवाले कर दो
मै अपने आसुओं को खामोशियों की गर्तों में छुपा आऊँ
नकली चेहरा,नकली जज्बात,नकली शोखियाँ लेकर
दिखावे  की इक झूठी  दुनिया बसा ले हम...


बस ये याद रखना दामन के दाग रूहों पर ना आ जाए
कही जो दफ़न है वो बात होंठो को ना छु जाए
बस यही मुस्कराहट रहे चेहरों पर ओढ़ी हुई
सुनहरी पोशाखें पहनकर आओ हर दाग छुपा ले हम

तुम अपने कल मे जो अधूरापन छुपाए हो
और हम अपने आज में जो अकेलापन लिए बेठे है
उसे इतिहास कर दे ,और दुनिया को बस खुशियाँ दिखा ले हम

Saturday, June 18, 2011

एक नया आगाज़

फिर रात की चादर हटाकर दिन निकल आया
चलो इक बार फिर जिंदगी की शुरुआत करते है...

तुम अपने खुदा का सजदा कर लो मैं अपने इष्ट को पूज लू
फिर दोनों राहे जिंदगी पर एक दूसरे के साथ चलते है

वो देखो दूर कही से पंछी उड़कर आते है...
वो भी शायद हमारी दोस्ती  की बात करते है...

चलो चलते है उस मंजिल  जहाँ बस मोहब्बत हो
जहाँ बंद हो जाए सब रस्ते आओ  वही से आगाज़ करते है


हम तुम सिक्के के दो पहलु ,या नदी के दो किनारे है
फिर क्यों लोग हमको जुदा करने की बात करते है

आओ बरसात की बूंदों के साथ धो डालें सब शिकवे
गिलें मिट जाए सब दिलों से बस यही दुआ दिन रात करते है....



Thursday, June 16, 2011

प्यारे मम्मी पापा


जब रखा था मैंने इस दुनिया में पहला कदम
            साथ मेरे थे बस तुम  बस तुम बस तुम
हुआ जब दुनिया से मेरा पहले साक्षात्कार
             खुशिया थी उन चेहरों पर अपार
एक बार भी न आने दिया मेरे बेटी होने का विचार

जब जब मैंने चाहा कुछ वो आया मेरे जीवन में
          मेरी हर चाहत पूरी करने वाले वो तुम थे बस तुम
दुनिया की टेडी राहों पर रखे जब मैंने पहले कदम
  मेरी ऊँगली थामकर चलने वाले वो तुम थे बस तुम

जब छोटे छोटे दांतों से मैंने कुछ पहली बार चबाया था
          मेरे दांतों से ज्यादा दर्द,आपके चेहरे पर आया था
एक एक कौर दबाकर हाथों से मुझे खिलाया था
         मेरी जीवन क्षुधा मिटने वाले वो तुम थे बस तुम

छोटे छोटे कन्धों पट जब मैंने किताबों को उठाया था
          ये बोझ नहीं है साथी है, ये बात मुझे समझाने वाले वो तुम थे बस तुम.
 छोटी छोटी आँखों से जब मैंने सब कुछ बदलते देखा था
          दुनिया क्या है ये बताने वाले वो तुम थे बस तुम

छोटी छोटी बातों पर  जब मैंने घर सर पर उठाया था
           अपनी बातों से बहलाने वाले वो तुम थे बस तुम
जब जब लडखडाए थे ये कदम ऊँची नीची राहों पर
           मेरा जीवन आधार बनाने वाले वो तुम थे बस तुम .

आज भी जरुरत होती है मुझे सान्तवना सलाह की
          मेरे बालों को सहलाने वाले होते हो बस तुम
हर फैसला मेरा ,हर निर्णय जो में लेती हु
         उसमे जिसकी छाप नजर आती है वो तुम हो बस तुम

आज जब दूर हू सबसे ,तो मेरे ख्वाबों में आने वाले
          मुझे बिन बोले समझाने वाले,मुझे बेहतर राह दिखाने वाले
क्या गलत है क्या सही ये अंतर बतलाने वाले
         जीवन की राह दिखाने वाले वो तुम हो बस तुम

आप की बच्ची दूर रहकर आपसे जी पाएगी केसे ?
         मेरी आँखों को ख्वाब दिखाने वाले  बस तुम हो बस तुम.
दुआ करो की मेरे ख्वाब हो पूरे ,ताकि महको मेरे ख्वाबों में तुम.
         कहीं भी रहूँ दुनिया में ,साथ रहोगे हर दम तुम बस तुम.....

हम खुद को बदल देंगे

बहुत कठिन है राहें हमारे साथ की अब तक
अब ये दिल कहता है की हम खुद को बदल देंगे

हमे अहसास है इस बात का
               की खुद से खफा हो तुम
और हम तुमसे खफा होकर
                 अब जाए तो कहा जाए
तेरी उम्मीद की खातिर जब छोड़ दी दुनिया
       तो तेरे साथ की खातिर किस्मत से भी लड़ लेंगे
                                         अब ये दिल कहता है की हम खुद को बदल देंगे .
इक घुटन सी है दिल में तेरे
                 वही आइना है मेरे दिल का भी
हमराह होकर भी अनजान से हम
                   ना जाने कब से, मौसम है ऐसा ही
अमृत वर्षा के इन्तेजार में ,
                    हमने छोड़ा है सावन भी,
जैसा भी रहे मौसम ,
                      हम  तेरे साथ चल देंगे

अब ये दिल कहता है की हम खुद को बदल देंगे .

Tuesday, June 7, 2011

हाथ से हाथ जुड़े तो बहार आए शायद ......

मेरी बस्ती के सारे  चिराग सोते है
कोई रौशनी के लिए खुद को जलाए शायद
भीड़ में गर्क हो गए है जिंदगी के निशान
कोई अँधेरे में उम्मीद जगाए शायद.

सब के सब सो रहे है अँधेरी गर्तों में
आए आकर कोई नींदों से जगाए शायद
बड़ी बैचैन सी रातें है बेक़रार से दिन
कोई आवाज़ उठे तो करार आए शायद


हर तरफ दर्द है लाचारी है बेबसी है
अब कोई ख़ुशी के असार बनाए शायद
विद्रोह की चिंगारियां तो है पर नेतृत्व नहीं
कोई बदलाव का ऐतबार दिलाए शायद

भरी बरसात में आंसू भी नहीं दीखते है
रूह जगे तो तो ये आंसू  भी दिख जाए शायद
सब अकेले है भीड़ में सभी मन बंजर हैं
हाथ से हाथ जुड़े तो बहार आए शायद ......